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ब्लॉग: 2024 में पीएम मोदी को प्रमुख चुनौती देने वाले दो नेता ममता बनर्जी और केजरीवाल मुश्किल में

By हरीश गुप्ता | Updated: August 4, 2022 10:00 IST

ममता बनर्जी की छवि नारद और शारदा घोटालों के बावजूद बेदाग रही. हालांकि हाल में पार्थ चटर्जी के शिक्षक भर्ती घोटाला में नाम आने से एक बार फिर ममता विवादों में हैं. वहीं, केजरीवाल के एक मंत्री सत्येंद्र जैन पहले से ही ईडी की हिरासत में हैं और अब उनके नंबर दो-मनीष सिसोदिया भी सीबीआई के जाल में फंस सकते हैं. 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने तीन मुख्य चुनौतियों में से दो इस समय अपने राजनीतिक जीवन की सबसे गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने चुनाव-दर-चुनाव भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दी है और तमाम अड़चनों को पार करते हुए अपना गढ़ बरकरार रखा है. 

अगर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छवि नारद और शारदा घोटालों के बावजूद बेदाग रही, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यालय परिसर में सीबीआई की छापेमारी और अन्य आरोप भी उन पर बेअसर रहे.

इसके विपरीत, केजरीवाल ने ‘दिल्ली मॉडल’ के सहारे पार्टी का विस्तार करते हुए  पंजाब को अपने कब्जे में ले लिया. अपनी सफलताओं से उत्साहित केजरीवाल ने हाल ही में एक नया मोर्चा खोल दिया यानी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री पर हमला बोल दिया है. 

केजरीवाल अब तक मोदी पर व्यक्तिगत हमला करने से बचते रहे हैं. लेकिन उन्होंने यह आरोप लगाते हुए एक नया मोर्चा खोल दिया कि मोदी अपने अमीर औद्योगिक मित्रों को उपकृत कर रहे हैं और उनके ऋण माफ कर रहे हैं.

एक चतुर राजनेता के रूप में, केजरीवाल ने अपने बयानों के परिणामों का आकलन भी किया ही होगा. कुछ दिनों के भीतर, दिल्ली के नए उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने एक सीबीआई जांच का आदेश दिया, जिसे अब ‘शराब घोटाला’ कहा जा रहा है. केजरीवाल के एक मंत्री सत्येंद्र जैन पहले से ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में हैं और अब उनके नंबर दो-मनीष सिसोदिया भी सीबीआई के जाल में फंस सकते हैं. 

केजरीवाल ने अपनी तथाकथित धन उगाहने वाली आबकारी नीति वापस ले ली है. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह केवल शुरुआत है क्योंकि आने वाले हफ्तों में आप नेताओं पर और मामले दर्ज किए जाएंगे. 2024 की लड़ाई के लिए मोदी को प्रमुख चुनौती देने वाले  दो नेता निश्चित रूप से परेशानी में हैं.

तीसरी चुनौती

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तीसरे राजनेता हैं जिन्हें प्रधानमंत्री पद का संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है. लेकिन उनके काम करने का अंदाज ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से बिल्कुल अलग है. जद (यू) के नेता एक अलग तरह की परेशानी से जूझ रहे हैं. उन्होंने उद्धव ठाकरे की तरह पाला बदल लिया है जिन्होंने भगवा पार्टी के साथ चुनाव जीतने के बाद भाजपा को छोड़ दिया था. 

नीतीश कुमार ने ऐसा ही किया है. बिहार में राष्ट्रीय जनता दल(राजद) के साथ विधानसभा चुनाव जीतकर भाजपा के साथ हो लिए. आजकल, वह फिर से नाराज हैं क्योंकि वह मोदी के नेतृत्व वाली नई भाजपा का अनुभव उन्हें कुछ ठीक नहीं लग रहा. भाजपा ने विधानसभा चुनावों के दौरान उन्हें कमजोर करने के लिए चिराग पासवान का इस्तेमाल किया और उनके और उनके वफादार आरसीपी सिंह के बीच दरार पैदा करने में भी सफल रही.  

नीतीश अब रुठ रहे हैं. मसलन, उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू का समर्थन तो किया लेकिन उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए. वह निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई समारोह में भी शामिल नहीं हुए. 12 जुलाई को जब प्रधानमंत्री पटना  दौरे पर थे तो नीतीश सरकार ने अखबारों में भी कोई बड़ा विज्ञापन नहीं दिया. 

खबरें हैं कि जनता दल (यू) और राजद-कांग्रेस-लेफ्ट के बीच किसी डील पर काम चल रहा है. हाल ही में लालू की बेटी मीसा भारती और सहयोगी भोला यादव पर सीबीआई की छापेमारी के बाद राजद के तेवर भी ठंडे पड़ गए हैं. यह तेजस्वी यादव के लिए भी संदेश है कि भ्रष्टाचार के एक पुराने लंबित मामले को पुनर्जीवित किया जा सकता है. अगर नीतीश कुमार सोच रहे हैं कि अपनी मर्जी से राजनीतिक सौदेबाजी कर सकते हैं, तो वह ख्याली पुलाव ही पका रहे हैं.

ओडिशा घोटाला मुक्त राज्य! 

अगर आपको लगता है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से दिल्ली पर गुजरातियों का राज है, तो आप गलत हो सकते हैं. निस्संदेह गुजराती फल-फूल रहे हैं लेकिन ओडिशा भी पीछे नहीं है. द्रौपदी मुर्मू(ओडिशा) के राष्ट्रपति बनने से बहुत पहले, राज्य से धर्मेंद्र प्रधान और अश्विनी वैष्णव को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. 

प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी.के. मिशा भले ही गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी हैं, लेकिन मूलत: ओडिशा से हैं. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास, सीएजी जेसी मुर्मू और राज्य के कई अन्य लोग प्रमुख पदों पर हैं. दिलचस्प बात यह है कि ओडिशा के शायद ही किसी नेता को केंद्रीय एजेंसियों के गुस्से का सामना करना पड़ा हो. शायद, ओडिशा भारत का एक घोटालामुक्त राज्य है.

अब सैम पित्रोदा की बारी

ईडी अब गांधी परिवार के वफादार सैम पित्रोदा से पूछताछ करने के लिए तैयार हैं, जो फरवरी 2016 से नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं. प्रवर्तन निदेशालय पहले ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और एक पारिवारिक मित्र सुमन दुबे सहित यंग इंडिया कंपनी के अन्य निदेशकों से पूछताछ कर चुका है. लेकिन पित्रोदा से एक बार भी पूछताछ नहीं हुई है. ईडी अब उसके पीछे लगने को तैयार है. मनमोहन सिंह के शासन में पित्रोदा नेशनल इनोवेशन काउंसिल के अध्यक्ष थे.

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