ब्लॉग: केन-बेतवा नदी को जोड़ने के गणित में घाटे का नतीजा
By पंकज चतुर्वेदी | Updated: January 3, 2025 06:44 IST2025-01-03T06:43:59+5:302025-01-03T06:44:31+5:30
दोनों नदियां लगभग समानांतर एक ही इलाके से गुजरती हुई उत्तर प्रदेश में जाकर यमुना में मिल जाती हैं.

ब्लॉग: केन-बेतवा नदी को जोड़ने के गणित में घाटे का नतीजा
लगभग 44 साल लगे नदियों को जोड़ने की संकल्पना को मूर्त रूप देने के प्रारब्ध में. इसके लिए चुना गया देश का वह हिस्सा जो सदियों से उपेक्षित, पिछड़ा और प्यास-पलायन के कारण कुख्यात रहा. 44 हजार करोड़ से अधिक का व्यय और आठ साल का समय. एकबारगी लगता है कि किन्हीं दो बहती नदियों को बस जोड़ दिया जाएगा ताकि कम पानी वाली नदी भी सदानीरा हो जाए.
असल में हो यह रहा है कि छतरपुर और पन्ना जिले की सीमा पर दौधन में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा. इस बांध की जल एकत्र करने की क्षमता होगी 2853 मिलियन क्यूबिक मीटर. योजना यह है कि यहां एकत्र केन नदी के ‘अतिरिक्त पानी’ को दौधन बांध से 221 किमी लंबी लिंक नहर के माध्यम से बेतवा नदी में डाल दिया जाएगा. कुल मिलाकर यह उस केन नदी के जल का बंटवारा है जो हर बरसात में उफनती तो है लेकिन साल में छह महीने इसमें घुटनों पानी भी नहीं रहता.
यह भी समझना होगा कि बाढ़ हर समय तबाही ही नहीं लाती. बाढ़ नदी के अच्छे स्वास्थ्य के साथ उसके आसपास बसे गांव कस्बों की समृद्धि का भी मार्ग प्रशस्त करती है. इसी जल विस्तार के कारण यहां घने जंगल हैं जो देश में सबसे अधिक बाघों के लिए सुरक्षित स्थान हैं. बाघ अकेले तो जी नहीं सकता, उसके भोजन के लिए जरूरी लाखों-लाख जानवरों का भी यह आश्रय है. इस समूचे इलाके में आदिवासियों की बस्तियां हैं और उनके जीवकोपार्जन का साधन- तेंदूपत्ता, महुआ, चिरोंजी के साथ-साथ सागवान के घने जंगल इसी बाढ़ की देन हैं.
देश की सूखी नदियों को सदानीरा नदियों से जोड़ने की बात लगभग आजादी के समय से ही शुरू हो गई थी. प्रख्यात वैज्ञानिक-इंजीनियर सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैय्या ने इस पर बाकायदा शोध पत्र प्रस्तुत किया था. उन दिनों पेड़ को उजाड़ने से सभी डरते थे. सो पर्यावरण को नुकसान, बेहद खर्चीली और अपेक्षित नतीजे न मिलने के डर से ऐसी परियोजनाओं पर क्रियान्वयन नहीं हो पाया. जब देश में विकास के आंकड़ों का आकलन सीमेंट-लोहे की खपत और उत्पादन से आंकने का दौर आया तो अरबों-खरबों की परियोजनाओं के झिलमिलाते सपने दिखाने में सरकारें होड़ करने लगीं.
नदियों का पानी समुद्र में न जाए, बारिश में लबालब होती नदियों को गांव-खेतों में घुसने के बजाय ऐसे स्थानों की ओर मोड़ दिया जाए जहां इसे बहाव मिले तथा जरूरत पर इसके पानी को इस्तेमाल किया जा सके- इस मूल भावना को लेकर नदियों को जोड़ने के पक्ष में तर्क दिए जाते रहे हैं.
लेकिन यह विडंबना है कि केन-बेतवा के मामले में तो ‘नंगा नहाए क्या और निचोड़े क्या’ की लोकोक्ति सटीक बैठती है. केन और बेतवा दोनों का ही उद्गम स्थल मध्यप्रदेश में है. दोनों नदियां लगभग समानांतर एक ही इलाके से गुजरती हुई उत्तर प्रदेश में जाकर यमुना में मिल जाती हैं. जाहिर है कि जब केन के जल ग्रहण क्षेत्र में अल्प वर्ष या सूखे का प्रकोप होगा तो बेतवा की हालत भी ऐसी ही होगी.