लाइव न्यूज़ :

पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉग: लोकतंत्र के लिए जरूरी हैं कड़े चुनाव सुधार

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: January 26, 2022 16:25 IST

अभी तक चुनाव के प्रचार अभियान ने यह साबित कर दिया कि लाख पाबंदी के बावजूद चुनाव न केवल महंगे हो रहे हैं।

Open in App
ठळक मुद्देकोविड पाबंदी के कारण कुछ नए सलीके से चुनाव हो सकता है।चुनाव से बहुत पहले बड़े-बड़े रणनीतिकार मतदाता सूची का विश्लेषण कर तय कर लेते हैं।इस बार हर राज्य में थोक में हृदय परिवर्तन करने वाले नेताओं की जमात सामने आ रही है।

इन दिनों देश के पांच राज्यों में सबसे बड़ी ताकत, लोकंतत्र ही दांव पर लगा है. राजनीतिक दलों के चुनावी वायदे मुफ्त-भेंट पर केंद्रित हैं. लेकिन जरूरी यह है कि आम वोटर को भी शिक्षित किया जाए कि वह किस उम्मीदवार को, किस चुनाव में किस काम के लिए वोट दे रहा है. 

इस बार तो कोविड पाबंदी के कारण कुछ नए सलीके से चुनाव हो सकता है लेकिन अभी तक चुनाव के प्रचार अभियान ने यह साबित कर दिया कि लाख पाबंदी के बावजूद चुनाव न केवल महंगे हो रहे हैं, बल्कि सियासी दल जिस तरह एक दूसरे पर शुचिता के उलाहने देते दिखे, खुद को पाक-साफ व दूसरे को चोर साबित करते दिखे. विडंबना है कि सभी राजनीतिक दल चुनाव सुधार के किसी भी कदम से बचते रहे हैं.

अब चुनाव से बहुत पहले बड़े-बड़े रणनीतिकार मतदाता सूची का विश्लेषण कर तय कर लेते हैं कि हमें अमुक जाति या समाज के वोट चाहिए ही नहीं. यानी जीतने वाला क्षेत्र का नहीं, किसी जाति या धर्म का प्रतिनिधि होता है. यह चुनाव लूटने के हथकंडे इसलिए कारगर हैं, क्योंकि हमारे यहां चाहे एक वोट से जीतो या पांच लाख वोट से, दोनों के ही सदन में अधिकार बराबर होते हैं. 

यदि राष्ट्रपति चुनावों की तरह किसी संसदीय क्षेत्र के कुल वोट और उसमें से प्राप्त मतों के आधार पर सांसदों की हैसियत, सुविधा आदि तय कर दी जाए तो नेता पूरे क्षेत्र के वोट पाने के लिए प्रतिबद्ध होंगे, न कि किसी जाति विशेष के. 

इस बार हर राज्य में थोक में हृदय परिवर्तन करने वाले नेताओं की जमात सामने आ रही है और वे दूसरे दल में जाते ही टिकट भी पा रहे हैं. यह एक विडंबना है कि कई राजनीतिक कार्यकर्ता जिंदगीभर मेहनत करते हैं और चुनाव के समय उनके इलाके में कहीं दूर का या ताजा-ताजा किसी अन्य दल से आयातित उम्मीदवार आकर चुनाव लड़ जाता है और ग्लेमर या पैसे या फिर जातीय समीकरणों के चलते जीत भी जाता है. 

ऐसे में संसद का चुनाव लड़ने के लिए निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम पांच साल तक सामाजिक काम करने के प्रमाण प्रस्तुत करना, उस इलाके या राज्य में संगठन में निर्वाचित पदाधिकारी की अनिवार्यता जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को सदन तक पहुंचाने में कारगर कदम हो सकता है. इससे थैलीशाहों और नवसामंतवर्ग की सियासत में बढ़ रही पैठ को कुछ हद तक सीमित किया जा सकेगा.

टॅग्स :विधानसभा चुनाव 2022भारतउत्तर प्रदेशपंजाब
Open in App

संबंधित खबरें

क्रिकेटटी20 विश्व कप से बाहर, क्यों छीनी गई वनडे टीम की कप्तानी?, इस खिलाड़ी के साथ खेलेंगे शुभमन गिल?

क्राइम अलर्टप्रेमी गौरव के साथ अवैध संबंध, पति राहुल ने देखा?, पत्नी रूबी ने प्रेमी के साथ मिलकर हथौड़े-लोहे की छड़ से हत्‍या कर ग्राइंडर से शव टुकड़े कर फेंका, सिर, हाथ और पैर गायब

ज़रा हटकेVIDEO: 10 साल बाद मिला खोया बेटा, भावुक होकर रोने लगी मां, देखें वायरल वीडियो

विश्व'हमने अल्लाह की मदद आते हुए देखी': भारत-पाक संघर्ष पर पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर

भारतदेश के अंदर 2 नमूने हैं, 1 यूपी में और दूसरा दिल्ली में...?, सीएम योगी ने किया हमला, वीडियो

भारत अधिक खबरें

भारतकफ सीरप मामले में सीबीआई जांच नहीं कराएगी योगी सरकार, मुख्यमंत्री ने कहा - अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा

भारतगोवा जिला पंचायत चुनावः 50 में से 30 से अधिक सीट पर जीते भाजपा-एमजीपी, कांग्रेस 10, आम आदमी पार्टी तथा रिवोल्यूश्नरी गोअन्स पार्टी को 1-1 सीट

भारतलोनावला नगर परिषदः सड़क किनारे फल बेचने वालीं भाग्यश्री जगताप ने मारी बाजी, बीजेपी प्रत्याशी को 608 वोट से हराया

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सोशल मीडिया ‘इंस्टाग्राम’ पर मिली धमकी, पुलिस ने दर्ज की प्राथमिकी, जुटी जांच में

भारतबृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव: गठबंधन की कोई घोषणा नहीं?, राज-उद्धव ठाकरे में बातचीत जारी, स्थानीय निकाय चुनावों में हार के बाद सदमे में कार्यकर्त्ता?