वेद प्रताप वैदिक का ब्लॉग: ऐसे डॉक्टरों की डिग्रियां छीन लें
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 10, 2018 09:17 PM2018-09-10T21:17:19+5:302018-09-10T21:17:19+5:30
हमारे नेताओं ने पिछले 70 साल में इन दोनों मामलों में जितनी लापरवाही दिखाई है, वह माफ करने लायक नहीं है।
किसी भी राष्ट्र को संपन्न और शक्तिशाली बनाने के लिए सबसे जरूरी दो चीजें होती हैं। शिक्षा और चिकित्सा। हमारे नेताओं ने पिछले 70 साल में इन दोनों मामलों में जितनी लापरवाही दिखाई है, वह माफ करने लायक नहीं है। भाजपा की सरकार के पिछले चार साल भी पिछली सभी सरकारों की तरह खाली निकल गए।
शिक्षा की दुर्दशा जैसी है, उस पर मैं पहले कई बार लिख चुका हूं लेकिन गांवों में चिकित्सा की जो स्थिति है, उस पर आए नए आंकड़े दिल दहला देनेवाले हैं। देश की लगभग 70 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है लेकिन उनकी चिकित्सा के लिए 20 प्रतिशत डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं हैं। दूसरे शब्दों में 70 प्रतिशत शहरी जनता के लिए देश के 80 प्रतिशत डॉक्टर हैं लेकिन गांवों के करोड़ों लोग बिना इलाज के अकाल मौत मर जाते हैं।
कई राज्य सरकारों ने उन डॉक्टरों पर जुर्माना ठोंक रखा है, जो डिग्री मिलने के बाद कुछ समय के लिए भी गांवों में जाने से मना करते हैं। ये डॉक्टर 10-10 लाख रु । जुर्माना भर देते हैं लेकिन गांवों में नहीं जाते। वे शहरों में रहकर निजी प्रैक्टिस करते हैं और खुली ठगी के जरिए रोगियों से लाखों रु। वसूल कर लेते हैं। ऐसे डॉक्टरों की डिग्रियां छीन लेने और उनकी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध का प्रावधान राज्य सरकारें क्यों नहीं करतीं? सरकारों का एक दोष यह भी है कि उन्होंने ज्यादातर मेडिकल कॉलेज बड़े-बड़े शहरों में खोल रखे हैं। यदि वे दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में खोले जाएं तो डॉक्टरों को अपने छात्न-काल में ही ग्रामीण जीवन का अभ्यास हो जाए।
गांवों में न तो ऑपरेशन थिएटर होते हैं, न आधुनिक मशीनें होती हैं और न ही डॉक्टरों को आवास और यातायात की समुचित सुविधाएं मिलती हैं। भारत की डॉक्टरी की सबसे बड़ी कमी यह है कि वह आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा का कोई लाभ नहीं उठाना चाहती। इस दिमागी गुलामी से छुटकारा हमारे एलोपैथिक डॉक्टरों का कब होगा, पता नहीं।