हाल ही में देश की शीर्ष अदालत ने शराब की पैकेजिंग को लेकर जो गंभीर टिप्पणी की है, वह सामाजिक चेतना को झकझोरने वाली चेतावनी है. अदालत ने स्पष्ट कहा है कि शराब को इस तरह आकर्षक और लुभावना बनाकर प्रस्तुत करना सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ-साथ संस्कृति एवं सामाजिकता के साथ खिलवाड़ है. चमकीली बोतलें, विदेशी डिजाइन, चटकदार रंग और ग्लैमरस बॉक्स- ये सब रणनीतियां लोगों को, विशेषकर युवाओं को, महिलाओं को शराब की ओर खींचने का साधन बन चुकी हैं.
शराब की यह भ्रामक एवं बाजारवादी पैकेजिंग एक गंभीर एवं नया खतरा है. यह प्रवृत्ति केवल बाजार का विस्तार नहीं बल्कि पूरे समाज के स्वास्थ्य, नैतिकता और मानसिक संतुलन पर गहरा हमला है. जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाली शराब कंपनियों की दुराग्रही सोच एवं गुमराह करने वाली पैकिंग एक आपराधिक कृत्य है. जूस पैक जैसे दिखने वाले टेट्रा पैक में बेची जा रही शराब अनेक खतरों को आमंत्रण है.
आज जब देश शराब की वजह से होने वाली बीमारियों, दुर्घटनाओं, हिंसा, पारिवारिक विघटन और मानसिक अवसाद जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, तब शराब को ‘फैशनेबल’ बनाकर बेचना एक बहुत बड़ा खतरा बन जाता है. शराब कंपनियों ने पैकेजिंग को आधुनिकता, प्रतिष्ठा और स्टाइल से जोड़ दिया है, जिससे युवा वर्ग इसे किसी उपलब्धि जैसा मानने लगा है. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से यह पैकेजिंग व्यक्ति के मन में यह भ्रम पैदा करती है कि शराब पीना आधुनिकता का प्रतीक है, जबकि वास्तविकता यह है कि शराब हर रूप में शरीर और मन के लिए घातक जहर है. शराब के घातक दुष्प्रभाव किसी से छिपे नहीं हैं. यह धीरे-धीरे शरीर को भीतर से खोखला करते हुए नशे की अंधी गलियों में धकेल देती है.
लिवर सिरोसिस, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, कैंसर, मानसिक असंतुलन, अवसाद और नींद की गंभीर समस्याएं शराब सेवन की देन हैं. सड़क दुर्घटनाओं में हजारों लोग शराब के कारण अपनी जान गंवाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इसीलिए चिंता जताई है कि शराब की बोतलों की पैकिंग ऐसी नहीं होनी चाहिए जो उपभोक्ता को उसकी वास्तविक हानियों से दूर ले जाए. चेतावनियां अक्सर बोतल के किनारे इस तरह लगाई जाती हैं कि वे दिखती ही नहीं. कंपनियां स्वास्थ्य चेतावनियों को ढककर अपने उत्पाद की सुंदरता को आगे करती हैं. यह न केवल अनैतिक है बल्कि स्वास्थ्य संबंधी नीतियों की मूल भावना के भी विरुद्ध है.