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ब्लॉग: राजनीतिक हितों को साधने में अनुशासन भी आवश्यक

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: July 29, 2024 11:24 IST

ममता बनर्जी ने अपने सात मिनट के भाषण में केंद्र पर निशाना साधने की कोशिश की, लेकिन वह राजनीति में उलझ गईं. लोकतंत्र में संवाद को सबसे बेहतर किसी समस्या का उपाय माना गया है. किंतु बातचीत में अनुशासन की आवश्यकता होती है.

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ठळक मुद्देमोदी सरकार के गठन के बाद नीति आयोग की बैठक का आयोजन किया गयासभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को हिस्सा लेना थाकेरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री बैठक में शामिल नहीं हुए

केंद्र में तीसरी बार नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद नीति आयोग की बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को हिस्सा लेना था. मगर केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री बैठक में शामिल नहीं हुए. 

बैठक की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांव स्तर से गरीबी को खत्म करने का लक्ष्य तय करने की अपील की. राज्यों से अपील की गई कि वे ज्यादा से ज्यादा निवेश पाने के लिए कानून और व्यवस्था पर ध्यान दें और सुशासन और बुनियादी ढांचे को भी महत्व दें. प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार और सभी नागरिकों का सामूहिक लक्ष्य अब देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है. किंतु इस चर्चा में कोई बात सामने निकल कर नहीं आई. 

खबरें बनीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बैठक को छोड़कर आने की. बनर्जी का आरोप था कि उनके संबोधन के दौरान माइक बंद कर दिया गया, जबकि सरकार की ओर से स्पष्टीकरण देते हुए कहा गया कि बनर्जी ने प्रत्येक मुख्यमंत्री को आवंटित पूरे 7 मिनट तक अपनी बात रखी. कुछ मुख्यमंत्रियों को उनके अनुरोध पर बिना किसी शोर-शराबे के अतिरिक्त समय दिया गया था, और किसी को कोई शिकायत नहीं थी. 

नीति आयोग का कहना है कि बैठक में हिस्सा नहीं लेने से राज्यों का ही नुकसान है. स्पष्ट है सरकार का पक्ष और विपक्षी दलों की आक्रामक भूमिका के चलते पहले अनुपस्थिति, फिर हंगामे की बात सामने आई. केंद्र में मोदी सरकार के गठन के बाद से योजना आयोग का बदला हुआ रूप नीति आयोग के रूप में सामने आया है. जिसको लेकर विशेष रूप से कांग्रेस को आपत्ति है. वह उसका कार्य पक्षपातपूर्ण मानती है, जबकि सरकार राज्यों के साथ देश के विकास के लिए उसे समन्वय का केंद्र मानती है. 

उत्पाद एवं सेवा शुल्क (जीएसटी) के साथ ही नीति आयोग को राज्य केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में मानते हैं. उनके अनुसार गैरभाजपा शासित राज्यों के साथ अन्याय होता है. ममता बनर्जी ने भी अपने सात मिनट के भाषण में केंद्र पर निशाना साधने की कोशिश की, लेकिन वह राजनीति में उलझ गईं. लोकतंत्र में संवाद को सबसे बेहतर किसी समस्या का उपाय माना गया है. किंतु बातचीत में अनुशासन की आवश्यकता होती है. 

देश में कई मंच विकास और जनता से जुड़ी समस्याओं के लिए हैं. यदि ऐसे मंचों पर राजनीति को छोड़, अपनी समस्याओं को पुरजोर ढंग से रखा जाए तो अवश्य ही राज्यों काे अपना लाभ हो सकता है. इन बैठकों की आड़ में अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को नहीं दिखाने से भी आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जा सकता है. इसलिए राजनीति और विकास की चर्चा को गंभीर बनाए रखने की जरूरत है. सत्ता पक्ष को घेरने के अवसर कई हो सकते हैं, मगर उनमें से कुछ जिसमें सरकार देश का भला चाहती है, उन्हें छोड़ देना चाहिए.

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