Shaheed Diwas 2024: शहीदे-ए-आजम भगत सिंह के आज (23 जनवरी) शहीदी दिवस पर उन्हें भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी याद किया जा रहा है. वे इस तरह की अकेली शख्सियत हैं, जो भारत-पाकिस्तान को जोड़ते हैं. वे दोनों देशों के करोड़ों लोगों के नायक बने हुए हैं. क्या भगत सिंह जीवित होते तो पाकिस्तान की मांग उठाई जाती? अगर उठाई जाती तो क्या वे इस मांग का डटकर विरोध करते? बेशक, वे पृथक राष्ट्र का निश्चित रूप से विरोध करते. लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी. उन पर इल्जाम था कि उन्होंने एक ब्रिटिश अधिकारी जॉन पी. सांडर्स की हत्या की थी. भगत सिंह को जब अपने साथियों के साथ फांसी पर लटकाया गया तब तक ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग करनी चालू नहीं की थी.
मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के हक में प्रस्ताव 23 मार्च, 1940 को उसी लाहौर में पारित किया था जिस शहर में भगत सिंह को फांसी दी गई थी. पाकिस्तान में किसी गैर-मुस्लिम को नायक का दर्जा नहीं मिल पाता है. भगत सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ था जिसकी आर्य समाज में आस्था थी. वे तो अपने को नास्तिक कहते थे.
उन्होंने इस मसले पर एक लंबा निबंध भी लिखा था कि ‘वे नास्तिक क्यों हैं.’ पाकिस्तान में नास्तिक के लिए भी कोई जगह नहीं है. इसके बावजूद उन्हें पाकिस्तान में भी सम्मान मिलता है. यह छोटी बात नहीं है. भगत सिंह का जन्म बंगा नाम के जिस गांव में हुआ था, वह पाकिस्तान के लायलपुर ( अब फैसलाबाद) में है.
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन नाम का एक संगठन भगत सिंह की यादों को पाकिस्तान में संजोने का काम कर रहा है. इस संगठन के अध्यक्ष इम्तियाज कुरैशी कहते हैं- ‘‘भगत सिंह की पाकिस्तान में बहुत इज्जत है. यहां उनके बहुत दीवाने हैं. उनके पिता, दादा का बनाया हुआ घर आज भी पाकिस्तान में मौजूद है.’’
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने मुझे 2006 में एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि ‘‘भगत सिंह अपने जीवनकाल में ही भारत के नायक बन चुके थे. उन्हें देश के करोड़ों नौजवान अपना आदर्श मानते थे. अगर वे संसार से बहुत जल्दी विदा न हुए होते तो देश शायद न बंटता.”
भगत सिंह और उनके साथी सांप्रदायिक राजनीति के सख्त खिलाफ थे. इसलिए वे जिन्ना की घोर सांप्रदायिक राजनीति से लड़ते. अप्रैल 1928 में भगत सिंह और उनके साथियों ने नौजवान भारत सभा सम्मेलन में स्पष्ट कर दिया था कि सांप्रदायिक संगठनों से जुड़े युवाओं को क्रांतिकारी नौजवान भारत सभा का सदस्य बनने की अनुमति नहीं है.