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झोलंबा: एक ऐसा गांव जहां बच्चे टैलेंटेड हैं और नर्स 'बिजली' की तरह आती है

By कोमल बड़ोदेकर | Updated: December 14, 2017 21:45 IST

कथित नेशनल न्यूज चैनल भी चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को ग्राउंड रिपोर्ट देखने के लिए मजबूर कर चुका है लेकिन सच तो यह है कि उनकी रिपोर्ट में ग्राउंड छोड़कर वह सब होता है जो आप टाइम पास के लिए देखते हैं।

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झोलंबा... पहली बार यह शब्द पढ़कर आप यही सोचेंगे कि यह क्या है और ऐसा सोचने वाले आप पहले व्यक्ति नहीं है। दरअसल झोलंबा एक गांव का नाम है। महाराष्ट्र के अमरावती जिले का एक छोटा सा गांव है। अमरावती से यह करीब 80 किलोमीटर दूर है और इसकी तालुका वरूड़ गांव से करीब 28 किलोमीटर दूर है। केंद्र सरकार की जब कोई योजना दिल्ली से चलती है तो उसे शहरों में ही पहुंचने में इतना टाइम लग जाता है तो आप सोच सकते हैं कि गांव में यह योजनाए कब और कैसे पहुंचती होंगी वो भी तब जब इस गांव में पहुंचने के लिए आपको पहले ट्रेन का सफर, फिर एसटी यानी लाल बस, फिर शेयरिंग ऑटो या जीप लेनी होगी, लेकिन रास्ता इतना उबड़-खाबड़ है कि आप दूर से ही राम-राम करना मुनासिब समझेंगे।

फिर भी अगर आप हिम्मत दिखाते हैं तो इसके बाद आपको 2 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना होगा। हां, अगर आपकी किस्मत अच्छी रही तो रास्ते में आपको कोई बैलगाड़ी मिल सकती है जो गांव तक आपको आसानी से छोड़ सकती है, लेकिन आप यही सोच रहे होंगे कि आखिर आप इस गांव में जाएंगे ही क्यों... सही है... यहां न तो कोई ऐतिहासिक धरोहर है... न ही कोई धार्मिक स्थल और न ही कोई अचरज वाली ऐसी चीज जिसके बारे में सोचकर आपका यहां जाने का मन करें।

लेकिन जरा सोचें कि आपको अगर भारत में बसे इस गांव में जाने में इतनी मुश्किल होगी है तो यहां रहने वाले लोगों को 'इंडिया' से कनेक्ट होने में कितनी दिक्कत होती होगी। यहां न तो पर्याप्त संसाधन है, न ही बेहतर ट्रांसपोर्टेश और न ही 4जी स्पीड वाला इंटरनेट कम्यूनिकेशन। बिजली कब आती है कब जाती है किसी को नहीं पता। कुछ ऐसा ही हाल एसटी यानी लाल बस का है जो कब आती है कब जाती है नहीं पता।

अगर किसी दिन आपका वाइ-फाइ या इंटरनेट ठीक से काम न करें तो आप ट्विटर, फेसबुक पर अपना गुस्सा जाहिर करेंगे। उस कंपनी में बार-बार फोन कर शिकायत दर्ज करेंगे लेकिन यहां 2जी नेटवर्क भी ठीक से काम नहीं करता बावजूद इन्हें किसी से शिकायत नहीं है। प्रधानमंत्री चिल्ला-चिल्ला कर अपनी योजनाओं और विकास कार्यों का महिमा मंडन करते हैं लेकिन उसकी जमीनी हकीकत यहां बखूबी देखी जा सकती है। हालांकि इस मामले में यह देश का एकमात्र गांव नहीं है। तमाम राज्यों में न जाने ऐसे कितने ही गांव हैं जहां विकास 'पागल' नहीं बल्कि अब भी गायब ही है। 

विकास के नाम पर गांव में टूटी हुई पुलिया है। उजड़ी हुई सड़के हैं। बिजली गायब है लेकिन खंबे जरूर है। दिल्ली पब्लिक स्कूल को मात देता हुआ जर्जर हालत का स्कूल है और दिल्ली के राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से भी अच्छा टूटा फूटा हुआ बस स्टॉप है। कुछ भी हो लेकिन बहुमुखी प्रतिभा के बच्चे हैं लेकिन उन्हें प्रॉपर गाइंडेंस कैसे मिले इसके लिए कोई गाइडलाइन नहीं है। बच्चों ने हाथ में डीएसएलआर कैमरा देखा तो उनके मासूम सवालों की झड़ी लग गई। टीवी पर जो प्रोग्राम आते हैं वो आप ही बनाते हो क्या... आप कहां से आए हो... टीवी पर आते हो क्या... टीवी में जैसा दिखता है क्या हवाई जहाज वैसा ही होता है... क्या ट्रेन बहुत बड़ी होती है और भी बहुत कुछ। 

इंडिया में रह रहे लोग अपने बच्चों की पढ़ाई में हर महीने हजारों और सालाना लाखों रूपए हवा में फूंक देते हैं। किताबों का बोझ लिए बच्चा स्कूल तो जाता है और घर लौटते-लौटते उसकी हालत थके हुए मजदूर की तरह हो जाती है। शायद लोग उन्हें पब्लिक स्कूल में इसलिए पढ़ाते हैं क्योंकि उन्हें भारतीय स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। ऐसे में अगर जब बुनियादी शिक्षा ही शक के घेरे में हो तो कैसे हम भारत के सुनहरे भविष्य की कल्पना करेंगे। 

बहरहाल यह तो बच्चों और शिक्षा की बात थी। अगर गांव की हेल्थ की बात करें तो जानकर हैरानी होगी कि यहां किसी ने भी डॉक्टर को आते नहीं देखा। नर्स है सप्ताह में कभी भी तीन दिनों के लिए आती है लेकिन वह भी बिजली की तरह है कब आती है कब जाती है कुछ पता नहीं। कुछ इमरजेंसी हो तो आप समझ सकते हैं की जर्जर हो चुकी सड़क से 7 किलोमीटर दूर दूसरे गांव में बने निजी अस्पताल में पहुंचने में मरीज की हालत क्या होती होगी। 

हांलाकि गांव वालों ने बताया कि उनकी मुख्य समस्या सड़क है। इस सड़क से भारत का भविष्य रोज 7 किलोमीटर दूर पैदल चलकर जाता है और पैदल वापस आता है, वो भी तब जब आप घर के नुक्कड़ पर सब्जी लेने के लिए बाइक से जाते हैं। सरकार को आम सी दिखने वाली यह समस्या ग्रामिणों के लिए काफी गंभीर है। गांव वाले ही नहीं बल्कि सरपंच भी आलाअधिकारियों से कई बार गुहार लगा चुकी है लेकिन सुस्त पड़े सिस्टम का फोन डेड हो चुका है। कहने को नीति आयोग बना है लेकिन समस्या का हल करने के लिए नियत नहीं है।

कथित नेशनल न्यूज चैनल भी चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को ग्राउंड रिपोर्ट देखने के लिए मजबूर कर चुका है लेकिन सच तो यह है कि उनकी रिपोर्ट में ग्राउंड छोड़कर वह सब होता है जो आप टाइम पास के लिए देखते हैं। बहरहाल भारत में बसे हर गांव की कहानी लगभग यही है। इसे जितनी बार भी पढ़ा जाए हर बार विकास 'गायब' ही नजर आएगा। 

टॅग्स :झोलंबाकेदारखेड़ाअमरावतीamravati
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