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ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी: सिखों के जख्मों पर कौन मरहम लगाएगा 

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 7, 2025 20:00 IST

सिख समाज की पीड़ा को कम किया जा सके और ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्म को भरा जा सके। 

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ठळक मुद्देऑपरेशन ब्लू स्टार एक प्रधानमंत्री की जिद और इगो की देन था। सियासत की रोटी कौन किसके चूल्हे पर पका रहा है।

सरदार जसवंत सिंह नामधारी

ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41 वीं बरसी पर पंजाब या देश में शांतिपूर्ण माहौल रहा। स्वर्ण मंदिर अमृतसर में कुछ नारे लगाए गए, लेकिन प्रमुख जत्थेदार ने बहुत ही धैर्य के साथ मामले को संभाल लिया, लेकिन 40 साल बीतने के बाद भी  केंद्र और राज्य सरकार कोई नीति नहीं बना पा रही हैं, जिसके जरिए सिख समाज की पीड़ा को कम किया जा सके और ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्म को भरा जा सके। 

ऑपरेशन ब्लू स्टार एक प्रधानमंत्री की जिद और इगो की देन था। अकालियों को दबाने के लिए कांग्रेस ने जो षडयंत्र किया, उसी ने अलगाववाद की नींव डाल दी। संत भिंडरवाले एक मोहरा बने और अन्ततः उन्हें भी एक झूठे नैरेटिव के जरिए खत्म कर दिया गया। इस पूरे राजनीतिक खेल से आम सिख दूर था और उसे इस बात से मतलब भी नहीं था, कि सियासत की रोटी कौन किसके चूल्हे पर पका रहा है।

आम सिख की भावना तब आहत हुई, जब स्वर्ण मंदिर में सेना भेजी गई। पवित्र धर्मस्थल और धर्मग्रंथ की बेअदबी की गई। सड़कों पर टैंक और मंदिर में तोप तैनात कर दिए गए। यह एक तरह से सिखी के खिलाफ हमले की तरह था। बहुत निर्दोष सीखो को मारा गया और बड़ी संख्या में जेल में डाल दिया गया। अपने ही देश के एक नव आंदोलन को कुचलने के लिए दुश्मनों जैसा व्यवहार किया गया।

दुर्भाग्य से इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। मारने वाले उनके ही अंगरक्षक थे, लेकिन दोषी पूरे सिख समाज को मान लिया गया। फिर कभी ना भूलने वाला हत्याकांड हुआ, सिखों का नरसंहार किया गया। खालिस्तान आम सिखों का आंदोलन नहीं है। ना ही कोई सिख देश के टुकड़े होने का जिम्मेदार बनना चाहता है। सिखी का उदय ही समाज और देश की रक्षा के लिए हुआ है।

सिख समाज कितना समावेशी और उदार है, इसका उदाहरण पंजाब ही है। जिस कांग्रेस ने पंजाब में उग्रवाद और हिंसा परस्त नीतियों को बढ़ावा देकर राज्य को विघटन के मोड़ पर ला दिया था, उसी कांग्रेस को ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के दंगे के बाद भी लोगों ने सत्ता सौंपा। यह इस बात का जवाब है कि सिख भारत और भारतीयता के साथ हैं कि नहीं। 

राजनीतिक समीकरणों और सत्ता के खेलों से अलग आम सिख पिछले चार दशकों से यह इंतजार कर रहा है कि उसके जख्म और उसके प्रति अत्याचार की कोई सुध कब लेगा। उसकी भावनाओं को पैरों तले रौंदने वालों की पहचान कर और उनको सजा दिलाकर कोई उन्हें मरहम लगाएगा कि नहीं।

