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जगन के फॉर्मूले पर अपनी किस्मत पलट सकते हैं राहुल गांधी

By रोहित कुमार पोरवाल | Published: May 27, 2019 1:52 PM

एक बार जगन की मां विजयम्मा ने कहा था कि अगर राहुल गांधी पीएम बन सकते हैं तो मेरा बेटा सीएम क्यों नहीं? राहुल गांधी जगन की लगन वाली मेहनत से सबक ले सकते हैं। हालांकि, उनकी चुनौती बड़ी होगी क्योंकि उन्हें पहाड़ जैसे मोदी तिलिस्म से जूझना होगा...

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ठळक मुद्देलोकसभा चुनाव में मिली बड़ी हार को सफलता में बदलने का मौका अभी राहुल गांधी के हाथ से गया नहीं है।आंध्र प्रदेश में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाले जगन मोहन रेड्डी के फॉर्मूले पर राहुल सफलता हासिल कर सकते हैं।

2 सितंबर 2009, आंध्र प्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री, चार बार सांसद, पांच बार विधायक रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। वह अपने जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारे थे। 2004 में उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस से ही राजनीतिक पारी शुरू की और 2009 में पार्टी के टिकट पर कड़प्पा लोकसभा सीट से सांसद बन गए। 

जगन के पिता यानी वाईएसआर की मौत के सदमे में 100  से ज्यादा लोगों ने आत्महत्याएं की थीं। जगन ने उन सभी के घर-घर जाकर 'ओदारपू यात्रा' (शोक यात्रा) शुरू की। दिल्ली के 10 जनपथ को यह गंवारा नहीं था। वजह थी पिता की मौत के बाद जगन सूबे के मुख्यमंत्री बनाए जाने के प्रबल दावेदार थे और गांधी परिवार के सलाहकार उनके खिलाफ सोनिया गांधी के कान भर चुके थे। 

जगन की मां विजयम्मा दिल्ली में सोनिया से मिलने पहुंची तो फरमान मिला कि यात्रा तुरंत रोक दी जाए। रेड्डी परिवार को हाईकमान का यह फरमान नागवार गुजरा। जगन ने कांग्रेस छोड़ नई पार्टी खड़ा करने का विचार परिवार के सामने रखा। 29 नवंबर 2010 को जगन ने इस्तीफा दिया और करीब हफ्ते भर बाद 7 दिसंबर 2010 को एलान कर दिया कि 45 दिन के अंदर नई पार्टी बनाएंगे। 

ईस्ट गोदावरी जिले के जग्गमपेटा से उन्होंने अपने पिता के नाम से पार्टी शुरू की। नाम रखा वाईएसआर कांग्रेस पार्टी। मजे की बात यह भी है कि वाईएसआर का मतलब युवजन श्रमिका रायथू भी होता है और उसका मतलब होता है युवा, मजदूर और किसान। उपचुनाव हुए। जगन कड़प्पा से करीब साढ़े पांच लाख मतों के अंतर से जबरदस्त तरीके से जीत गए। 

केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। 2012 में जगन पर गबन के आरोप लगे। वह नेता के साथ-साथ सीमेंट कंपनी और साक्षी टीवी के मालिक भी हैं। सीबीआई की जांच का चाबुक चला और जगन सलाखों के पीछे पहुंच गए। जगन का परिवार आरोप लगाता है कि कांग्रेस के इशारे पर सीबीआई जबरन उन्हें प्रताड़ित करती रही। 

जगन जेल मे थे, इधर के चंद्र शेखर राव आंध्र प्रदेश के विभाजन पर तुले थे अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर। जगन ने जेल में और उनकी मां ने बाहर भूख हड़ताल शुरू कर दी। 125 घंटे मुंह में दाना पानी नहीं गया तो सुगर लेवल और ब्लड प्रेशर डाउन चला गया। अस्पताल में भर्ती कराए गए। इधर यूपीए तेलंगाना बना चुकी थी। रेड्डी परिवार के आह्वान पर 72 घंटे का बंद भी राज्य के टुकड़े होने से उसे नहीं बचा सका। तेलंगाना के फैसले के खिलाफ जगन और उनकी मां ने अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। 

2014 में विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 175 में से केवल 67 सीटें ही जीत पाई और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ने 2 फीसदी ज्यादा वोट शेयर जुटाकर सरकार बना ली। 

