Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव की घोषणा से कुछ ही पहले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर सहमति किसी ट्रेन के प्लेटफॉर्म छोड़ने से ठीक पहले उस पर लटक जाने जैसा लगता है. लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा ज्यादा दूर नहीं है, पर पिछले साल लंबे-चौड़े वादे-इरादे के साथ बने दो दर्जन से भी ज्यादा विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ में सीटों के बंटवारे की मंजिल दूर बनी हुई है. 80 लोकसभा सीटोंवाला उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जहां ‘इंडिया’ के घटक दलों में आधा-अधूरा सीट बंटवारा हो पाया है. आधा-अधूरा इसलिए कि 21 फरवरी की शाम की गई घोषणा के मुताबिक कांग्रेस 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि शेष 63 पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अन्य घटक दल.
जयंत चौधरी के रालोद के अलगाव के बाद अब उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ गठबंधन में सपा और कांग्रेस के अलावा आप ही शेष है. फिर उसके साथ भी सीट बंटवारा कर लेने में क्या समस्या रही, क्योंकि उसकी तो बहुत ज्यादा मांग भी नहीं होगी? क्या रालोद जैसा पुराना साथी गंवा कर सपा कुछ छोटे दलों के साथ आने की उम्मीद लगाए बैठी है?
बेशक राजनीति संभावनाओं का खेल है, पर मौजूद संभावनाओं को गंवा कर नई संभावनाओं की आस परिपक्वता की निशानी तो नहीं. सवाल पूछा ही जाना चाहिए कि क्या सीट बंटवारे में बहुत विलंब नहीं हो गया? लोकसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर देने के मकसद से ही 28 दलों ने पिछले साल ‘इंडिया’ गठबंधन बनाया था.
फिर उसकी व्यापक चुनावी संभावनाओं की कीमत पर अपने दल के लिए दो-चार सीटें ज्यादा हथिया लेने की मानसिकता क्यों है? राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर सपा-कांग्रेस में तनातनी के बीच अचानक हुए सीट बंटवारे में प्रियंका गांधी की भूमिका बताई जा रही है. प्रियंका ने यह सक्रियता पहले क्यों नहीं दिखाई?
तब शायद सीट बंटवारे में अखिलेश की चालबाजियों से खफा जयंत भी ‘इंडिया’ छोड़ कर भाजपा की ओर नहीं जाते. भाजपा के बढ़ते वर्चस्व के मद्देनजर विपक्षी दलों में किसी भी गठबंधन को लोकतंत्र की जीवंतता के लिए शुभ माना जा सकता है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि सपा-कांग्रेस मिल कर उसे कड़ी चुनौती नहीं दे सकते.
हां, अगर मायावती की बसपा और जयंत चौधरी का रालोद भी ‘इंडिया’ गठबंधन में होता तो तस्वीर बदल सकती थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बार फिर पालाबदल के चलते उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी चुनावी समीकरण भाजपा और उसके नेतृत्ववाले एनडीए के पक्ष में झुक गया लगता है यानी 120 लोकसभा सीटों पर चुनौती देने का मौका विपक्ष ने गंवा दिया है. राज्यों की तस्वीर हुत उम्मीद नहीं जगाती.