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पीयूष पांडे का ब्लॉग: कुंडली में ‘ट्रोल योग’ का महत्व

By पीयूष पाण्डेय | Updated: March 6, 2021 14:01 IST

‘ट्रोल’ का शाब्दिक अर्थ है- फुसलाना, मछली फंसाना, पीछा करना वगैरह. सोशल मीडिया पर इसका अर्थ बदलकर हो जाता है सामने वाले की ऐसी-तैसी करना, मातृ-पितृ संबंधी शब्दों के उपयोग से व्यक्ति की लानत-मलानत करना.

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एक जमाना था, जब लोग ज्योतिषियों से अपनी कुंडली में राज योग के विषय में पूछा करते थे. अब समझदार लोग ‘ट्रोल योग’ के विषय में पूछते हैं. ‘ट्रोल योग’ बहुत दुर्लभ योग है, जो चंगू-मंगू टाइप के आम आदमी की कुंडली में कभी नहीं विराजता.

आधुनिक ज्योतिषी इस योग को राज योग से भी अधिक प्रभावशाली ‘महाराज योग’ की संज्ञा देते हैं. जानकार बताते हैं कि जिस व्यक्ति की कुंडली में प्रभावशाली ट्रोल योग होता है, वह व्यक्ति कालांतर में बिग बॉस के घर से होते हुए राजनीतिक दल में पहुंचता है और फिर शीर्ष राजनीतिक पद पर विराजमान हो स्वयं अपने हाथों से देश की ऐसी-तैसी करता है.

‘ट्रोल’ का शाब्दिक अर्थ है- फुसलाना, मछली फंसाना, पीछा करना वगैरह. सोशल मीडिया पर इसका अर्थ बदलकर हो जाता है सामने वाले की ऐसी-तैसी करना, मातृ-पितृ संबंधी शब्दों के उपयोग से व्यक्ति की लानत-मलानत करना.

आप सोच रहे होंगे कि ट्रोल के अर्थ ऐसे हैं तो क्यों कोई व्यक्ति कुंडली में ट्रोल योग चाहेगा? तो जनाब बात ऐसी है कि जितनी चर्चा बंदे को अवॉर्ड मिलने या अवॉर्ड वापस करने से नहीं मिलती, उतनी एक बार कायदे से सोशल मीडिया पर ट्रोल होने से मिल जाती है. बंदा साल में चार-छह बार धुआंधार तरीके से ट्रोल हो जाए तो उसकी तरक्की के नए मार्ग खुल जाते हैं.

वो यदि किसी राजनीतिक वजह से ट्रोल हुआ तो जिस दल की तरफ से बंदे ने गालियां खाईं, उस दल में उसका सम्मान बढ़ जाता है. कुछ युवा ट्रोल होकर टिकट पा गए और कुछ ठेके. कुछ अवसरों पर ट्रोल होकर बंदा स्थानीय स्तर पर उद्घाटनकर्ता बन जाता है. जिस तरह मांगे मिले न भीख, वैसे ही ट्विटर पर कितनी भी अपील कीजिए फॉलोअर्स नहीं मिलते. लेकिन ट्रोल होते ही फॉलोअर्स टिड्डी के दल की तरह एकाउंट से चिपक जाते हैं.

जिस तरह पिछले जन्म के पुण्य से व्यक्ति को इस जन्म में बड़े भ्रष्टाचार का अवसर मिलता है, उसी तरह कम-से-कम तीन जन्मों के पुण्य जब जमा हो जाते हैं तो व्यक्ति को सोशल मीडिया पर ‘कांबो ऑफर’ के रूप में ट्रोल होने का अवसर मिलता है. बंदा चाहने से न भ्रष्ट हो सकता है न ट्रोल.

मैं स्वयं पिछले कई दिनों से ट्रोल होने के लिए ट्विटर और फेसबुक पर ऊल-जुलूल लिख रहा हूं, लेकिन एक बार भी ट्रोल होने का सौभाग्य नहीं मिला. हद ये कि सम्मान बचाने के चक्कर में एक बार दो दोस्तों को पैसे देकर मैंने स्वयं को गालियां दिलवाईं.  

ट्रोल होना भाग्य की बात है. हर ट्रोलर मन ही मन ईश्वर से चाहता है कि एक दिन वो स्वयं ट्रोल हो. लेकिन व्यक्ति के जीवन में चाहने से कहां कुछ होता है?

टॅग्स :सोशल मीडियाट्विटर
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