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रिवर फ्रंट से यमुना की नहीं, व्यापारियों की सुधरेगी सेहत

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: April 17, 2025 07:05 IST

और अब यही सराय  काले खान के सामने 22 एकड़ का जो रिवर फ्रंट बनाने की बात है, वह भी एनजीटी के आदेश की खुली अवहेलना ही होगा.

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रामनवमी की सुबह से ही दिल्ली में यमुना पर सफेद झाग छाए थे. थोड़ा करीब से देखा तो पानी निपट काला था. बदबू तो थी ही. खासकर कालिंदी कुंज पर तो लगता था कि यह नदी नहीं, बर्फ का ढेर हो. दिल्ली विधानसभा चुनाव में यमुना को साफ करने के मुद्दे पर खूब चर्चा हुई, होनी भी चाहिए थी.

लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब चुनावी नतीजे आते ही, बगैर सरकार के गठन के यमुना में कुछ ऐसी मशीन तैरती दिखीं जो कचरा साफ कर रही थीं. हालांकि इस तरह की मशीन दिखावटी अधिक होती है क्योंकि ऐसा कचरा तो यदि कोई भी नदी अविरल रहे और उसमें बरसात के दिनों में दो-चार बाढ़ आ जाए तो खुद-ब-खुद किनारे लग जाता है.

यह भी समझना होगा कि साल-दर-साल यमुना में पानी की मात्रा कम हो रही है, जबकि उसके किनारे बसे शहरों-बस्तियों की आबादी बढ़ रही है. जाहिर है कि वहां से निकलने वाले जल-मल में भी वृद्धि हो रही है और कड़वा सच यह है कि यह आधे-अधूरे  ट्रीटमेंट के बाद यमुना में मिल रहा है.

एक तरफ हम यमुना से ज्यादा पानी ले रहे हैं, दूसरा, हम इसमें  अधिक गंदगी डाल रहे हैं, तीसरा, इसमें पानी कम हो रहा है. वैसे दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार ने इस साल यमुना के मद में 500 करोड़ का प्रावधान रखा है, लेकिन कोई ठोस योजना प्रस्तुत की नहीं.

लेकिन यमुना की जमीनी हकीकत को परे  रख कर जिस तरह अहमदाबाद के साबरमती फ्रंट की तर्ज पर दिल्ली की यमुना को दमकाने की योजनाएं सरकार के खजाने  से बाहर आईं उससे जाहिर हो गया कि यमुना में निर्मल जल और विशाल जल निधि के बनिस्बत उसकी भूमि छुड़ा कर उसका व्यावसायिक इस्तेमाल करना सरकार की मंशा है.

वैसे एनजीटी सन्‌ 2015 में ही दिल्ली के यमुना तटों पर निर्माण पर पाबंदी लगा चुका है लेकिन इससे बेपरवाह  सरकारें मान नहीं रहीं. अभी एक साल के भीतर ही लाख आपत्तियों के बावजूद सराय कालेखान के पास ‘बांस घर’ के नाम से कैफेटेरिया और अन्य निर्माण हो गए. और अब यही सराय  काले खान के सामने 22 एकड़ का जो रिवर फ्रंट बनाने की बात है, वह भी एनजीटी के आदेश की खुली अवहेलना ही होगा.

यह दुर्भाग्य है कि अहमदाबाद में साबरमती फ्रंट के नाम पर पूरी नदी के पर्यावरणीय तंत्र से खिलवाड़ किया गया और वहां अब साबरमती तो लुप्त है लेकिन नर्मदा का पानी उड़ेल कर उसके किनारे विकसित हो गई व्यावसायिक गतिविधियों से केवल कमाई की जा रही है.

यहां जानना जरूरी है कि यमुना नदी के आसपास की भूगर्भ संरचना कठोर चट्टानों वाली नहीं है. यहां की मिट्टी सरंध्र है. नदी में प्रदूषण  के उच्च स्तर के कारण इसमें कई फुट गहराई तक गाद भरी है, जो कि नदी की जलग्रहण क्षमता को तो कम कर ही रही है, साथ ही पानी के रिसाव के रास्ते भी बना रही है.

इसका परिणाम यमुना के तटों पर दलदली भूमि के विस्तार के तौर पर देखा जा सकता है. जब तक हरियाणा की सीमा तक यमुनोत्री से निकलने वाली नदी की धारा अविरल नहीं आती, तब तक  दिल्ली में बरसात के तीन महीनों में कम से कम 25 दिन बाढ़ के हालात नहीं रहेंगे और ऐसा हुए बगैर दुनिया की कोई भी तकनीकी  दिल्ली में यमुना को जिला नहीं सकती.

टॅग्स :Yamuna Development Authorityदिल्लीदिल्ली सरकारDelhi Government
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