एन. के. सिंह का ब्लॉग: आर्थिक संकट से उबरने की छटपटाहट नहीं दिखी बजट में

By एनके सिंह | Updated: February 2, 2020 12:36 IST2020-02-02T12:36:26+5:302020-02-02T12:36:26+5:30

पूरे बजट में किसानों, उद्यमियों व कर-दाताओं को सम्मान देने आदि की बातें तो जरूर हुईं लेकिन कोई क्रांतिकारी तड़प देश को आर्थिक मंदी से निकालने की नहीं पाई गई.

N. K. Singh blog: The budget did not show the haste to recover from the economic crisis | एन. के. सिंह का ब्लॉग: आर्थिक संकट से उबरने की छटपटाहट नहीं दिखी बजट में

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण। (फोटो- एएफपी)

वर्ष 2020-21 के भारत के बजट में वर्तमान आर्थिक संकट से उबरने की छटपटाहट कहीं भी नहीं दिखी. उम्मीद थी कि भारत की दो-तिहाई आबादी, जो किसानों की है, की जेब में पैसा डाला जाएगा जिससे वह खर्च करेगा और उससे अति-लघु, लघु, मध्यम उद्योगों के उत्पादों (खासकर एफएमसीजी उत्पादों) की खरीदारी बढ़ेगी जो इस क्षेत्न में उत्पादन बढ़ाने में लगेगी और फिर उससे रोजगार बढ़ेगा और फिर रोजगार में लगे लोग फिर सामान खरीदेंगे. इस तरह एक चेन-रिएक्शन के जरिये लगातार गिरती अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी.

पूरे बजट में किसानों, उद्यमियों व कर-दाताओं को सम्मान देने आदि की बातें तो जरूर हुईं लेकिन कोई क्रांतिकारी तड़प देश को आर्थिक मंदी से निकालने की नहीं पाई गई.

बल्कि इसके बदले बजट के आधे हिस्से के बाद से ही आभास होने लगा कि सरकार अपनी  जिम्मेदारियों को निजी क्षेत्नों पर डाल कर अपनी आयुष्मान भारत सरीखी महत्वाकांक्षी योजना से भी पीछा छुड़ाना चाहती है.

पूरे बजट में आधा दर्जन से ज्यादा बार पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) की चर्चा हुई और यहां तक कि आयुष्मान भारत (गरीबों के लिए पांच लाख तक का इलाज मुफ्त) को भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों के सहयोग के नाम पर छोड़ने का ऐलान किया गया. यानी डॉक्टरों की भारी कमी के लिए निजी मेडिकल कॉलेजों और उनके डॉक्टरों के भरोसे इस योजना की नाव पार करने की मंशा दिखी.

उदासीनता का यह आलम था कि बजट में गोदामों की कमी भी इसी पीपीपी मॉडल पर दूर करने की बात कही गई.  इसी तरह किसानों का नाम तो कई बार और कई योजनाओं में लिया गया लेकिन संकेत यही दिए गए कि खाद की छूट भी उनके हाथ से छीन ली जाएगी क्योंकि वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण के भाषण में ‘ऐसे प्रोत्साहन’ को, जिनसे बिना सोचे -समङो रासायनिक खाद का प्रयोग बढ़ रहा है, खत्म करने की बात पुरजोर तरीके से कही गई.

कुल मिलाकर बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी पीपीपी मॉडल लाना, शिक्षा पर पिछले बजट के मुकाबले मात्न 4000 करोड़ ज्यादा खर्च करना (जो रुपये की कीमत जोड़ने पर काफी कम दिखाई देगा), स्वास्थ्य के मद में मात्न 67000 करोड़ का आवंटन यही बताता है कि सरकार को आर्थिक संकट से देश को उबारने का रास्ता तमाम आम जरूरियात की चीजों की बढ़ती कीमत में नजर आ रहा है न कि सरकार द्वारा कमजोर तबके को पैसे देने या मध्यम वर्ग को आय कर में छूट देने में.

Web Title: N. K. Singh blog: The budget did not show the haste to recover from the economic crisis

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