राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने रविवार को कहा कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में अदालती फैसलों में देरी से आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है। साथ ही उन्होंने अदालतों में स्थगन की संस्कृति में बदलाव का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा कि लंबित मामले न्यायपालिका के समक्ष एक बड़ी चुनौती हैं और उन्होंने कहा कि जब बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में अदालती फैसले एक पीढ़ी बीत जाने के बाद आते हैं तो आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है।
इसलिए लंबित मामलों में निपटारे के लिए एक विशेष लोक अदालत जैसे कार्यक्रम अधिक बार आयोजित किए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी अफसोस जताया कि कुछ मामलों में साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद बेखौफ खुलेआम घूमते रहते हैं और गरीब लोग अदालत में जाने से डरते हैं।
राष्ट्रपति के अनुसार ऐसे लोग अन्याय को चुपचाप सहते हैं। मैं पहले भी लिख चुकी हूं कि मैं राष्ट्रपति मुर्मु की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं, क्योंकि वह जमीन से जुड़ी महिला हैं. हर आम आदमी का दर्द समझती और जानती हैं, वो हर अवस्था से स्वयं गुजर चुकी हैं। उनकी चिंता वाजिब है। एक महिला होने के नाते एक महिला का दर्द भी समझती हैं।
कोलकातारेप, मर्डर केस के बाद शायद ही कोई स्त्री होगी जिसका खून न खौला हो। बंगाल की मुख्यमंत्री ने रेपिस्ट को फांसी दिए जाने के प्रावधान वाला बिल तो पास करवा लिया परंतु अभी तक कोलकाता डाॅक्टर केस में हत्या करने वालों को फांसी क्यों नहीं हुई।
यही नहीं, हमारे प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि केवल 6.7 प्रतिशत अदालतों का बुनियादी दावा महिलाओं के अनुकूल है, इसलिए ऐसी स्थिति को बदलने की जरूरत है।
यही नहीं, हर मां को अपने बेटों और बेटियों को भी शिक्षा देनी होगी और कुछ ऐसा भी प्रावधान हो कि इंटरनेट, सोशल मीडिया पर अश्लील चीजाें पर भी प्रतिबंध हो. समाज के लोगों की मानसिकता स्वच्छ होनी चाहिए। आज छोटे-छोटे बच्चों के साथ ऐसी गंदी हरकतें, घटनाएं हो रही हैं। इसके लिए बारीकी से हर उन अश्लील चीजों को, वीडियो को रोकना होगा जो मानसिकता खराब करते हैं। हर वे यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया बंद होने चाहिए जहां यह सब उपलब्ध हैं।
देश के हर कोने-कोने में ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे. सुरक्षा जरूरी है, नहीं तो महिला सशक्तिकरण का कोई फायदा नहीं होगा। ऐसा ही होना है तो महिलाएं घूंघट डालकर घर पर ही बैठ जाएं और सुरिक्षत रहें, क्या यह सब चाहते हैं? अगर नहीं तो आगे सभी मिलकर ऐसे जघन्य अपराध को रोकें। हर कोई देश का सिपाही बन जाए, बहनों का भाई, बेटियों का रखवाला बन जाए।