ब्लॉग: राहुल गांधी की 'अंग्रेजी भक्ति', भाजपा पर आरोप और इसके क्या हैं मायने
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 21, 2022 11:27 IST2022-12-21T11:25:54+5:302022-12-21T11:27:44+5:30
किसी विदेशी भाषा को पढ़ना एक बात है और उसको अपनी पढ़ाई का माध्यम बनाना बिल्कुल दूसरी बात है. किसी विदेशी भाषा को करोड़ों बच्चों पर थोपना कौनसी अक्लमंदी है?

ब्लॉग: राहुल गांधी की 'अंग्रेजी भक्ति', भाजपा पर आरोप और इसके क्या हैं मायने
राजस्थान में राहुल गांधी ने अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई की जमकर वकालत कर दी. राहुल ने कहा कि भाजपा अंग्रेजी की पढ़ाई का इसलिए विरोध करती है कि वह देश के गरीबों, किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों के बच्चों का भला नहीं चाहती है. भाजपा के नेता अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में क्यों पढ़ाते हैं?
राहुल ने जो आरोप भाजपा के नेताओं पर लगाया, वह ज्यादातर सही ही है लेकिन राहुल जरा खुद बताएं कि वह खुद और उनकी बहन क्या हिंदी माध्यम की पाठशाला में पढ़े हैं? देश के सारे नेता या भद्रलोक के लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में इसीलिए भेजते हैं कि भारत में सभी ऊंची नौकरियां अंग्रेजी माध्यम से मिलती हैं.
भाजपा ने अपनी नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा को स्वभाषा के माध्यम से चलाने का आग्रह किया है, जो कि बिल्कुल सही है. लेकिन भाजपा और कांग्रेस, दोनों की कई प्रांतीय सरकारें अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को प्रोत्साहित कर रही हैं.
किसी विदेशी भाषा को पढ़ना एक बात है और उसको अपनी पढ़ाई का माध्यम बनाना बिल्कुल दूसरी बात है. मैंने पहली कक्षा से अपनी अंतरराष्ट्रीय पीएचडी तक की परीक्षाएं हिंदी माध्यम से दी हैं. स्वभाषा के माध्यम से पढ़ने का अर्थ यह नहीं है कि आप विदेशी भाषाओं का बहिष्कार कर दें. मैंने हिंदी के अलावा संस्कृत, जर्मन, रूसी और फारसी भाषाएं भी सीखीं. अंग्रेजी तो हम पर थोप ही दी जाती है.
राहुल का यह तर्क सही है कि गरीब और ग्रामीण वर्ग के बच्चे अंग्रेजी स्कूलों में नहीं पढ़ते, इसलिए वे पिछड़ जाते हैं. वे भी अंग्रेजी पढ़ें और अमेरिका जाकर अमेरिकियों को भी मात करें. राहुल की यह बात मुझे बहुत पसंद आई लेकिन मैं पूछता हूं कि हमारे कितने विद्यार्थी अमेरिका या विदेश जाते हैं? कुछ हजार छात्रों की वजह से करोड़ों छात्रों का दम क्यों घोंटा जाए?
जिन्हें विदेश जाना हो, वे साल-दो साल में उस देश की भाषा जरूर सीख लें लेकिन किसी विदेशी भाषा को 16 साल तक पढ़ाई का माध्यम बनाना और उसे करोड़ों बच्चों पर थोपना कौनसी अक्लमंदी है?