उपजाऊ भूमि को बंजर होने से बचाने के करने होंगे उपाय
By ललित गर्ग | Updated: June 17, 2025 07:55 IST2025-06-17T07:55:39+5:302025-06-17T07:55:42+5:30
मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा हमारे समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों में से हैं तथा विश्वभर में 40 प्रतिशत भूमि क्षेत्र पहले से ही क्षरित माना जाता है.

उपजाऊ भूमि को बंजर होने से बचाने के करने होंगे उपाय
मानव एवं जीव-जंतुओं का जीवन भूमि पर निर्भर है. फिर भी, पूरी दुनिया में प्रदूषण, भूमि का दोहन, जलवायु अराजकता और जैव विविधता विनाश का एक जहरीला मिश्रण स्वस्थ भूमि को रेगिस्तान में बदल रहा है और संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र मृत क्षेत्रों में बदल रहा है. ‘हमारी भूमि’ नारे के तहत भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखा निवारण आज की जलवायु समस्याओं का सटीक समाधान हो सकता है, इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा निवारण दिवस 17 जून को मनाया जाता है.
इस वर्ष की थीम ‘भूमि के लिए एकजुट: हमारी विरासत. हमारा भविष्य’ है, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह दिवस भूमि के महत्व और इसे भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है. कोलंबिया गणराज्य इस वर्ष 17 जून को मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस के वैश्विक आयोजन की मेजबानी करेगा, जो प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से भूमि क्षरण को संबोधित करने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है.
बोगोटा में आयोजित यह कार्यक्रम स्थिरता, शांति और समावेशी विकास के उत्प्रेरक के रूप में भूमि बहाली एवं सूखा निवारण की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालेगा, साथ ही भोजन, पानी, रोजगार और सुरक्षा सुनिश्चित करने में स्वस्थ भूमि की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देगा.
स्वस्थ भूमि संपन्न अर्थव्यवस्थाओं का आधार है, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का आधा से अधिक हिस्सा प्रकृति पर निर्भर है. फिर भी हम इस प्राकृतिक पूंजी को खतरनाक दर से नष्ट कर रहे हैं- हर मिनट, भूमि क्षरण के कारण चार फुटबॉल मैदानों के बराबर भूमि नष्ट हो जाती है. इससे जैव विविधता का नुकसान होता है, सूखे का खतरा बढ़ता है और समुदाय विस्थापित होते हैं.
इसके प्रभाव वैश्विक हैं-खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से लेकर अस्थिरता और पलायन तक. मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा हमारे समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों में से हैं तथा विश्वभर में 40 प्रतिशत भूमि क्षेत्र पहले से ही क्षरित माना जाता है.
संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिकी तंत्र बहाली दशक 2021-2030 के आधे पड़ाव पर पहुंचने के साथ ही, हमें भूमि क्षरण की लहर को बड़े पैमाने पर बहाली में बदलने के प्रयासों में तेजी लानी चाहिए. यदि मौजूदा रुझान जारी रहे तो हमें 2030 तक 1.5 बिलियन हेक्टेयर भूमि को बहाल करना होगा और एक ट्रिलियन डॉलर की भूमि बहाली अर्थव्यवस्था को गति देनी होगी.
मरुस्थलीकरण एक तरह से भूमि क्षरण का वह प्रकार है, जब शुष्क भूमि क्षेत्र निरंतर बंजर होता है और नम भूमि भी कम हो जाती है. साथ ही साथ, वन्य जीव व वनस्पति भी खत्म होती जाती है. इसकी कई वजह होती हैं, जिसमें जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियां प्रमुख हैं.
इसे रेगिस्तान भी कहा जाता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक 2025 तक दुनिया के दो-तिहाई लोग जल संकट की परिस्थितियों में रहने को मजबूर होंगे. उन्हें कुछ ऐसे दिनों का भी सामना करना पड़ेगा जब जल की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर होगा.
ऐसे में मरुस्थलीकरण के परिणामस्वरूप विस्थापन बढ़ने की संभावना है और 2045 तक 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ सकता है.