विधानसभा में विपक्ष के नेता जगन ने 6 नवंबर 2017 को लगभग 3000 किलोमीटर लंबी प्रजा संकल्प पदयात्रा शुरू कर दी। पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए जगन ने पदयात्रा का संकल्प लिया था। दरअसल, 2003 में जगन के पिता वाईएसआर ने भयंकर गर्मी के दौरान तीन महीने तक 1475 किलोमीटर लंबी पदयात्रा कर चुनाव अभियान चलाया था। फलस्वरूप 2004 और 2009 में उन्होंने कांग्रेस को आम और विधानसभा चुनाव में सूबे से जीत दिलाई थी।

 

जगन अपनी पदयात्रा के दौरान 13 जिलों के अंतर्गत आने वाले 125 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरे। 430 दिनों तक चली उनकी पदयात्रा 9 जनवरी 2019 को पूरी हुई। इस दौरान जगन ने राज्य को पैदल नाप डाला। आंध्र का एक भी तटीय इलाका उनसे नहीं छूटा। वह लोगों के बीच जाते और उनका दुख दर्द बांटते, उनकी समस्याएं सुनते और सत्ता में आने पर समाधान करने का वादा करते रहे। पदयात्रा के दौरान उन्होंने किसान वर्ग का भरोसा जीतने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। 

पदयात्रा के बीच ही उन्हें 25 अक्टूबर 2018 को हैदराबाद स्थित सीबीआई कोर्ट में तलब किया गया, जिसके लिए जाते समय विशाखापट्टनम एयरपोर्ट पर जानलेवा हमला भी हुआ। चाकू ने कंधे में घाव किया। सर्जरी के बाद उनकी जान बच गई।

2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में जगन को उनकी प्रजा संकल्प पदयात्रा का फल मिल गया। 175 विधानसभा सीटों में से वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने सूबे की 151 सीटें जीतीं और लोकसभा की सभी 22 सीटें भी।

देश में मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद जगन ने ऐतिहासिक जीत हासिल की और पीएम मोदी ने भी उनके पुरुषार्थ की वंदना की, उन्हें बधाई दी। अगर बीजेपी कहीं 250 सीटों पर अटक गई होती तो जगन किंग मेकर होते। यह बात सब जानते हैं, खुद जगन भी। 

करीब महीने भर पहले तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू ने एक जनसभा में जगन को मोदी का पालतू कुत्ता कहा था और कहा था कि एक बिस्किट के लिए वह दुम हिलाते रहेंगे और एक भी सीट नहीं जीत पाएंगे। आज चंद्रबाबू नायडू की हालत किसी से छिपी नहीं है।

एक बार जगन की मां विजयम्मा ने कहा था कि अगर राहुल गांधी पीएम बन सकते हैं तो मेरा बेटा सीएम क्यों नहीं? 

राहुल गांधी जगन की लगन वाली मेहनत से सबक ले सकते हैं। हालांकि, उनकी चुनौती बड़ी होगी क्योंकि उन्हें पहाड़ जैसे मोदी तिलिस्म से जूझना होगा और लाखों किलोमीटर में फैले देश को पैरों से नापना होगा। 

वह बस एक साधारण मानव, साधारण कार्यकर्ता की तरह पैन-डायरी लेकर देश का दर्शन करने निकल जाएं। गांव-गांव घूमें, लोगों के बीच रहें और करीब से असल भारत को देखें, कुछ भूखे भी रहें, हो सके तो हफ्ते में एक दिन व्रत रख लें और भारत की नब्ज की थाह लें। हर अनुभव को लिखते रहें, साझा करते रहें। 

अगर वाकई हार का अवसाद और राजकुमार के मोह से बाहर निकल राहुल गांधी अभी से देशव्यापी पदयात्रा में खुद को खपा दें तो निश्चित ही सही मायने में जन-गण-मन से जुड़ पाएंगे और ओजस्वी नेता का व्यक्तिव बना पाएंगे। बहरहाल, मोदी सरकार के इन पांच वर्षों की अवधि के दौरान राहुल पूरे देश की पदयात्रा न भी कर पाएं तो भी वह काफी हद तक इसमें आगे निकल जाएंगे। 

पदयात्रा के बावजूद 2023 में वह चुनाव भले जीतें न जीतें, खुद से जरूर जीत जाएंगे और खुद की जीत किसी भी विश्वयुद्ध की जीत से कम नहीं होती है।

और नेहरू जी के बाद एक शानदार किताब भी सबके सामने होगी- डिस्कवरी ऑफ इंडिया वाई राहुल गांधी। 

कोशिशों में सत्यनिष्ठा और दम हो तो देर सबेर ही सही, उसका फल मिलता जरूर है।

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