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New Delhi Railway Station Stampede Updates: महाकुंभ की आस्था के आगे पस्त होती व्यवस्था?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: February 17, 2025 05:48 IST

New Delhi Railway Station Stampede Updates: कोई दो-राय नहीं है कि 144 साल बाद हो रहे महाकुंभ को लेकर मजबूत तैयारियां की गईं. जिनका उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार ने जमकर प्रचार भी किया है.

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ठळक मुद्देसोशल मीडिया के दौर में निजी प्रचार ने भी श्रद्धा का उन्माद पैदा किया है. देखते-देखते देश के हर कोने से लोग प्रयागराज पहुंच रहे हैं.कहीं रेल में भगदड़, तो कहीं कई किलोमीटर का यातायात जाम दिख रहा है.

New Delhi Railway Station Stampede Updates: गत शनिवार की रात महाकुंभ में स्नान करने के लिए निकले 18 श्रद्धालुओं की नई दिल्ली स्टेशन पर मौत हो गई. इसके पहले माघ अमावस्या पर प्रयागराज में मची भगदड़ में सरकारी आंकड़ों के अनुसार तीस श्रद्धालुओं की जान चली गई थी. दोनों घटनाओं के स्थान अलग, मगर समस्या वही अपेक्षा से अधिक जन सैलाब के आगे व्यवस्था ध्वस्त होना थी. इसमें कोई दो-राय नहीं है कि 144 साल बाद हो रहे महाकुंभ को लेकर मजबूत तैयारियां की गईं. जिनका उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार ने जमकर प्रचार भी किया है.

सोशल मीडिया के दौर में निजी प्रचार ने भी श्रद्धा का उन्माद पैदा किया है. देखते-देखते देश के हर कोने से लोग प्रयागराज पहुंच रहे हैं. यहां तक सब कुछ ठीक था, लेकिन पहुंचने के साधन और रास्तों की अपनी सीमाएं जवाब देने लगी हैं. कहीं रेल में भगदड़, तो कहीं कई किलोमीटर का यातायात जाम दिख रहा है.

यदि व्यवस्थाओं को नजर से देखा जाए तो वे प्रयागराज के आस-पास की स्थितियों को संभालने की थीं, लेकिन जब बड़ी संख्या में लोग मध्य प्रदेश के जबलपुर, राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, वाराणसी जैसे शहरों से ट्रेन या सड़क मार्ग से पहुंचने लगेंगे तो कई स्थानों की व्यवस्थाओं पर ध्यान देना आवश्यक हो चला है.

अनेक गांवों में लगीं वाहनों की कतारें और उनमें परेशान लोग जहां स्वयं कष्ट झेलते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गांव-शहर भी अत्यधिक वाहनों-रेलवे स्टेशनों की भीड़ से परेशान हैं. असल तौर पर कुंभ की तैयारियों में प्रयागराज तक पहुंचने वाले रास्तों और माध्यमों पर भी विचार होना आवश्यक था. पिछले कुछ सालों में देश में सड़क मार्ग अच्छे होने से लोगों ने निजी वाहनों से यात्रा करना आरंभ कर दिया है.

इसलिए आयोजन में सड़क मार्ग से दबाव बढ़ना तय था. रेलवे ने बड़ी संख्या में ट्रेनों को चलाया, जिससे रेल यात्रियों का आना-जाना भी बढ़ना ही था. इस सबको मिलाकर यदि तैयारियों में आस-पास के जिलों-संभाग मुख्यालयों को जोड़ लिया जाता तो यात्रियों सहित प्रशासन को भी स्थिति संभालने में सहायता मिल जाती.

अब किसी गांव में लगे वाहनों के रेलों को हटाना पुलिस-प्रशासन के लिए मुश्किल साबित हो रहा है, क्योंकि वैकल्पिक मार्गों की तैयारी नहीं है. इसी प्रकार रेलों में टिकट उपलब्धता के बारे में स्थितियां पहले स्पष्ट करनी चाहिए थी. हर महत्वपूर्ण स्टेशन के प्लेटफार्म पर भीड़ के नियंत्रण के उपाय किए जाने चाहिए थे.

जिस प्रकार अयोध्या में दर्शन पर रोक लगाई गई और काशी में भी समय रहते भीड़ को नियंत्रित किया गया, उसी प्रकार प्रयागराज के आस-पास करीब दो सौ-तीन सौ किलोमीटर की स्थिति का अध्ययन किया जाना चाहिए था. किंतु अब आस्था के सैलाब के आगे सब कुछ पस्त हो चुका है. आगे प्रशासन-पुलिस के कुशलता पर निर्भर है कि वह कितना नियंत्रण रख पाता है. फिलहाल श्रद्धालुओं पर तो किसी भी स्थिति का कोई असर नहीं है. उनके रेले बन रहे हैं और मन के उत्साह से दौड़ रहे हैं.

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