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ब्लॉग: गरीबों के नाम पर चलाई जा रही ‘दुकानदारी’

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 10, 2024 9:51 AM

एनजीओ को नव दक्षिणपंथी बुरे लालची कार्यकर्ता कहते हैं। ये संगठन स्वच्छ पर्यावरण की वकालत करने, आर्थिक और लैंगिक असमानता दूर करने, हाशिये पर मौजूद लोगों को सशक्त बनाने का दावा करते हैं।

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ठळक मुद्देडॉलर हासिल करने के लिए गरीबी का अच्छी तरह से रोना रोने की आवश्यकता होतीअभिजात्य वर्ग के एनजीओ को सत्ता के घेरे में अपना प्रभुत्व बनाए रखना चाहिएमोदी सरकार ने उनके बटुए खाली कर दिए और उनके बैंक खाते फ्रीज कर दिए

प्रभु चावला: गरीबी की दुकान चलाने और डॉलर हासिल करने के लिए गरीबी का अच्छी तरह से रोना रोने की आवश्यकता होती है। ऐसा माना जाता था कि अभिजात्य वर्ग के गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को सत्ता के घेरे में अपना प्रभुत्व बनाए रखना चाहिए और मंत्रियों और बाबुओं को पांचसितारा होटलों की पार्टियों व अन्य प्रलोभनों के जरिये आकर्षित करना चाहिए। मोदी सरकार ने उनके बटुए खाली कर दिए और उनके बैंक खाते फ्रीज कर दिए, जिससे वे लुटियंस दिल्ली की भव्य इमारतों में रहते हुए भी बेचैन हैं।

एनजीओ को नव दक्षिणपंथी बुरे लालची कार्यकर्ता कहते हैं। ये संगठन स्वच्छ पर्यावरण की वकालत करने, आर्थिक और लैंगिक असमानता दूर करने, हाशिये पर मौजूद लोगों को सशक्त बनाने का दावा करते हैं। लेकिन भारत और विदेशों में विभिन्न संगठनों के अध्ययनों से पता चलता है कि अधिकांश भारी-भरकम एनजीओ दुर्भावना रखने वाले भाड़े के लोगों का समूह हैं। जो अपनी विलासितापूर्ण जीवनशैली को बनाए रखने के लिए धन इकट्ठा करते हैं।

पिछले हफ्ते, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के तहत पांच गैरसरकारी संगठनों का पंजीकरण रद्द कर दिया था। उन पर विदेशी धन का दुरुपयोग करने और धर्मांतरण में शामिल होने का आरोप है। पिछले साल जांच एजेंसियों ने इन पर छापे मारे और उनके खातों की जांच की गई। इसमें पाया गया कि उन्हें अमेरिका, जर्मनी, स्वीडन और अन्य यूरोपीय देशों में विवादास्पद प्रतिष्ठानों और ट्रस्टों से धन प्राप्त हुआ।

एनजीओ को निलंबित करने और उन पर लगाम लगाने का ताजा दौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस मिशन का हिस्सा है, जिसके तहत वे उन सभी संस्थाओं को बेअसर करना चाहते हैं, जिनके बारे में उनकी पार्टी का मानना है कि वे भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और विशिष्ट पहचान को कमजोर करती हैं। सभी गैरउदारवादी  तत्वों को एनजीओ से बाहर निकालना और उन पर वित्तीय अंकुश लगाना भाजपा के अलिखित घोषणापत्र का एक हिस्सा है। उन्होंने शत्रुतापूर्ण और संदिग्ध सामाजिक सेवा समूहों की दुकानें बंद करा दीं। यह कोई संयोग नहीं था कि अकेले 2023 में सैकड़ों थिंक टैंक और एनजीओ के विदेशी फंड जुटाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गृह मंत्रालय ने 25,000 करोड़ रुपए के सीएसआर फंड तक पहुंच रखने वाले एक हजार से अधिक ‘गरीबों के रक्षकों’ की पहचान की है। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के साथ-साथ राजीव गांधी फाउंडेशन के विदेशी दान प्राप्त करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सरकार का मानना था कि वे नीतियों को प्रभावित करके राज्य और उसके संस्थानों के वैध अधिकार को कमजोर करने के लिए इस धन का उपयोग करते हैं।

