राजेश कुमार यादव का ब्लॉगः भारत में बढ़ती आबादी के बढ़ते दबाव
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 11, 2019 08:36 AM2019-07-11T08:36:36+5:302019-07-11T08:36:36+5:30
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की हाल में ही आई रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2019 के बीच भारत की जनसंख्या 1.2 की औसत वार्षिक दर से बढ़कर 1.36 अरब हो गई है, जो चीन की वार्षिक वृद्धि दर के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा है.
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की हाल में ही आई रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2019 के बीच भारत की जनसंख्या 1.2 की औसत वार्षिक दर से बढ़कर 1.36 अरब हो गई है, जो चीन की वार्षिक वृद्धि दर के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा है. 2019 में भारत की जनसंख्या 1.36 अरब पहुंच गई है जो 1994 में 94.22 करोड़ और 1969 में 54.15 करोड़ थी. 2027 तक भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो जाएगी. रिपोर्ट से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2050 तक भारत 164 करोड़ जनसंख्या के साथ टॉप पर पहुंच जाएगा.
आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में इतनी बड़ी आबादी की आधारभूत आवश्यकताओं जैसे-भोजन, आश्रय, चिकित्सा और शिक्षा को पूरा करना भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. उच्च प्रजनन दर, बुजुर्गों की बढ़ती संख्या और बढ़ते प्रवासन को जनसंख्या वृद्धि के कुछ प्रमुख कारणों के रूप में बताया गया है.
भारत में युवाओं की एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी है जो अकुशल, बेरोजगार सेवाओं और सुविधाओं पर भार जैसा है तथा अर्थव्यवस्था में उनका योगदान न्यूनतम है. किसी भी देश के लिए उसकी युवा जनसंख्या जनसांख्यिकीय लाभांश होती है, यदि वह कुशल, रोजगारयुक्त और अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाली हो. भारत में जनसंख्या समान रूप से नहीं बढ़ रही है.
नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, संपत्ति तथा धन के आधार पर कुल प्रजनन दर में विभिन्नता देखने को मिलती है. यह सबसे निर्धन समूह में 3.2 बच्चे प्रति महिला, मध्य समूह में 2.5 बच्चे प्रति महिला तथा उच्च समूह में 1.5 बच्चे प्रति महिला है. इससे पता चलता है कि समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में जनसंख्या वृद्धि अधिक देखने को मिलती है. जनसंख्या वृद्धि की वजह से गरीबी, भूख और कुपोषण की समस्या को प्रभावी ढंग से दूर करने और बेहतर स्वास्थ्य एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में बाधा आती है. भारतीय संदर्भ में बढ़ती आबादी का बढ़ता दबाव एक बड़ी चुनौती हैं क्योंकि भारत में वर्ष 2001 से 2011 के बीच आबादी के ग्राफ में सीधे-सीधे पैंतीस फीसदी से अधिक की वृद्धि देखी गई है.
देश में नब्बे फीसदी से अधिक लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. जिनकी सामाजिक-सुरक्षा का कोई ठिकाना नहीं हैं. वृद्धावस्था में भी सामाजिक असुरक्षा बनी हुई है. देश में 24 बरस से नीचे की युवा आबादी 44 फीसदी है. जाहिर है कि बढ़ती आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से संसाधनों के वितरण में असंतुलन पैदा हो जाता है, तब प्रतिस्पर्धा ही नहीं, संपूर्ण-संघर्ष भी बढ़ते हैं.