चुनाव पूर्व दलबदल देश में नया नहीं है, पर हाल की कुछ घटनाओं से लगता है कि हमारे नेताओं ने राजनीति को भी आईपीएल क्रिकेट-सा बना दिया है। आईपीएल में हर सीजन से पहले खिलाड़ियों की नीलामी होती है और बड़ी संख्या में खिलाड़ी-कोच इधर से उधर हो जाते हैं। वैसा ही दृश्य राजनीति में नजर आ रहा है। लगता ही नहीं कि नेताओं की कोई नीति या दल-नेतृत्व के प्रति निष्ठा है। वह उसी तरह दल बदल रहे हैं, जिस तरह आईपीएल में खिलाड़ी टीम बदलते हैं। चुनावी मुकाबलों में खेल भावना आदर्श स्थिति हो सकती है, पर राजनीति का खेल बन जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
बेशक देश-काल-परिस्थितियों के मुताबिक नेता का मन बदल सकता है, पर उसके संकेत तो मन-वाणी-कर्म से पहले ही मिलने शुरू हो जाने चाहिए। अगर अचानक मन बदलता है तो नेता की नीयत पर सवाल उठेंगे ही। कांग्रेस के बेहद तेजतर्रार प्रवक्ताओं में शुमार गौरव वल्लभ पिछले कुछ दिन नजर नहीं आए, पर पार्टी की नीति और मुद्दों से उनकी असहमति भी कभी नहीं दिखी। केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों से लेकर हर मुद्दे पर गौरव वल्लभ मुखर आलोचक रहे, पर अब अचानक कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। तर्क दिया कि वह सनातन के विरुद्ध नारे नहीं लगा सकते और वेल्थ क्रिएटर यानी संपत्ति सृजक को गाली नहीं दे सकते। सनातन के विरुद्ध नारे लगाने को किसने कहा- यह गौरव वल्लभ ने नहीं बताया। कभी पांच ट्रिलियन में लगनेवाले जीरो पूछ कर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा की बोलती बंद करनेवाले गौरव अब उनके साथ जुगलबंदी करेंगे।
बिहार मूल के महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता संजय निरुपम की नाराजगी कुछ दिनों से मुखर हो रही थी। कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाने से लेकर मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष तक बनाया, पर अब जब गठबंधन राजनीति के दबाव में उनकी लोकसभा सीट पर संकट आया तो वह कांग्रेस को दिशाहीन बताते हुए चले गए। सबसे दिलचस्प रहा मुक्केबाज विजेंदर सिंह का दलबदल। ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीतनेवाले विजेंदर सिंह हरियाणा पुलिस में डीएसपी रहने के बाद 2019 में कांग्रेस के टिकट पर दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ कर हार चुके हैं।
राहुल गांधी के ट्वीट को रात में रिट्वीट कर सोये विजेंदर सुबह जाग कर भाजपा में शामिल हो गए। तर्क भी गजब रहा: सुबह जगा तो मुझे लगा कि गलत प्लेटफॉर्म पर हूं। सही जगह भाजपा है, इसलिए आ गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद जिस तरह पार्टी के ज्यादातर राज्यसभा सांसद निष्क्रिय हैं और एक मंत्री राजकुमार आनंद ने अचानक सरकार एवं आप से इस्तीफा दे दिया है, उसका भी यही संदेश है कि नीति और निष्ठा अब बीते जमाने की बात है, वर्तमान राजनीति का सच सिर्फ सत्ता है।