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ब्लॉग: प्रधानमंत्री ने सच कहा कि गरीबी ही सबसे बड़ी जाति है

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: October 5, 2023 10:06 IST

चुनाव जीतना सभी राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होता है और वे जीतने के लिए वोट बैंकों पर निशाना साधकर मुद्दे उठाते रहते हैं लेकिन विडंबना देखिए कि जातिवार जनगणना तथा ओबीसी आरक्षण की गूंज के बीच एक हृदयविदारक घटना पर किसी राजनीतिक दल का ध्यान नहीं गया.

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ठळक मुद्देआर्थिक पिछड़ेपन का हवाला देकर विपक्षी दल देश में जातिवार जनगणना करवाने पर जोर दे रहे हैं.जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जाएंगे, जातिवार जनगणना तथा ओबीसी आरक्षण की मांग जोर पकड़ती जाएगी.गरीबी से तंग आकर इस मजदूर दंपति ने अपनी तीनों बेटियां को जहर देकर मार डाला.

आर्थिक पिछड़ेपन का हवाला देकर विपक्षी दल देश में जातिवार जनगणना करवाने पर जोर दे रहे हैं. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को भी पर्याप्त आरक्षण देकर उनके साथ आर्थिक-सामाजिक न्याय करने की मांग भी जोर पकड़ रही है. जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जाएंगे, जातिवार जनगणना तथा ओबीसी आरक्षण की मांग जोर पकड़ती जाएगी. 

चुनाव जीतना सभी राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होता है और वे जीतने के लिए वोट बैंकों पर निशाना साधकर मुद्दे उठाते रहते हैं लेकिन विडंबना देखिए कि जातिवार जनगणना तथा ओबीसी आरक्षण की गूंज के बीच एक हृदयविदारक घटना पर किसी राजनीतिक दल का ध्यान नहीं गया. तीन दिन पूर्व पंजाब के जालंधर में एक संदूक से तीन छोटी बच्चियों की लाश मिली थी. 

ये तीनों बच्चियां 4 से 9 वर्ष की उम्र के बीच की थीं और सगी बहनें थीं. उनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे. उनकी आमदनी इतनी कम थी कि वे अपनी बेटियों का पेट भरने में खुद को असमर्थ पा रहे थे. 

गरीबी से तंग आकर इस मजदूर दंपति ने अपनी तीनों बेटियां को जहर देकर मार डाला. वोट की खातिर हर छोटे-बड़े मसले पर शोर मचाने वाले राजनीतिक दलों का दिल इस घटना पर नहीं पसीजा क्योंकि पंजाब में निकट भविष्य में विधानसभा के चुनाव नहीं हैं और इन मौतों को लेकर राजनीतिक दल किस पर आरोप-प्रत्यारोप करते. 

गरीबी तो पूरे देश में है, उस पर शोर मचाकर क्या फायदा होने वाला है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ के नक्सलप्रभावित जिले जगदलपुर में एक आमसभा को संबोधित करते हुए जातिवार जनगणना की राजनीति करने वाले तत्वों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उनके लिए गरीबी ही सबसे बड़ी जाति और सबसे बड़ी आबादी है. 

विपक्षी दल भले ही प्रधानमंत्री के इस बयान को राजनीति के चश्मे से देखें लेकिन मोदी ने कटु सत्य कहा है और इस सत्य को अगर सभी राजनीतिक दल अपने संकीर्ण सवालों से परे हटकर स्वीकार कर लें तो गरीबी के खिलाफ सत्तारूढ़ दल तथा विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर संघर्ष कर सकती हैं. इससे गरीबी के जल्दी उन्मूलन में भी मदद मिलेगी. प्रधानमंत्री का कथन देश में आर्थिक असमानता की वास्तविक तस्वीर पेश करता है. 

गरीबी किसी जाति, समुदाय, संप्रदाय या धर्म से जुड़ी हुई नहीं है. समाज का हर तबका चाहे वह किसी भी धर्म, समुदाय या जाति से ताल्लुक रखता हो, गरीबी की समस्या से जूझ रहा है. आजादी के बाद जितनी भी सरकारें आईं, सबने गरीबी खत्म करने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास किए लेकिन गरीबी खत्म नहीं हुई. भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. 

अगले चार-पांच वर्षों में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है. इसका मतलब तो यह होना चाहिए कि देश से गरीबी का खात्मा हो रहा है लेकिन यह पूरा सच नहीं है. आंकड़ों के लिहाज से भारत भले ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका हो लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह थाईलैंड, मलेशिया जैसे देशों से भी बहुत पीछे है. 

आज अगर 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है, राज्य सरकारें भी नाममात्र की दरों या मुफ्त में राशन बांट रही हैं, तो इसका मतलब साफ है कि गरीबी आज भी देश में सबसे बड़ी और सबसे गंभीर समस्या है तथा प्रधानमंत्री का यह कथन एकदम सच है कि गरीबी ही सबसे बड़ी आबादी तथा सबसे बड़ी जाति है. 2004 से 2014 के बीच 26 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले. 

मोदी सरकार के साढ़े नौ वर्ष के शासनकाल में 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी से मुक्ति मिली. कहने का मतलब यह है कि पिछले लगभग दो दशकों में 39 करोड़ लोगों को गरीबी के जाल से बाहर निकालने में सफलता मिली. आंकड़े सच हो सकते हैं लेकिन गरीबी रेखा से बाहर आने का जो पैमाना वार्षिक आमदनी के रूप में निर्धारित किया गया है, वह अब अप्रासंगिक हो गया है. 

रोजमर्रा के न्यूनतम खर्चे के हिसाब से उसे संशोधित किया जाना चाहिए. जालंधर में अपनी बच्चियों को जहर देकर मार देने वाले माता-पिता मिलकर भी इतना कमा नहीं पाते कि परिवार का गुजारा हो सके. इसीलिए निर्धनता का आकलन किया जाना चाहिए. इससे गरीबी खत्म करने के लिए नए सिरे से ठोस तथा व्यावहारिक योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी.

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