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भारत-नेपाल- बदलते समय की चुनौतियों से निपटने की जरूरत, शोभना जैन का ब्लॉग

By शोभना जैन | Updated: August 29, 2020 18:53 IST

प्रधानमंत्री  के.पी. शर्मा ओली जो कि कुछ समय से भारत के खिलाफ लगातार नकारात्मक टिप्पणियां कर रहे थे, वे अब भारत के साथ रिश्ते सामान्य करने पर ध्यान देने लगे हैं. निश्चित तौर पर पड़ोसी नेपाल के साथ हमारे रिश्ते ‘बेहद खास’ रहे हैं. आपसी समझ-बूझ वाले बेहतर रिश्तों की दोनों के लिए ही अहमियत है और दोनों ही आपसी रिश्तों की अहमियत समझते हैं.

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ठळक मुद्देजमीनी सच्चाई है कि ओली  भारत के साथ रिश्तों को खराब करने का जोखिम नहीं ले सकते हैं. हिमालय की तलहटी में बसा यह छोटा देश  भारत के साथ रोटी-बेटी के संबंधों वाले प्रगाढ़ रिश्तों की अहमियत भी कहीं भीतर अच्छी तरह से समझता है.भारत नेपाल के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से गहरे तौर पर जुड़े इन रिश्तों को भावनात्मक लगाव के साथ जिम्मेदारी से निभाता रहा है.

भारत और नेपाल के बीच पिछले कुछ माह से रिश्तों में जमी बर्फ  कुछ पिघलती सी लग रही है. दोनों देशों के बीच एक बार फिर से आपसी समझ-बूझ से साथ मुद्दों को हल करने की प्रक्रिया के सक्रिय किए जाने के साथ ही नेपाल के राजनीतिक घटनाक्रम में भी फिलहाल स्थिरता लग रही है.

इससे लग रहा है कि प्रधानमंत्री  के.पी. शर्मा ओली जो कि कुछ समय से भारत के खिलाफ लगातार नकारात्मक टिप्पणियां कर रहे थे, वे अब भारत के साथ रिश्ते सामान्य करने पर ध्यान देने लगे हैं. निश्चित तौर पर पड़ोसी नेपाल के साथ हमारे रिश्ते ‘बेहद खास’ रहे हैं. आपसी समझ-बूझ वाले बेहतर रिश्तों की दोनों के लिए ही अहमियत है और दोनों ही आपसी रिश्तों की अहमियत समझते हैं.

पिछले काफी समय से  हालांकि चीन नेपाल को लगातार अपने प्रभाव में लाने के लिए साम, दाम, प्रलोभन यानी हर हथकंडा इस्तेमाल कर रहा है लेकिन यह भी जमीनी सच्चाई है कि ओली भारत के साथ रिश्तों को खराब करने का जोखिम नहीं ले सकते हैं. चीन के प्रति ओली और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के झुकाव के बावजूद दो बड़े पड़ोसियों के बीच हिमालय की तलहटी में बसा यह छोटा देश  भारत के साथ रोटी-बेटी के संबंधों वाले प्रगाढ़ रिश्तों की अहमियत भी कहीं भीतर अच्छी तरह से समझता है.

भारत नेपाल के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से गहरे तौर पर जुड़े इन रिश्तों को भावनात्मक लगाव के साथ जिम्मेदारी से निभाता रहा है. हालांकि कई बार आपसी समझ-बूझ पूरी तरह से नहीं होने पर तल्खियां भी आईं लेकिन समय रहते वे दूर भी कर ली गईं.

निश्चित तौर पर रिश्ते बदलते समय की  चुनौतियों  का सामना कर रहे हैं, ऐसे में चुनौतियों को समझते हुए आपसी समझ से आगे बढ़ना ही रास्ता है. सवाल है कि क्या मोदी सरकार की ‘पड़ोसी सबसे पहले’ की विदेश नीति और उसकी ‘भरोसेमंद मित्र पड़ोसी’ की छवि की अहमियत नेपाल  फिर से समझेगा. बहरहाल, नजर इस बात पर जरूर रहेगी कि भारत के साथ दोबारा रिश्ते सहज करने के पीछे क्या वह वाकई गंभीर है और वह भारत के साथ मित्रता की अहमियत को समझ गया है या फिर मंसूबा कुछ और है.

भारत को भी  नई परिस्थतियों में आपसी समझदारी से अब रिश्तों को निभाने में और सतर्कता बरतनी होगी. तल्ख सीमा विवाद और नेपाल के प्रधानमंत्री ओली के राम जन्म भूमि के कथित तौर पर नेपाल में होने और नेपाल में राम मंदिर बनाने जैसी बेवजह की उकसाने वाली टिप्पणियों के बीच भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में पिछले नौ माह से जमी बर्फ पिछले दिनों पिघलती नजर आई.

महीनों से दोनों देशों के बीच चल रही तल्खियों के बीच पंद्रह अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर ओली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर शुभकामना देते हुए कहा कि वे दोनों देशों के बीच सार्थक उभयपक्षीय सहयोग की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं. मोदी ने भी भारत-नेपाल के सदियों पुराने और सांस्कृतिक संबंधों को याद करते हुए कोविड से निपटने में नेपाल को मदद देने की पेशकश की. इसके दो दिन बाद ही दोनों देशों के बीच  ‘ओवरसाइट मकैनिज्म’ की आठवीं बैठक हुई, जिसमें चर्चित कटु सीमा विवाद पर तो कोई चर्चा नहीं हुई, अलबत्ता बातचीत से एक राह बनी.  

दरअसल नेपाल ने हाल ही अचानक अपना एक नया नक्शा जारी कर ्भारत के लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी क्षेत्रों को अपना बता दिया था. 17 अगस्त को हुई  इस बैठक की खास बात यह रही कि इसमें द्विपक्षीय सहयोग वाली परियोजनाओं की समीक्षा के दौरान ‘रामायण सर्किट’ पर भी आगे की कार्य योजना पर चर्चा हुई. इसमें  दोनों देशों में रामायण से जुड़े महत्वपूर्ण स्थानों को विकसित किए जाने की बात है. इसके तहत नेपाल के जनकपुर और भारत में अयोध्या के बीच बस सेवा भी चलनी है.

वैसे ओली को राम मंदिर संबंधी अपने बयानों के लिए अपने ही देश में आलोचना का शिकार भी होना पड़ा. हाल के उनके बयान के बाद नेपाल के विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी करके कहा कि ओली का मकसद किसी की  भावनाएं आहत करने का नहीं था.

निश्चित तौर पर प्रतीत होता है कि  नेपाल का भी रुख अब चीन के प्रति झुकाव के बावजूद भारत के साथ रिश्तों को पटरी पर लाने के प्रति सकारात्मक दिख रहा है. चीन तथा नेपाल में सक्रिय कुछ भारत विरोधी ताकतों के बावजूद नेपाली जनता कुल मिलाकर भारत के  सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से ज्यादा नजदीक है. इन तमाम  पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उम्मीद की जानी चाहिए कि बातचीत के जरिये उलझते रिश्तों को सुलझाने की राह बनेगी.

भारत स्थित नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य ने हाल ही में कहा, ‘समस्या कितनी ही बड़ी, छोटी क्यों नहीं हो, दोस्ताना बातचीत से उसे  हल किया जा सकता है.’ उम्मीद की जानी चाहिए कि बदलते समय की चुनौतियों को समझते हुए दोनों देश विवादास्पद मसले भी बातचीत के जरिये हल होंगे.

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