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ठंडे रेगिस्तान में आग किसने भड़काई?, सरहद पर भारत को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: September 29, 2025 05:22 IST

Ladakh protest: सवाल ये है कि क्या वांगचुक वाकई जिम्मेदार हैं या कुछ और छिपी ताकतें हैं जो सरहद पर भारत को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं?

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ठळक मुद्देमगर वहां के लोग खुद को हमेशा उपेक्षित महसूस करते थे.लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा था. लद्दाख इलाके का नाम है और लेह उसका प्रमुख शहर है.

Ladakh protest: ऐसा माना जाता है कि फिल्म थ्री इडियट के मुख्य किरदार फुनसुख वांगडू की जो भूमिका आमिर खान ने निभाई थी,  वह लेह-लद्दाख के पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की जिंदगी पर आधारित थी. लोग उन्हें जानते थे लेकिन फिल्म के साथ वे पूरे भारत के दिल में बस गए. विडंबना देखिए कि अब लेह में हुई हिंसा के साथ कई आरोपों से वे घिर गए हैं. पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर चुकी है. सवाल ये है कि क्या वांगचुक वाकई जिम्मेदार हैं या कुछ और छिपी ताकतें हैं जो सरहद पर भारत को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं?

लेह में हुई हिंसा में अब तक चार लोगों की मौत हुई है और बहुत सारे लोग घायल हुए हैं. हिंसा के कारणों को समझने से पहले यह समझिए कि मसला क्या है? लद्दाख इलाके का नाम है और लेह उसका प्रमुख शहर है. लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा था. मगर वहां के लोग खुद को हमेशा उपेक्षित महसूस करते थे.

आजादी के कुछ ही साल बाद  लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष छेवांग रिग्जिन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था कि लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किया जाना चाहिए क्योंकि यह इलाका धर्म, नस्ल, भाषा और  संस्कृति के आधार पर कश्मीर से बिल्कुल अलग है.

लद्दाख के ही एक प्रभावशाली नेता लामा कुशक बाकुला ने तो शेख अब्दुल्ला से नाराज होकर यहां तक धमकी दे दी थी कि यदि लद्दाख की मांगें नहीं मानी गईं तो तिब्बत के साथ जाने की भी सोच सकते हैं. वह केवल धमकी थी लेकिन लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन चलता रहा. साल 1979 में जब लद्दाख क्षेत्र का दो जिलों में परिसीमन किया गया,

तब मुस्लिम बहुल आबादी के कारण कारगिल को एक अलग जिला बनाया गया और बौद्ध बहुल आबादी के कारण लेह को अलग. लेकिन इसके बाद लद्दाख के बौद्धों ने आरोप लगाने शुरू किए कि जम्मू-कश्मीर राज्य बौद्धों के मुकाबले मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति रखता है. इसी असंतोष के कारण  1989 में हुए आंदोलन में तीन लोगों की जान चली गई थी.

अंतत: 2019 में जब जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन हुआ और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना  तो इस पूरे इलाके में खुशियां छा गई थीं. हर ओर जश्न मनाया जा रहा था. स्वयं वांगचुक ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुले दिल से प्रशंसा की. इसीलिए यह सवाल पैदा होता है कि जो इलाका केंद्र शासित प्रदेश के रूप में वजूद में आकर जश्न मना रहा था,

वहां कुछ ही वर्षों में राज्य का दर्जा प्राप्त करने और छठी अनुसूची में शामिल होने की भूख कहां से जाग गई? ज्यादातर लोगों को तो शायद यही पता नहीं होगा कि छठी अनुसूची आखिर है क्या? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि छठी अनुसूची चार पूर्वोत्तर राज्यों- असम, मेघालय, मिजोरम, और त्रिपुरा के जनजातीय इलाकों के लिए एक प्रशासनिक प्रावधान है जिसका मकसद वहां की  संस्कृति, जमीन व अन्य संसाधनों की रक्षा करना है. निश्चित ही लेह की संस्कृति की रक्षा होनी चाहिए, संसाधनों पर मूल अधिकार वहीं के लोगों का होना चाहिए मगर इसके लिए हिंसा तो सर्वथा अनुचित है.

