Maharashtra Rain: इन दिनों महाराष्ट्र के बड़े भाग में वर्षा और बाढ़ का प्रकोप दिखाई दे रहा है. एक अनुमान के अनुसार पिछले एक हफ्ते में ही 83 लाख एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में खड़ी फसलें बर्बाद हो गई हैं, जिसमें राज्य का मराठवाड़ा क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. उसके छत्रपति संभाजीनगर, नांदेड़, परभणी, हिंगोली, लातूर, धाराशिव, जालना और बीड़ जिलों में किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया है. पश्चिम महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में भी स्थिति चिंताजनक है. राज्य के 654 राजस्व क्षेत्रों में भारी बारिश से सोयाबीन, कपास, प्याज, ज्वार और हल्दी जैसी फसलें चौपट हुई हैं.
इससे पहले बुलढाणा, वाशिम और यवतमाल में अगस्त में भी फसलों का नुकसान हुआ था. अब किसानों की राज्य सरकार से सहायता की अपेक्षा है, जिसे नियमानुसार प्रदान किया जा रहा है. मुख्यमंत्री से लेकर अनेक मंत्री गांव-गांव खेत-खेत जाकर परिस्थितियों का आकलन कर रहे हैं और कुछ इसी आधार पर केंद्र तथा राज्य सरकार की सहायता प्रभावितों को दी जाएगी.
सरकार के सिर पर परेशानी चाहे कैसी-भी हो, विपक्ष के लिए हमला बोलने का अवसर मिल जाता है. छत्रपति संभाजीनगर जिले की पैठण तहसील में जब शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे पहुंचे तो वहां उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने के नारे लगने लगे. इसी प्रकार कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल जब जालना पहुंचे तो उन्हें सत्ताधारी पंचनामे का नाटक करवाते नजर आए.
हालांकि सत्ता में रहकर राज्य के सभी दल और नेता प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की स्थितियों को भली-भांति समझ चुके हैं. सरकार की सीमाओं और क्षमताओं को जान चुके हैं. जन अपेक्षाओं से भी कोई अनभिज्ञ नहीं है. मराठवाड़ा सहित महाराष्ट्र में इस वर्ष बरसात का मौसम तय समय से पहले आरंभ हो गया था.
उस समय भी यह आशंका थी कि पहले वर्षा होने के एक बड़े अंतराल के बाद दोबारा तेजी से बरसात होगी. आम तौर पर जून के पहले सप्ताह से राज्य में आरंभ होने वाली मानसूनी बारिश सितंबर के अंत में अपना असर दिखाती है और कुछ दिनों बाद मानसून के लौटने के साथ वर्षा का मौसम समाप्त हो जाता है.
सामान्यत: वर्षा दिन-माह के अनुसार अपना जोर दिखाती रहती है. किंतु पिछले कुछ वर्षों से बरसात का तरीका बदला है. कभी अचानक तेज बरसात या लंबा अंतराल ले लेना, दोनों परेशान करते हैं. मानसून में शुरुआती माह सूखे निकलना और आखिर में तेज बरसात होना संकटों को जन्म देता है.
मराठवाड़ा में बहने वाली नदी गोदावरी का सबसे बड़ा बांध जायकवाड़ी बरसाती मौसम में अनेक वर्षों में पूरा भर नहीं पाता है, लेकिन इस साल जुलाई में ही वह पूरा भरा. सितंबर तक कई बार उसके दरवाजे खोलने पड़े. एक तरफ पैठण से गोदावरी का पानी और दूसरी तरफ बरसात ने मराठवाड़ा के अनेक जिलों में हाहाकार मचाया.
एक जून से 23 सितंबर के बीच बारिश से संबंधित अलग-अलग घटनाओं में 86 लोगों की मौत हुई. जिसमें सबसे ज्यादा 26 लोगों की जान नांदेड़ जिले में गई. लगभग 1,700 जानवर मारे गए. मरने वाले जानवर भी सबसे ज्यादा नांदेड़ जिले के 569 थे. पूरे राज्य के हिसाब से तेज वर्षा से 29 जिलों की 191 तहसीलों में नुकसान हुआ.
कम पानी और अधिक पानी से अक्सर मराठवाड़ा और विदर्भ प्रभावित होते हैं. जिनके कारण अपने होते हैं. कई सालों से कारण भी जाने-पहचाने हैं. सत्ता किसी की भी हो, समस्याओं का हल स्थाई नहीं है. अक्सर कम बरसात होने से छोटी नदियां सूख जाती हैं. उनका पात्र पहले जैसा गहरा नहीं रह जाता. इस स्थिति में यदि पानी अधिक मात्रा में आता है तो बहाव और फैलाव समस्याओं की वजह बनता है.
इसके साथ ही नदियों के किनारे रेत उत्खनन और आस-पास के पहाड़ों को खोदने तथा गिराने से समूचा पर्यावरण प्रभावित होता है. हर साल लाखों पेड़ लगाने के सरकारी दावे होते हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई सभी को मालूम रहती है. कुछ गैरसरकारी संगठन और संस्थाएं छोड़ दी जाएं तो वृक्षारोपण के नाम पर मजाक ही होता है.
यह सब किसी मनमर्जी से नहीं, बल्कि सरकारी संरक्षण में होता है. नेताओं की जानकारी में सारे काम होते हैं. अनेक दलों के नेता और कार्यकर्ता उनमें शामिल होते हैं. इसके बाद भी बाढ़ और सूखे पर घड़ियाली आंसू बहाने सबसे पहले नेता ही आते हैं. रेत चोरी के मामलों में सरकारी कार्रवाई दिखावा होती है. असलियत में चोरी मिलीभगत का परिणाम होती है.
गांवों में बने सालों-साल पुराने निचले पुलों के ऊपर से पानी बहना बरसात के कुछ दिनों की बात होती है. किंतु बांधों से पानी छोड़े जाने के बाद अनेक गांवों को काफी दिनों तक समस्या का सामना करना पड़ता है. खदानें खोदने और पहाड़ गिराने से वर्षा की बदलती स्थितियों पर कोई सवाल खड़ा ही नहीं होता है. बात आरोप-प्रत्यारोप के बीच ही आई-गई हो जाती है.
महाराष्ट्र में इस बार बरसात से केवल फसलों को ही नहीं, बल्कि रिहायशी इलाकों को भी नुकसान पहुंचा है. नांदेड़ शहर में गोदावरी का ‘बैक वाटर’ समस्याएं खड़ी कर रहा है. गांव-शहर के अनेक स्थानों पर सीमेंट की सड़कें बनने के बाद पानी की निकासी के रास्ते बंद हो चुके हैं, जिसके परिणाम सामने आ रहे हैं.
इस बारिश में जालना शहर की अनेक संभ्रांत बस्तियों में पानी भर गया. वहां राहत और सहायता की मांग की गई. इसलिए बारिश की आफत केवल सियासी हलचल के लिए एक कारण नहीं है. किसी भी सरकार या उसके मुख्यमंत्री अथवा मंत्रियों पर आरोप लगाना राजनीति में आसान है.
मगर वर्षाजनित समस्याओं के कारण और उनसे निपटने के उपायों पर ध्यान देना अधिक आवश्यक है. तात्कालिक सहायता कुछ दिन राहत प्रदान कर सकती है. मगर बदलते मौसम से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए स्थाई हल खोजने होंगे, जो अंधाधुंध विकास की झांकी से परे होंगे. भविष्य में आपदा में अवसर की बजाय, आपदा के अवसरों को दूर भगाना होगा.