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ऑपरेशन सिंदूर की वैश्विक पहुंच से सबक, विदेश नीति में महत्वपूर्ण मोड़

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 27, 2025 14:54 IST

operation sindoor:सबसे महत्वपूर्ण बात है विदेश नीति की मजबूत आवाज को पेश करने में राष्ट्रीय एकता की भावना.

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ठळक मुद्देकूटनीति के इस गहन दौर से सीखे गए सबक पर विचार करने का एक अनूठा अवसर मिला. विभिन्न धर्मों के संसद सदस्य शामिल थे, अपने आप में एक शक्तिशाली संदेश था. भारत एक स्वर में बोलता है. इसने घरेलू राजनीतिक मतभेदों को पार कर लिया.

शशि थरूर

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से भारत की दृढ़ प्रतिक्रिया ने हमारे देश की विदेश नीति के एक महत्वपूर्ण मोड़ को दिखाया है. तत्काल सैन्य कार्रवाई जहां निर्णायक थी, वहीं उसके बाद की कूटनीति वैश्विक धारणाओं को आकार देने तथा अंतरराष्ट्रीय समर्थन को मजबूत करने में अगर उससे अधिक नहीं तो उतनी ही महत्वपूर्ण अवश्य थी. पश्चिमी गोलार्ध के पांच देशों- गुयाना, पनामा, कोलंबिया, ब्राजील तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में सात सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक का नेतृत्व करने से मुझे सार्वजनिक कूटनीति के इस गहन दौर से सीखे गए सबक पर विचार करने का एक अनूठा अवसर मिला. सबसे महत्वपूर्ण बात है विदेश नीति की मजबूत आवाज को पेश करने में राष्ट्रीय एकता की भावना.

हमारे प्रतिनिधिमंडलों की संरचना, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों, विभिन्न राज्यों और विभिन्न धर्मों के संसद सदस्य शामिल थे, अपने आप में एक शक्तिशाली संदेश था. इसने रेखांकित किया कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद का सामना करने की बात आती है तो भारत एक स्वर में बोलता है. इसने घरेलू राजनीतिक मतभेदों को पार कर लिया,

जिससे हमारे संदेश को हमारे अंतरराष्ट्रीय वार्ताकारों की नजर में अधिक विश्वसनीयता और गंभीरता मिली. चाहे गुयाना के राष्ट्रपति से बातचीत हो या अमेरिकी उपराष्ट्रपति से, भारत का सामूहिक संकल्प, जिसका प्रतिनिधित्व इसके विविध राजनीतिक पक्षों द्वारा किया जाता है, गहराई से प्रतिध्वनित हुआ.

हमारा प्राथमिक उद्देश्य ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के औचित्य, आतंकवादी ढांचे के खिलाफ भारत के शुरुआती हमलों की लक्षित प्रकृति, इसका नपा-तुला होना, और नागरिकों, यहां तक कि पाकिस्तानी सैन्य सुविधाओं को भी किसी भी तरह के नुकसान से बचाने के बारे में स्पष्टता प्रदान करना था. हमने सावधानीपूर्वक समझाया कि भारत की कार्रवाई आत्मरक्षा में उठाया गया एक वैध कदम था,

जो लगातार जारी सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ एक आवश्यक प्रतिक्रिया थी. इसकी सफलता कई राजधानियों में देखे गए बदलाव से स्पष्ट थी. उदाहरण के लिए, कोलंबिया द्वारा पाकिस्तान में कथित हताहत नागरिकों के लिए संवेदना व्यक्त करने वाले अपने शुरुआती बयान को वापस लेना और उसके बाद भारत के आत्मरक्षा के संप्रभु अधिकार के लिए समर्थन की पुष्टि करना एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत थी,

जो सीधे हमारे विस्तृत और प्रेरक जुड़ाव के कारण थी. इसने प्रदर्शित किया कि तथ्यों को धैर्यपूर्वक और लगातार प्रस्तुत करने से शुरुआती गलतफहमियों या जानबूझकर फैलाई गई भ्रामक जानकारियों को भी दूर किया जा सकता है. हमारी पहुंच का एक समानांतर और उतना ही महत्वपूर्ण पहलू पाकिस्तान के आतंकवाद से निरंतर संबंधों को रेखांकित करना था.

हमने लगातार अपनी सीमाओं के पार से उभर रहे खतरे की गंभीरता को उजागर किया, जिसका उद्देश्य अपराधियों को जवाबदेह ठहराने पर वैश्विक सहमति बनाना था. वाशिंगटन डीसी में हुई बातचीत इस संबंध में विशेष रूप से ज्ञानवर्धक थी. हालांकि एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल भी उसी समय मौजूद था,

लेकिन हमने पाया कि अमेरिकी प्रतिनिधि, जिनमें पाकिस्तानी अधिकारियों से मिलने वाले प्रतिनिधि भी शामिल थे, हमारी चिंताओं को दोहरा रहे थे और उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई का आग्रह किया. इससे यह पुष्टि हुई कि हमारे तर्क तथ्यों पर आधारित थे, सटीक थे और भारत की स्थिति की वैधता को मजबूत कर रहे थे.

