ब्लॉग: मानहानि, दोषसिद्धि और अयोग्यता का कानून

By फिरदौस मिर्जा | Updated: March 27, 2023 15:41 IST2023-03-27T15:33:51+5:302023-03-27T15:41:14+5:30

हाल ही में, एक डाटा सामने आया था कि 2014 की तुलना में 2019 में संसद में ऐसे 26% अधिक प्रतिनिधि हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।

Law of Defamation, Conviction and Disqualification | ब्लॉग: मानहानि, दोषसिद्धि और अयोग्यता का कानून

फाइल फोटो

Highlights राहुल गांधी की मानहानि मामले के बाद संसद सदस्यता हुई रद्द संविधान का अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है लेकिन यह कानून द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है।सदस्यता जारी रखने के लिए केवल सजा का निलंबन ही नहीं बल्कि दोषसिद्धि पर स्थगन भी प्राप्त करना होगा।

लोकसभा से राहुल गांधी की अयोग्यता के साथ मानहानि, दोषसिद्धि और अयोग्यता से संबंधित कानूनों ने अपना चक्र पूरा कर लिया है और हमें इस पर विचार करने के लिए छोड़ दिया है कि वे वास्तव में क्या हैं।

आज तक किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक चुनावी भाषण इतना घातक हो सकता है कि आपको संसद की सीट से हाथ धोना पड़ जाए। संविधान का अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है लेकिन यह कानून द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 499 ऐसे किसी भी कथन को, जो किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता हो, दो साल तक के साधारण कारावास या जुर्माना अथवा धारा 500 के तहत दोनों के साथ दंडनीय बनाती है।

कानून मानहानि के लिए अपवाद प्रदान करता है जैसे ऐसा आरोप जो सार्वजनिक भलाई के उद्देश्य से हो, व्यक्ति द्वारा अपने या दूसरों के हितों की रक्षा के लिए लगाया गया आरोप आदि।

शर्त यह है कि आरोप बुरी नीयत से न लगाया गया हो, उसके पीछे सद्भाव हो। आरोपी को बरी होने के लिए यह साबित करना होगा कि उसका कृत्य अपवाद के दायरे में आता है।

कहा जाता है कि बड़ा पद अधिक उत्तरदायित्व लाता है, इसलिए विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों को आम आदमी की तुलना में अपने कृत्यों के परिणामों को अधिक सख्ती से भुगतना चाहिए।

हाल ही में, एक डाटा सामने आया था कि 2014 की तुलना में 2019 में संसद में ऐसे 26% अधिक प्रतिनिधि हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 में संसद या राज्य विधानसभाओं के प्रतिनिधियों को कुछ अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित करने का प्रावधान है।

अयोग्यता इस तरह की सजा की तारीख से होगी और कारावास से रिहा होने के बाद 6 साल की अवधि के लिए जारी रहेगी। इससे पहले, 1989 में उप-धारा (4) को धारा 8 में जोड़ा गया था, जिसमें मौजूदा सांसदों और विधायकों को स्वत: अयोग्यता से 3 महीने की राहत दी गई थी, लेकिन लिली थॉमस-बनाम- भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इसको असंवैधानिक घोषित किया।

तत्पश्चात, यूपीए-द्वितीय शासन के दौरान इसी तरह के अपवाद के लिए एक अध्यादेश लाया गया था लेकिन विडंबना यह है कि राहुल गांधी ने इसका विरोध किया और सुझाव दिया कि इसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाने चाहिए।

ट्रायल कोर्ट द्वारा सजा सुनाए जाने का मतलब यह नहीं है कि दोषी के लिए कोई रास्ता नहीं है। वह अपील कर सकता है। सदस्यता जारी रखने के लिए केवल सजा का निलंबन ही नहीं बल्कि दोषसिद्धि पर स्थगन भी प्राप्त करना होगा।

Web Title: Law of Defamation, Conviction and Disqualification

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