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‘लोक’ पर राज करनेवाले ‘तंत्र’ की मौज?, सांसदों-विधायकों की बल्ले-बल्ले, बेरोजगारी और महंगाई से परेशान आम जनता

By राजकुमार सिंह | Updated: April 1, 2025 05:15 IST

24 प्रतिशत की वेतन वृद्धि का लाभ अप्रैल, 2023 से ही मिलेगा. पौने छह लाख रुपए का बकाया भुगतान भी मिलेगा.

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ठळक मुद्देमासिक वेतन एक लाख से बढ़ा कर एक लाख 24 हजार रुपए कर दिया गया है. दो हजार से बढ़ कर ढाई हजार रुपए हो गया है तो मासिक पेंशन 25 हजार से बढ़ कर 31 हजार रुपए.अतिरिक्त वर्ष के लिए प्रतिवर्ष के हिसाब से मिलनेवाली राशि दो हजार से बढ़ कर ढाई हजार रुपए हो गई है.

चुनाव के समय ‘जनता ही जनार्दन’ बताई जाती है, पर वास्तव में हमारे लोकतंत्र में ‘तंत्र’ ही ‘लोक’ पर हावी है. कोरोना काल से ही 80 करोड़ भारतीय सरकार के पांच किलो मुफ्त अनाज पर आश्रित हैं तो बेरोजगारी और महंगाई बेलगाम हैं, पर न तो केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों के वेतन आयोगों की रफ्तार थमती है और न ही माननीय सांसदों-विधायकों की वेतन-भत्तों के वृद्धि की. इस बार सांसदों की वेतन वृद्धि का फैसला दो साल विलंब से हो पाया, पर उन्हें 24 प्रतिशत की वेतन वृद्धि का लाभ अप्रैल, 2023 से ही मिलेगा. पौने छह लाख रुपए का बकाया भुगतान भी मिलेगा.

मासिक वेतन एक लाख से बढ़ा कर एक लाख 24 हजार रुपए कर दिया गया है. सत्र के दौरान दैनिक भत्ता दो हजार से बढ़ कर ढाई हजार रुपए हो गया है तो मासिक पेंशन 25 हजार से बढ़ कर 31 हजार रुपए. पांच साल से अधिक सांसद रहने पर अतिरिक्त वर्ष के लिए प्रतिवर्ष के हिसाब से मिलनेवाली राशि दो हजार से बढ़ कर ढाई हजार रुपए हो गई है.

निर्वाचन क्षेत्र और कार्यालय भत्ते पर भी 24 प्रतिशत वृद्धि लागू हुई तो वे क्रमश: 70 हजार से बढ़ कर 86,880 रुपए और 60 हजार से बढ़ कर 74,400 रुपए हो जाएंगे. इसके अलावा भी सांसद को दिल्ली में आवास, 50 हजार यूनिट बिजली एवं 4000 किलोलीटर पानी मुफ्त तथा सपरिवार मुफ्त इलाज, 34 घरेलू हवाई यात्राएं, मुफ्त फर्स्ट क्लास ट्रेन यात्रा समेत तमाम सुविधाएं मिलती हैं.

संसद सदस्यों के वेतन-भत्तों में वृद्धि हो गई, तो विधायक भी वंचित नहीं रहेंगे. कर्नाटक में विधायकों के वेतन-भत्तों में वृद्धि के बाद, एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज में डूबे हिमाचल ने भी विधायकों का मासिक वेतन 55 हजार से बढ़ा कर 70 हजार रुपए कर दिया है. दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश भी उसी दिशा में बढ़ रहे हैं.

तीखे राजनीतिक मतभेदों के बावजूद अपने वेतन-भत्ते-सुविधाओं में वृद्धि के मुद्दे पर सभी दलों के माननीय एक सुर में बोलते हैं. बेशक सांसदों और विधायकों के वेतन-भत्तों में वृद्धि पहली बार नहीं हो रही. 1954 से 2025 के बीच प्रति व्यक्ति आय आठ गुना ही बढ़ी, लेकिन सांसदों का वेतन 400 गुना बढ़ गया. माननीयों पर यह मेहरबानी तब है, जबकि उनकी संपन्नता बढ़ती जा रही है.

15 साल में सांसदों की औसत संपत्ति 766 प्रतिशत बढ़ी है. चुनाव सुधार के क्षेत्र में काम करनेवाली संस्था एडीआर के मुताबिक मौजूदा लोकसभा के 543 निर्वाचित सदस्यों में से 504 यानी 93 प्रतिशत करोड़पति हैं. माननीयों के बढ़ते वेतन-भत्ते-सुविधाओं के बावजूद बढ़ता राजनीतिक भ्रष्टाचार, चुनावी चंदे का खेल तथा आम नागरिक की पहुंच से बाहर महंगी चुनाव प्रक्रिया से भी कई सवाल खड़े होते हैं.

माननीयों की संसदीय प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी और कार्य दक्षता में भी गिरावट महसूस की जा रही है. वैसे आश्चर्यजनक सच यह भी है कि आर्थिक विषमता से मुक्त हमारे माननीय भी नहीं. कई राज्यों में विधायक का वेतन सांसद से ज्यादा है. विधायक को सबसे ज्यादा 2.88 लाख रुपए वेतन झारखंड में मिलता है, जबकि सबसे कम 70 हजार रुपए केरल और हिमाचल में.

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