ट्रेडीशन (परंपरा) उन तीन ‘टी’ में से एक है, जिनके बारे में मेरा मानना है कि उनके जरिए भारत की भविष्य की वैश्विक रणनीति को आगे बढ़ाना चाहिए : टेक, ट्रेड और ट्रेडीशन अर्थात तकनीक, व्यापार और परंपरा, ये सभी मिलकर दुनिया के सामने नए भारत को बढ़ावा देते हैं. आईटी सेवाओं में भारत की क्षमता अच्छी तरह से स्थापित है,

अब अगला मोर्चा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में तकनीकी उत्पादों और नवाचार में है. हमें कूटनीतिक प्रयासों के जरिए भारतीय तकनीकी सफलताओं को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोगात्मक नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए. इसी तरह, व्यापार हमारे आर्थिक विकास और वैश्विक स्थिति के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है.

तेजी से प्रतिस्पर्धी होती दुनिया में, विशेष रूप से चीन की तुलना में, भारत को अपने व्यापार की  सक्रिय रूप से बढ़ाना चाहिए और अपने व्यापार के क्षेत्र में विविधता लानी चाहिए. इसलिए कूटनीतिक संपर्क को सुरक्षा चिंताओं व आर्थिक अवसरों के साथ सहजता से मिलाना चाहिए, जिससे पारस्परिक रूप से लाभकारी भागीदारी बने.

मेरा एक मुख्य संदेश यह था कि भारत अपने विकास और प्रगति पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और आतंकवाद तथा युद्ध को टालना चाहता है; हम पाकिस्तान से बस यही चाहते हैं कि हमारी प्रगति की राह में रोड़े न अटकाए. लेकिन अगर वे हम पर हमला करते हैं, तो हम भी जवाबी हमला करेंगे: हम उनके हर हमले की कीमत चुकाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं.

इसी तरह, अगर वे रुक जाते हैं, तो हम संघर्ष की कोई इच्छा नहीं रखते हैं. शांति ही हमें समृद्ध बनाती है. यह दौरा सक्रिय और सुसंगत सार्वजनिक कूटनीति के महत्व को भी सामने लाया. हम जिस भी देश में गए, उन्होंने हमारे दौरे का स्वागत किया और भारत से अपने सांसदों को अधिक बार भेजने का आग्रह किया.

जनप्रतिनिधियों, सांसदों और सरकारी नेताओं के अलावा, हमने विचार मंचों, प्रभावशाली नीति-निर्माताओं और राष्ट्रीय मीडिया के साथ विस्तार से बात की. हमें जो मीडिया कवरेज मिला, और विदेश नीति विशेषज्ञों के साथ बातचीत की, उसने भारत के दृष्टिकोण को प्रदर्शित किया. यह पश्चिमी और मुख्यधारा के मीडिया के साथ गहन जुड़ाव की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करता है.

संवादहीनता की स्थिति में गलत सूचनाएं आसानी से  अपना स्थान बना लेती हैं, इसलिए झूठ का मुकाबला करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारा पक्ष सटीक और प्रेरक ढंग से पेश किया जाए, वैश्विक मीडिया परिदृश्य में हमारी निरंतर उपस्थिति आवश्यक है. यह एक ऐसी चीज है जिसे हम बेहतर कर सकते हैं.

इसके अलावा, पनामा और गुयाना जैसे देशों की यात्रा, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के वर्तमान गैर-स्थायी सदस्य हैं, साथ ही कोलंबिया, जिसके 2026 में यूएनएससी में शामिल होने की उम्मीद है, ने विभिन्न देशों के साथ संबंधों को बढ़ावा देने की रणनीतिक अनिवार्यता को उजागर किया. सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी के लिए पनामा का स्पष्ट समर्थन, जिसे विदेश मंत्री जेवियर मार्टिनेज आचा ने व्यक्त किया, प्रत्यक्ष जुड़ाव के महत्व और दीर्घकालिक राजनयिक संबंधों का प्रमाण है. ये ऐसे साझेदार हैं जो महत्वपूर्ण वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज को आगे बढ़ा सकते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऊर्जा, गतिशीलता और जुड़ने की इच्छाशक्ति वैश्विक मंच पर भारत के लिए एक अहम पूंजी है, लेकिन इसे और अधिक समर्थन की आवश्यकता है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद कूटनीतिक यात्राएं राष्ट्रीय संकल्प और प्रभावी संचार दिखाने का एक मौका था.

इसने पुष्टि की कि भारत जब एकजुट होता है, तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्पष्टता व दृढ़ विश्वास के साथ अपनी आवाज उठा सकता है. एकता की शक्ति, स्पष्ट संचार की प्रभावकारिता, सॉफ्ट पाॅवर का रणनीतिक मूल्य और निरंतर सार्वजनिक कूटनीति की अनिवार्यता जैसे सबक निस्संदेह भारत के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों का काम करेंगे क्योंकि यह एक तेजी से जटिल अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की ओर बढ़ रहा है और अपने तीन टी का लाभ उठाते हुए हमेशा अधिक न्यायपूर्ण, सुरक्षित व समृद्ध दुनिया के लिए प्रयास करेगा.

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