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सरदार पटेल जयंती पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का ब्लॉग: जिसने निजहित पर दी देशहित को तरजीह

By एम वेंकैया नायडू | Updated: October 31, 2018 08:47 IST

सरदार वल्लभभाई पटेल का व्यक्तित्व बहुमुखी था। वे एक ऊजर्स्वी राजनीतिक नेता, उत्कृष्ट संगठनकर्ता, सक्षम प्रशासक और एक कुशल वार्ताकार थे।

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‘‘मिलकर प्रयास करने से हम देश को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं, जबकि एकता की कमी हमें नए संकटों की ओर ले जा सकती है’’, यह  टिप्पणी आधुनिक भारत की एकजुटता के प्रमुख सूत्रधार सरदार वल्लभभाई पटेल की दूरदर्शिता और व्यक्तित्व को परिभाषित करती है। सरदार पटेल ने स्वतंत्र भारत में सबसे अशांत अवधि के दौरान 565 अलग-अलग रियासतों को एकीकृत करने में  जिस दूरदर्शिता और कुशलता का परिचय दिया, वह आधुनिक इतिहास में एक अद्वितीय उपलब्धि है।

सरदार पटेल की उपलब्धि की प्रशंसा करते हुए लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा था : ‘‘वर्तमान सरकार की अब तक की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत की रियासतों का एकीकरण है। यदि आप इसमें विफल होते तो परिणाम विनाशकारी होता।। रियासतों के साथ जिस बुद्धिमत्तापूर्ण नीति को अपनाया गया है, उससे बढ़कर वर्तमान सरकार की प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाली कोई चीज नहीं है।’’

पटेल व्यावहारिक राजनीति की गहरी समझ वाले नेता थे। मूलत: वे यथार्थवादी और जमीन से जुड़े हुए राजनीतिज्ञ थे जिनका एकमात्र उद्देश्य एक मजबूत और एकजुट भारत का निर्माण करना था। जिस बात ने रियासतों के भारत में विलय को वास्तव में असाधारण बनाया वह यह तथ्य था कि राजाओं के पास उस समय विकल्प था कि या तो वे भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल हो सकते थे या अलग रहने का विकल्प चुन सकते थे। लेकिन पटेल ने अपनी बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, देशभक्ति की भावना, मनाने की क्षमता और न्यायपूर्ण व्यवहार के प्रति प्रतिबद्धता के बल पर बिना किसी भी प्रकार के विद्रोह या नागरिक अशांति के, अभूतपूर्व स्तर पर एक अत्यधिक जटिल राजनीतिक और सामाजिक समस्या को सुलझा लिया।

हालांकि निजाम के पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने की जिद के कारण उन्हें हैदराबाद को स्वतंत्र कराने के लिए ‘ऑपरेशन पोलो’ के जरिए बलप्रयोग करने पर भी मजबूर होना पड़ा था। इस द्रुतगामी ऑपरेशन के पांचवें दिन ही हैदराबाद राज्य का 17 सितंबर 1948 को शेष भारत के साथ विलय  हो गया।

सरदार पटेल ने जूनागढ़ को निपुणता से संभाला

जूनागढ़ के जटिल मुद्दे को भी पटेल ने निपुणता से संभाला था। मुझे लगता है कि अगर सरदार पटेल को उस समय जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को संभालने की पूरी छूट दे दी गई होती तो इस समस्या का बहुत पहले ही अंत हो गया होता। पटेल ने खुद रियासतों के विलय को ‘रक्तहीन क्रांति’ कहा था।  

पटेल महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी थे। हालांकि ऐसे मौके भी आए जब उनके साथ उनका मतभेद हुआ। इसी प्रकार, कई मुद्दों को सुलझाने के तरीके पर वे पंडित जवाहरलाल नेहरू से सहमत नहीं थे, जिसमें कश्मीर मुद्दा भी शामिल था। लेकिन उन्होंने इन मतभेदों या अपने निजी अहं को देश के व्यापक हितों की रक्षा के रास्ते में आड़े नहीं आने दिया। आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उन्होंने नेहरू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।

पटेल का व्यक्तित्व बहुमुखी था। वे एक ऊजर्स्वी राजनीतिक नेता, उत्कृष्ट संगठनकर्ता, सक्षम प्रशासक और एक कुशल वार्ताकार थे। महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद, वे उनके सच्चे अनुयायी बने और अंग्रेजों द्वारा खेड़ा तथा बारडोली में अन्यायपूर्ण ढंग से लगान लगाए जाने के बाद किसानों के आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इसी दौरान अपने नेतृत्व गुणों के लिए उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली। जिस तरह से उन्होंने किसानों का नेतृत्व किया और दृढ़ भूमिका अख्तियार की, उससे सरकार को अंत में लगान हटाने पर मजबूर होना पड़ा।

सिविल सेवा के परिवीक्षार्थियों के सामने 1947 में दिए गए उनके उस प्रसिद्ध भाषण को याद करना     प्रासंगिक होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि अतीत की परंपराओं और आदतों के वशीभूत हुए बगैर नागरिक सेवा के लोगों को देश की सेवा की अपनी वास्तविक भूमिका को अपनाना होगा। उन्होंने कहा : ‘‘अधिकारियों को अपने दैनंदिन कामों में सेवा की वास्तविक भावना से निर्देशित होना चाहिए, और किसी भी तरीके से वे इसमें फिट नहीं हो सकते हैं।

आपके पूर्ववर्ती ऐसी परंपराओं में जकड़े थे, जिससे वे भारत के आम आदमी से दूर थे। यह आपका अनिवार्य कर्तव्य होगा कि भारत के आम आदमी को अपना समङों या अपने को उनमें से एक समङों।’’ यह उचित ही है कि हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पुलिस अकादमी का नाम  श्रद्धांजलि के रूप में, उनके नाम पर रखा गया है।

सरदार के जिस एक अन्य पहलू पर प्रकाश डालने की आवश्यकता है, वह है उनकी शालीनता और दरियादिली, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी की सलाह से बंधकर 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के पक्ष में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी, यद्यपि राज्य कांग्रेस समितियों के बहुमत ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था। जबकि यह स्पष्ट था कि कांग्रेस अध्यक्ष को ही भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। इसने एक बार फिर देश के हितों को अपने से ऊपर रखने के उनके महान इरादे को साबित किया था।

मुझे खुशी है कि 182 मीटर ऊंचे ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ का आज नर्मदा बांध पर अनावरण हो रहा है, जो कि भारत की एकता को सुनिश्चित करने वाले सरदार पटेल की विलक्षण भूमिका को सही श्रद्धांजलि है।

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