उनकी पगड़ी और उनके नाम के प्रति अविश्वास का एक माहौल जो बनाया गया, उस माहौल को बदला जाएगा कि नहीं। उनकी खेती, विरासत और उनके बच्चों को नशे से बचाने के लिए कोई आगे आयेगा कि नहीं। आम सिख को कांग्रेस से कोई बड़ी उम्मीद नहीं है। कांग्रेस के मुखौटे के पीछे का चेहरा भयावह और डरावना है।

बावजूद इसके यदि पंजाब में कांग्रेस की जमीन बची है तो इसके लिए पंजाब के लोगों के सामने विकल्पहीनता ही कारण है। पंजाब ने अकाली और बीजेपी पर भरोसा किया भी था, लेकिन वह भरोसा भ्रष्टाचारियों और नशे के सौदागरों ने मिल कर तोड़ दिया। आम आदमी पार्टी के नाम पर नया प्रयोग बुरी तरह फैल हुआ है।

पंजाब में इस समय लोगों के बीच असर रखनेवाले राजनेताओं का सूखा पड़ा हुआ है। राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी ही अराजक तत्वों की मजबूती है। कोई भी अभिभावक अराजक तत्वों के साथ अपने बच्चों को खड़ा देखना नहीं चाहता, यही कारण है कि सभी अपनी औलादों को बाहर भेज देना चाहते हैं। लेकिन अब वे वहां भी सुरक्षित नहीं हैं। भारत विरोधी शक्तियां उन्हें टारगेट कर रही हैं।

उन्हें बरगलाने में लगी हुई हैं। भारतीय जनता पार्टी का यह दायित्व था कि पंजाब के लोगों को मझधार में ना छोड़े। जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से हर सच्चे सिख के मन में यह भाव है कि उनकी भावनाओं को समझने वाला एक शख्स प्रधानमंत्री के रूप में देश में है। यह विश्वास और प्रगाढ़ तब हुआ, जब मोदी ने सिख दंगों के दोषियों को सजा दिलाने का गंभीर प्रयास किया, और परिणाम भी सामने आया।

सज्जन कुमार जैसे लोग जेल की सलाखों के पीछे है, तो इसका श्रेय प्रधानमंत्री को ही जाता है। करतारपुर कॉरिडोर का उपहार, शहीदी दिवस की घोषणा, गुरुग्रंथ साहिब की अफगानिस्तान से सादर वापसी और सिख प्रतीकों के प्रति उनका नत्मस्तक होना बताता है कि उनके अंदर एक सच्चा सिख भी रहता है। वावजूद इसके पंजाब में बीजेपी अपनी जमीन नहीं बना पा रही है।

पिछले 10 साल के चुनाव परिणाम बताते हैं कि बीजेपी पंजाब के लोगों की पहली पसंद नहीं है। कारण साफ है, पंजाब के लोग सहमे हुए हैं, जो भारत विरोधी ताकतें हैं उनका भय आम आदमी में बैठा हुआ है। उन्हें यह बीजेपी यकीन नहीं दिला सकी है, कि विपरीत परिस्थितियों के रहते हुए भी उनकी रक्षा कर सकती है। अराजक तत्वों को तर्क और तरकश दोनों में हरा सकती है।

जमीनी लोगों को अपने साथ जोड़ने में भी बीजेपी विफल हो रही है। भाड़े के नेताओं का चरित्र पहले से लोगों को मालूम है। वे क्यों यकीन करेंगे। बीजेपी नेतृत्व को इतना तो समझना चाहिए कि जले हुए तेल का पकवान स्वादिष्ट नहीं हो सकता। एक अच्छे प्रधानमंत्री साबित हो चुके नरेंद्र मोदी को पंजाब के लोग पसंद ना करे, ऐसा हो नहीं सकता। ऑपरेशन ब्लू स्टार की इस बरसी पर पंजाब मोदी से कोई बड़ी उम्मीद कर रहा है।

लेखक पंजाब से जुड़े सिख नेता एवं स्तंभकार हैं

टॅग्स :ऑपरेशन ब्लू स्टारपंजाब
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