महावीर का संपूर्ण जीवन स्व और पर के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-करोड़ों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। इसलिए महावीर बनना जीवन की सार्थकता का प्रतीक है। महावीर बनने का अर्थ है स्वस्थ जीवन जीना, रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना। प्रत्येक वर्ष हम भगवान महावीर की जन्म-जयंती मनाते हैं, लेकिन इस वर्ष उस महान आत्मक्रांति के वीर महापुरुष की जयंती को सिर्फ आयोजनात्मक नहीं बल्कि प्रयोजनात्मक स्वरूप देना है। इसके लिए हर व्यक्ति अपने भीतर झांकने की साधना करे। महावीर को केवल पूजें ही नहीं, बल्कि जीवन में धारण कर लें। जरूरी है कि महावीर ने जो उपदेश दिए उन्हें हम जीवन और आचरण में उतारें।
महावीर वही व्यक्ति बन सकता है जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो, जिसकी जीवनशैली संयम एवं अनुशासनबद्ध हो, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता हो। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समता, संयम एवं संतुलन स्थापित रख सके, जो मौन की साधना और शरीर को तपाने के लिए तत्पर हो। जिसके मन में संपूर्ण प्राणीमात्र के प्रति सहअस्तित्व की भावना हो। जो पुरुषार्थ के द्वारा न केवल अपना भाग्य बदलना जानता हो, बल्कि संपूर्ण मानवता के उज्ज्वल भविष्य की मनोकामना रखता हो।
सदियों पहले भगवान महावीर जन्मे, लेकिन उनका जीवन एवं उपदेश आज के संकटपूर्ण एवं अनेक व्याधियों-बीमारियों के दौर में अधिक कारगर एवं प्रासंगिक है। महावीर स्वास्थ्य-उत्क्रांति की एक लहर हैं, स्वस्थ जीवन-ज्योति की एक निर्धूम शिखा हैं। साहस एवं संयम का अनाम दरिया हैं। उनके संवादों में शाश्वत की आहट थी। उनकी जीवनशैली इतनी प्रभावी थी कि उसे एक बार जीने वाला बंध जाता। उनकी दृष्टि में ऐसी कशिश थी कि उन्हें एक बार देखने वाला भूल ही नहीं पाता। उनके स्वस्थ जीवन के आह्वान में ऐसा आमंत्रण था कि उसे अनसुना नहीं किया जा सकता। उनका मार्गदर्शन पाने वाला कभी भटक ही नहीं पाता। उन्होंने रास्ते रोशन ही नहीं किए, बल्कि भीतर की रोशनी पैदा कर दी।