लद्दाख के लोग बहुत भोले हैं. मैं कई बार वहां गया हूं. पिछली बार जब कारगिल में सेना के जवानों के लिए लोकमत की ओर से निर्मित गर्म घरों का शुभारंभ करने मैं और मेरे अनुज राजेंद्र वहां गए थे तब हम जाते और आते समय कुछ देर के लिए लेह में रुके थे. रास्ते में रुक कर वहां के लोगों से बातचीत भी की थी. दिसंबर-जनवरी में तो तापमान शून्य से दस डिग्री से भी ज्यादा नीचे गिर जाता है.

ठंडा रेगिस्तान कहे जाने वाले इस इलाके में जीवन बहुत कठिन है. यहां के लोग शांति प्रिय हैं. वे अपने इलाके की संस्कृति को सहेजने के प्रति बेहद जागरूक हैं. आपको आश्चर्य होगा कि लद्दाख में पॉलीथिन पर सामाजिक प्रतिबंध के पचास साल से ज्यादा हो गए. ऐसे इलाके के लोग अगर हिंसा पर उतारू हो जाएं तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है.

सामान्य तौर पर लोगों का कहना है कि पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक 10 सितंबर को 35 दिनों के लिए भूख हड़ताल पर बैठे थे. उनके समर्थन में  लेह अपेक्स बॉडी (एलएबी) की युवा शाखा ने लेह बंद का आह्वान किया. सब कुछ ठीक-ठाक था. लेह का पूरा बाजार बंद था लेकिन इसी दौरान कुछ लोगों ने भाजपा कार्यालय पर पत्थर फेंके.

परिसर की एक इमारत को आग लगा दी और कुछ वाहन भी फूंक दिए. उसके बाद पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने उपद्रवियों को काबू में करने की कोशिश की, गोलियां चलीं, आंसू गैस के गोले छोड़े गए और काफी लोग घायल हुए. इस स्थिति से आहत सोनम वांगचुक ने अपनी हड़ताल खत्म कर दी. उन्होंने बस इतना कहा कि युवा हताश हैं लेकिन हिंसा नहीं करनी चाहिए.

पुलिस ने हिंसा को लेकर लेह के कांग्रेस पार्षद फुंटसोग स्टेनजिग त्सेपाग के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है, सोनम वांगचुक की संस्था पर भी नकेल कसी जा रही है. उनकी संस्था विदेशों से धनराशि नहीं ले पाएगी. मगर एक सवाल अनुत्तरित है कि सोनम वांगचुक या कोई भी ऐसी हिंसा को बढ़ावा क्यों देगा जब लद्दाख के प्रतिनिधियों के साथ केंद्र सरकार की लगातार बातचीत हो रही है.

छह अक्तूबर को फिर एक वार्ता निर्धारित है जिसमें एलएबी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस भी शामिल होने वाली है. हिंसा से तो लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कमजोर ही होगी! सीधा सा अर्थ है कि किसी ने युवाओं को गुमराह करने की कोशिश की है. वो कौन है? क्या वो अपने भीतर से है या कहीं कोई बाहरी शक्ति तो इसमें शामिल नहीं है?

जवाब तलाशना बहुत जरूरी है क्योंकि लद्दाख चीन की सरहद के पास है और वहां कोई भी आंतरिक कमजोरी हमारे लिए उतनी ही घातक हो सकती हैै जितनी कि कश्मीर घाटी में साबित हो रही है. मेरा मानना है कि हमें लद्दाख के लोगों की भावनाओं को सम्मान देना होगा और यह भी समझना पड़ेगा कि सोनम वांगचुक कोई राष्ट्रविरोधी व्यक्ति नहीं हैं.

वे लद्दाख को उसके मूल स्वरूप में जिंदा रखना चाहते हैं. हमें यह भी समझना होगा कि दुनिया की बहुत सी ताकतें भारत के खिलाफ खड़ी हैं क्योंकि भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत उन्हें सुहा नहीं रही है. हम गलती से भी ऐसा कुछ न करें कि उन ताकतों के हाथ में हमारे हथियार आ जाएं.

टॅग्स :लद्दाखजम्मू कश्मीरपाकिस्तानचीननेपाल
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