Land For Job Scam: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लालू प्रसाद यादव के लगभग पूरे परिवार पर भूमि के बदले नौकरी घोटाले में मुकदमा चलाने की मंजूरी रोक रखी थी. हालांकि जनवरी 2024 में चार्जशीट दाखिल की गई थी, लेकिन पूरक चार्जशीट को रोक दिया गया था. कहानी यह है कि देरी एक राजनीतिक सौदे का हिस्सा थी कि राजद अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यू) के साथ कभी गठबंधन नहीं करेगा. लेकिन लालू ने बड़ी गलती की और पीएम मोदी पर व्यक्तिगत रूप से हमला करना शुरू कर दिया और तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से मिलने उनके आवास पर गए. हालांकि यह दोनों नेताओं के बीच एक आधिकारिक बैठक थी, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भाजपा नेतृत्व असहज था.
नीतीश कुमार हाल ही में अपनी ताकत दिखा रहे हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि भाजपा न केवल बिहार में बल्कि दिल्ली में भी उन पर निर्भर है. सीबीआई चुपचाप गृह मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार कर रही थी और एक सुबह मंजूरी मिल गई. ऐसा कहा जाता है कि तेजस्वी यादव मोर्चा खोलने के लिए ज्यादा इच्छुक नहीं थे.
लेकिन लालू ने उन्हें सिखाया कि डर में जीना मौत से भी बदतर है. विशेष न्यायाधीश बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नौकरी के बदले जमीन मामले की सुनवाई पूरी करने के मूड में हैं. यह मामला जमीन के बदले रेलवे में ग्रुप-डी की नियुक्तियों से जुड़ा है, जब लालू प्रसाद यादव 2004-2009 के बीच रेल मंत्री थे.
गडकरी ने क्यों बोलना शुरू किया?
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी अपनी बात बेबाकी से रखने के लिए जाने जाते हैं. मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर पिछले दस सालों में उन्होंने काफी असहजता पैदा की थी और एक समय तो ऐसा भी आया था जब गलतफहमियां चरम पर पहुंच गई थी. तब से अब तक काफी कुछ बदल चुका है और गडकरी ने सार्वजनिक मंचों और निजी तौर पर भी बोलना बंद कर दिया था.
लेकिन हाल ही में उन्होंने अपनी बात रखना शुरू किया है, हालांकि वे तय मानकों के भीतर हैं. कुछ हफ्ते पहले उन्होंने बीमा पॉलिसियों पर लगाए गए 18 प्रतिशत जीएसटी को हटाने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखा था. जब विवाद ने थमने का नाम नहीं लिया, तो गडकरी ने बताया कि उन्होंने तो केवल अपने नागपुर निर्वाचन क्षेत्र के एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा दिया गया ज्ञापन ही उन्हें सौंपा था.
इसका नतीजा यह हुआ कि निर्मला सीतारमण ने स्वास्थ्य और जीवन बीमा पॉलिसियों पर लगाए गए जीएसटी के पूरे दायरे की जांच के लिए एक मंत्री समूह का गठन कर दिया. लेकिन यह तो बस शुरुआत थी. बाद में उन्होंने सार्वजनिक रूप से खुलासा किया कि विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन देने की पेशकश की थी, अगर वे इच्छुक हों तो.
भाजपा में कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन गडकरी अपने रुख पर कायम रहे. हाल ही में गडकरी ने एक सार्वजनिक समारोह में एक और हमला करते हुए कहा, ‘‘अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश ‘विश्वगुरु’ बने, तो हमें सामाजिक सद्भाव का रास्ता अपनाना चाहिए.’’
उन्होंने एक और टिप्पणी की : लोकतंत्र की असली परीक्षा यह है कि क्या सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति अपने खिलाफ सबसे मजबूत राय को बर्दाश्त करने और आत्मनिरीक्षण करने में सक्षम है.’’ उनकी चिंता यह थी कि देश ‘‘मतभेदों की समस्या का सामना नहीं कर रहा, बल्कि इसकी कमी का कर रहा है.’’ पर्दे के पीछे क्या पक रहा है, इस पर अंतिम फैसला अभी आना बाकी है.
दिल्ली में स्मृति ईरानी अकेली पड़ीं?
भाजपा नेतृत्व एक नए ‘स्थानीय नेता’ की तलाश में है, जो पार्टी को राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में ला सके. हालांकि भाजपा 1998-1999 में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीन कार्यकालों से निर्णायक रूप से लोकसभा चुनाव जीतती रही है. लेकिन जब दिल्ली विधानसभा की बात आती है, तो हार कचोटने वाली रही है. भाजपा 1998 के बाद से एक बार भी दिल्ली जीतने में विफल रही, हालांकि उसने पिछले 26 वर्षों के दौरान कई प्रयोग किए. अगर शीला दीक्षित ने 15 साल शासन किया, तो आप 2013 से सत्ता में है.
भाजपा नेतृत्व फरवरी 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने की रणनीति तैयार करने के लिए रात-दिन एक कर रहा है. हाल ही में सुर्खियों में रहे नामों में से एक पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का था. अब यह पता चला है कि भाजपा की स्थानीय इकाई उनके उग्र स्वभाव आदि के कारण उनसे सहज नहीं है.
कहने की जरूरत नहीं कि उनमें दिल्ली इकाई का नेतृत्व करने के लिए सभी गुण मौजूद हैं. लेकिन पहली बार लोकसभा सांसद बनीं बांसुरी स्वराज और दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी सबसे पसंदीदा उम्मीदवार हैं. उन्होंने सार्वजनिक भाषणों में अपनी खूबियां दिखाई हैं और सभी को प्रभावित किया है. अब गेंद पार्टी हाईकमान के पाले में है.
बिहार में ‘आप’ जैसा नया प्रयोग
आगामी 2 अक्तूबर को एक नया राजनीतिक संगठन-जन सुराज पार्टी-जन्म लेने जा रहा है. चुनाव सलाहकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर आदर्श शासन और विकास मॉडल देने के अपने राजनीतिक विजन का प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने नीतीश कुमार के शराबबंदी कानून को खत्म करने की घोषणा करके पहले ही हलचल मचा दी थी, जो गरीब विरोधी है.
किशोर ने कई राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए जीत की रणनीति तैयार करते हुए विभिन्न मॉडलों को सफलतापूर्वक बेचा था. उनका मानना है कि बिहार को ताजी हवा की जरूरत है, क्योंकि लोग लालू, नीतीश और अन्य दलों से ऊब चुके हैं. कोई नहीं जानता कि विधानसभा चुनाव में किशोर किस पर वार करेंगे.
वे जाति और धर्म से ऊपर उठने की जरूरत के बारे में बात करते रहे हैं. लेकिन अब वे इन्हीं बातों में उलझ गए हैं, जैसे विभिन्न जातियों की आबादी के अनुपात में टिकट बांटना और पार्टी की कमान विभिन्न जातियों के बीच घुमाना. सवाल है कि क्या वे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की तरह सफल होंगे?