विश्वनाथ सचदेव
‘‘मेरे प्रिय वल्लभभाई, गांधीजी की मृत्यु के बाद अब हमें एक भिन्न, और मुश्किल विश्व का सामना करना है। आपके और मेरे बारे में जो बातें उड़ रही हैं, उनसे मैं बहुत व्यथित हूं। यदि हम में कुछ मतभेद हैं भी तो इन अफवाहों में उन्हें बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है। इस शरारत को हमें खत्म करना ही होगा।’’
‘‘चौथाई सदी से अधिक अर्से से आप और मैं मिलकर तूफानों और संकटों का मुकाबला करते रहे हैं। आज जो संकट हमारे सामने आया है, मुङो लगता है, यह मेरा कर्तव्य है, और यदि मैं कह सकता हूं तो आपका भी, कि हम दोनों मित्न और सहयोगी की तरह मिलकर उसका सामना करें। हमें दिखावा नहीं करना है, लेकिन एक-दूसरे के प्रति पूर्ण निष्ठावान बनकर और एक-दूसरे में पूरे विश्वास के साथ यह काम करना है।’’
यह उस महत्वपूर्ण पत्न का हिस्सा है जो स्वतंत्न भारत के पहले प्रधानमंत्नी जवाहरलाल नेहरू ने देश के पहले उपप्रधानमंत्नी सरदार वल्लभभाई पटेल को गांधीजी की हत्या के बाद, 3 फरवरी 1948 को लिखा था। जब नेहरू यह पत्न लिख रहे थे, शायद तभी वल्लभभाई पटेल ने भी उम्र में अपने से छोटे, पर बरसों के अपने साथी जवाहरलाल नेहरू को एक पत्न लिखा था। इस पत्न में उन्होंने कुछ लोगों द्वारा ‘गृह मंत्नी पटेल’ का इस्तीफा मांगने को सही बताते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने की पेशकश की थी।
लेकिन यह पत्न वे भेज पाते, उससे पहले ही उन्हें नेहरू का उपरोक्त पत्न मिल गया था। पांच फरवरी को उन्होंने जवाहरलाल के पत्न का जवाब देते हुए लिखा था, ‘‘आपके पत्न ने मुङो गहरे तक छुआ है, मैं अभिभूत हूं। हम आजीवन साथी रहे हैं।। दृष्टिकोण और स्वभाव के अंतर के बावजूद।।देश के हित और पारस्परिक स्नेह और आदर के भाव ने हमें एक-दूसरे से जोड़े रखा है। मेरा सौभाग्य था कि मैं बापू के निधन से ठीक पहले एक घंटे से अधिक समय तक उनसे बात कर सका। उनका मत भी हम दोनों को एक-दूसरे से जोड़ता है।’’
स्वतंत्न भारत के इतिहास के उस महत्वपूर्ण दौर में देश के इन दो महान नेताओं की एक-दूसरे के प्रति यह भावना बापू के निधन की पीड़ा तो दर्शाती ही है, उन दोनों के रिश्तों की ऊष्मा का अहसास भी अनायास करा देती है। जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल को लिखे अपने पत्न में ‘मैत्नी और सहयोग’ की जिस भावना का जिक्र किया, नए स्वतंत्न हुए भारत के समूचे नेतृत्व ने उस भावना के अनुरूप कार्य किया था। उस नेतृत्व की दूरदृष्टि और संयुक्त प्रयासों का ही परिणाम है कि आज हमारा भारत अपने अस्तित्व की महत्ता को प्रमाणित कर रहा है।
महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू ने जिस परिपक्वता का परिचय दिया था, वह समूचे भारत के अबतक के नेतृत्व और आने वाले नेतृत्व के लिए एक मिसाल है। वैचारिक और वैयक्तिक मतभेद होने स्वाभाविक हैं, लेकिन समाज और राष्ट्र के हितों का तकाजा है कि वे मतभेद हमारे कर्तव्यों पर हावी न हों। सच तो यह है कि राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा किसी भी कीमत पर नहीं होनी चाहिए।
31 अक्तूबर को सारा देश सरदार पटेल को उनकी जन्म-जयंती के उपलक्ष्य में याद करता है। सरदार पटेल ने हमें निरंतर जागरूकता और सतत प्रयास का पाठ पढ़ाया था, सिखाया था कि राष्ट्र-हित सर्वोपरि है। गांधीजी ने कहा था, ‘‘सरदार का दिल इतना बड़ा है कि उसमें सब समा सकते हैं।’’ आज उसी बड़े दिलवाली राजनीति की आवश्यकता है। सत्ता की संकुचित राजनीति में लगे हमारे नेता यह बात कब समङोंगे?