पिछले पांच साल में वित्तीय लेनदेन की गहन जांच के बाद सात हजार से ज्यादा एनजीओ का एफसीआरए पंजीकरण या तो रद्द कर दिया गया है या नवीनीकृत नहीं किया गया है। इसका कारण यह है कि मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो इन समूहों ने उन्हें अपने निशाने पर रखा था। जांच से पता चला कि अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए डॉलर और यूरो का उपयोग किया जा रहा था।

संघ परिवार कहता रहा है कि अगर भारत को गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलना है तो विदेशों से पैसा पाने वाली संस्थाओं को व्यवस्थित करना होगा, जबकि भाजपा के विरोधी सरकार पर बदला लेने का आरोप लगाते रहे हैं।

देश में करीब 30 लाख एनजीओ हैं। अकेले दिल्ली में 75 हजार से ज्यादा एनजीओ हैं। उनमें से 10 फीसदी संस्थाएं भी अपनी वार्षिक रिपोर्ट या बैलेंस शीट सरकार को नहीं सौंपतीं। विदेश से आने वाले पैसे से बना उनका सामूहिक खजाना सालाना 12 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, 2019-20 से 2021-22 तक तीन साल में भारतीय एनजीओ के पास विदेशों से 55,645।08 करोड़ रुपए आए।

केंद्र सरकार ने पुनर्गठित नीति आयोग का उपयोग कर कार्रवाई शुरू की। ‘एनजीओ दर्पण प्लेटफार्म’ सरकार और सामाजिक संगठनों के बीच एक कड़ी के रूप में बनाया गया था। इसके जरिये 1।8 लाख एनजीओ पंजीकृत किए गए। सभी संगठनों को एक अलिखित वैश्विक आचार संहिता दी गई। इसे तीन मानदंडों पर खरा उतरना ही था: पारदर्शिता, प्रभाव और जवाबदेही। दुनिया भर के ईमानदार एनजीओ इस तरह की आचार संहिता का सख्ती से पालन करते हैं। लेकिन कई भारतीय संस्थाएं दिखाने के लिए नियम लागू करती हैं और पर्दाफाश होने पर दूसरे नाम से दूसरी संस्था तैयार हो जाती है।

भारतीय एनजीओ संगठनात्मक और वित्तीय रूप से अपारदर्शी हैं। उनमें से अधिकांश यह छिपाने के लिए विभिन्न वित्तीय साधनों का उपयोग करते हैं कि उन्हें पैसा कौन प्रदान कर रहा है। दानदाताओं के नाम का खुलासा नहीं किया जाता। वे उन नियमों और शर्तों को भी छुपाते हैं जिन पर पैसा प्राप्त किया गया था। बड़े-बड़े रसूख वाले मशहूर लोग गरीबी के नाम पर ये दुकानें चलाते हैं। वे निश्चित रूप से कोई जवाबदेही नहीं चाहते। वे समान विचारधारा वाले कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं। फंड देने वालों द्वारा अनुशंसित व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है।

अधिकांश एनजीओ प्रशासन, यात्राओं, विदेशी यात्राओं और महंगी परियोजनाओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं, जबकि वे आधिकारिक तौर पर जिन कारणों का समर्थन करते हैं, उनके बारे में केवल दिखावा करते हैं। गोपनीयता के आवरण में सुरक्षित, उनके काम की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती है। जो कागजात अपने भारतीय और विदेशी संरक्षकों के लिए एक गुलाबी तस्वीर पेश करते हैं, उतने ही हिस्से को प्रसारित किया जाता है।

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