जितने पैसों में बनी है 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' उतने में 42 हजार गरीबों को मिल जाते फ्लैट, ये 6 बड़े काम भी हो जाते
By उस्मान | Published: October 31, 2018 05:35 PM2018-10-31T17:35:38+5:302018-10-31T17:35:38+5:30
भारत की केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, सभी पैसे की कमी का रोना रोती रहती हैं। ऐसे में एक प्रतिमा बनाने के लिए हजारों करोड़ खर्च करना कितना नैतिक और न्यायसंगत है? आइए देखते हैं जितने पैसे इस प्रतिमा को बनाने में खर्च हुए उनसे गरीबों और आम लोगों की बेहतरी के लिए कौन से काम किये जा सकते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (31 अक्टूबर) को गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर आजाद भारत के पहले गृहमंत्री और लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल पटेल की प्रतिमा 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' का अनावरण किया। दुनिया की सबसे उंची यह प्रतिमा गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार सरोवर बांध पर बनी है। इस 182 मीटर ऊंची प्रतिमा को तैयार होने में पांच साल का वक्त लगा है और लगभग चार हजार मजदूरों ने इसे बनाने में पसीना बहाया है। 2989 करोड़ रुपये की लागत से बने 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' को दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा कहा जा रहा है और इसे पर्यटन के क्षेत्र में एक बड़ा कदम भी बताया जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस प्रतिमा को देखने के लिए रोजाना करीब 15 हजार पर्यटक देखने आने वाले हैं। कुल मिलाकर इस प्रतिमा को 'देश का विकास हो रहा है' के नाम पर पेश किया जा रहा है।
अब जरा असलियत पर आते हैं। साल 2014 के मानक के अनुसार भारत के ग्रामीण इलाके में हर रोज 32 रुपये से कम और शहरी इलाके में प्रति दिन 47 रुपये से कम खर्च करने वालों को सरकार ग़रीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवनयापन करने वाला मानती है। भारत सरकार के अनुसार करीब 25 प्रतिशत भारतीय (करीब 30 करोड़) गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजार रहे हैं। भारत की केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, सभी पैसे की कमी का रोना रोती रहती हैं। ऐसे में एक प्रतिमा बनाने के लिए हजारों करोड़ खर्च करना कितना नैतिक और न्यायसंगत है? आइए देखते हैं जितने पैसे इस प्रतिमा को बनाने में खर्च हुए उनसे गरीबों और आम लोगों की बेहतरी के लिए कौन से काम किये जा सकते थे।
1) 20 हजार लोगों को मिल जाते डीडीए फ्लैट
दिल्ली सरकार बीच-बीच में गरीबों के लिए डीडीए हाउसिंग स्कीम के तहत लकी ड्रा के जरिए फ्लैट की देती है। इसके एक जनता फ्लैट की कीमत 7 लाख से 15 लाख के बीच है। अगर हम सबसे सस्ते 7 लाख के फ्लैट की बात करें, तो इतने रुपयों में दिल्ली के लगभग 42 हजार लोगों को घर मिल सकता था।
2) एम्स का बजट हो जाता दोगुना
वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर अब तक केंद्र सरकार ने 4365.38 करोड़ रुपये देश भर में 20 एम्स स्थापित करने के लिए खर्च किये हैं। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार इनमें से केवल छह एम्स अभी तक चालू हुए हैं। स्टैचू ऑफ यूनिटी को बनाने में जितना पैसा खर्च किया है उतने में एम्स का बजट दोगुना किया जा सकता था।
3) 30 फीसदी और बढ़ जाता मिड डे मील का बजट
भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में मिड डे मील के लिए 10 हजार 500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था। मिड डे मील के तहत सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को दोपहर का भोजन खिलाया जाता है। लगभग तीन हजार करोड़ रुपये में बच्चों को खाना देने का बजट करीब 30 फीसदी बढ़ जाता।
4) 6 मंगलयान और भेजे जा सकते थे
साल 2014 में जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह के लिए निरीक्षण के लिए मंगलयान भेजने में सफलता हासिल की तो पूरी दुनिया में उसकी तारीफ हुई। भारत के मंगलयान को तैयार करने में करीब 450 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। जाहिर है भारतीय वैज्ञानिकों की तरह मोदी सरकार भी किफायती होती तो 3000 करोड़ में भारत 6 मंगलयान और अंतरिक्ष में भेज सकता था।
5) हेल्थ का बजट बढ़ सकता 6 फीसदी
एक कहावत है 'जान है, तो जहां है'। घूमना-फिरना, मौज-मस्ती करना तो जीवनभर चलता रहता है। लेकिन अगर किसी के परिवार में कोई बीमार हो जाए, तो ये सारी चीजें धरी रह जाती हैं। इस बार आम बजट में सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 52,800 करोड़ की घोषणा की। यानी स्टैचू पर खर्च होने वाले पैसों को अगर इसमें जोड़ दिया जाए तो यह बजट लगभग 6 फीसदी और बढ़ सकता था।
6) मनरेगा में 12 करोड़ लोगों को मिल जाता एक दिन का रोजगार
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वित्त वर्ष 2018-19 का बज़ट पेश करते हुए महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) के लिए 55 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये थे। मनरेगा के तहत देश के ग्रामीण इलाकों के मजदूरों को साल के 365 दिनों में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिया जाता है। स्टैचू ऑफ यूनिटी पर खर्च किये गये तीन हजार करोड़ रुपयों में मनरेगा के तहत देश 12 करोड़ लोगों को एक दिन का रोजगार दिया जा सकता था।