ब्लॉग: दीपावली, भगवान महावीर का “महानिर्वाण पर्व" “ज्ञान और बोध का त्योहार"
By अनुभा जैन | Published: November 10, 2023 05:56 PM2023-11-10T17:56:31+5:302023-11-10T18:07:00+5:30
हिंदुओं का सबसे रंग बिरंगा त्योहार दीपावली है। यह त्योहार जैन समुदाय में और अधिक रंग भर देता है क्योंकि इसे भगवान महावीर स्वामी के “महानिर्वाण पर्व “ के रूप में मनाया जाता है।
हिंदुओं का सबसे रंग बिरंगा त्योहार दीपावली है। इस शुभ अवसर को हर धर्म और जाति के लोग उत्साह और खुशी के साथ मनाते हैं। यह त्योहार जैन समुदाय में और अधिक रंग भर देता है क्योंकि इसे भगवान महावीर स्वामी के “महानिर्वाण पर्व “ के रूप में मनाया जाता है। दीपावली के दिन, जैन धर्म के 24वें अंतिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने “कार्तिक बुदि अमावस्या’’ पर बिहार के पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था।
इसलिए, दीपावली, प्रकाश का त्योहार जैन समुदाय के लिए ज्ञान और प्राप्ति का त्योहार बन जाता है। सबसे दिलचस्प पहलू जो इस त्योहार को और अधिक शुभ बनाता है वह यह है कि 2600 वर्षों में सात तीर्थंकरों और 11 जैन भिक्षुओं ने दीपावली की रात को ही जागृति प्राप्त की थी। साथ ही, यह दिन “आदि दीपायन“ के नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि इस दिन महावीर के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी इंद्रभूति गौतम ने अपनी हार स्वीकार की थी और अपने एक हजार शिष्यों के साथ जैन धर्म अपनाया था।
सौभाग्य से, गौतम को महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के तुरंत बाद केवल्यज्ञान, सर्वज्ञता प्राप्त हुई। इसी के प्रतीक स्वरूप कार्तिक बुदि अमावस्या को दीपावली पर्व मनाया जाता है। सर्वोदय विचार प्रणाली मूलतः जैन दर्शन की देन है। सर्वोदय का अर्थ है सबका उत्थान अर्थात सभी प्राणियों की समानता के साथ उन्नति। सर्वोदय तीर्थ की स्थापना ही इस बात का सूचक है कि वर्तमान जैन धर्म काफी हद तक उनकी मौलिक खोज, चिंतन, आचरण, नियम और संगठन का परिणाम है।
जैन दर्शन के प्रसिद्ध विचारक और दार्शनिक प्रो. (डॉ.) पी.सी.जैन ने बताया कि जैन दर्शन पुरुषार्थ एवं परिस्थिति अथवा भाग्य का समर्थन करता है। ’अनेकांत’ का सिद्धांत संपूर्ण विश्व के चिंतन को जैन धर्म की महान देन है। सर्वोदय की यह दृष्टि सभी के दृष्टिकोण और विचारों को समझने, उन विचारों के मूल सार को खोजने, मतभेदों को महत्व न देने और समान आत्मिक तत्वों के आधार पर प्रेम और सम्मान के साथ सबको साथ लेकर चलने की दृष्टि को समर्थन और सुदृढ़ करती है।
भगवान महावीर ने अपने धर्म, दर्शन और समाज को अनेकांत और रत्नत्रय अर्थात कर्म, भक्ति, आत्म-समर्पण और नैतिक आचरण के सिद्धांतों पर आधारित किया है। इन तत्वों के माध्यम से उन्होंने न केवल सर्वोदय तीर्थ की स्थापना की बल्कि इन कारकों को मोक्ष प्राप्ति का जरिया भी माना है। प्रो. (डॉ.) पी.सी.जैन ने कहा, “जैन धर्म के इस सार्वभौमिक महत्व ने मुझे महावीर स्वामी के प्रति अपनी भक्ति समर्पित करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने जीवन में उपलब्ध सभी कामुक सुखों को त्याग दिया और आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। मैं उन्हें महात्मा बुद्ध से श्रेष्ठ मानता हूं क्योंकि बुद्ध के मन में त्याग की भावना तब आई जब उन्होंने बीमारों, बुजुर्गों और मृतकों को देखा। परंतु महावीर स्वामी के लिए इन सामग्रियों की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसीलिए मैंने उनके त्याग को “ऋजुसंस्कार“ कहा है, जहाँ यह संस्कार उन्हें बाहर से नहीं आया बल्कि यह जन्मजात था।