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प्रो. नीलिमा गुप्ता का ब्लॉग: क्या हम पूर्वाग्रह को तोड़ रहे हैं?

By नीलिमा गुप्ता | Updated: March 8, 2022 15:44 IST

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2022 का ध्येय वाक्य ‘ब्रेक द बायस’ है अर्थात पूर्वाग्रहों को तोड़ना। हम सभी यह जानते हैं कि समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों को तोड़े बगैर एक समता मूलक समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

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दुनिया में स्त्रियों के संघर्ष, उनके मानवीय मूल्यों और आदर्शो के प्रति समर्पण को वैश्विक स्तर पर अनुकरणीय बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। वस्तुत: यह महिलाओं की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक उपलब्धियों का उत्सव है। ऐतिहासिक संदर्भो में महिला दिवस को मनाने की शुरुआत औद्योगिक क्रांति के साथ जुड़ी हुई है जहां दुनिया के उद्योगों के विकास ने महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र करने के बजाय नई आर्थिक संरचनाओं में जकड़ना शुरू किया।

वर्ष 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में पहली बार 19 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। रूस ने वर्ष 1930 और 1940 के बीच 23 फरवरी को यह दिन मनाया। संयुक्त राष्ट्र ने अपना पहला आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया, जिसे सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को कुछ देशों में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर मनाया जाता है। महिला दिवस अपने उद्विकासीय स्वरूप में जहां एक ओर समाज में विद्यमान विषमतामूलक, हिंसक एवं गैर-लोकतांत्रिक संरचनाओं के प्रतिरोध की वैचारिक दृढ़ोक्ति है वहीं दूसरी ओर यह महिलाओं के द्वारा किए गए संघर्ष, उनकी उपलब्धियों और दुनिया को बेहतर बनाने में उनके योगदान को याद करने का दिन है।

आज दुनिया के लगभग सभी देशों में लैंगिक समानता की बात की जा रही है लेकिन राष्ट्रों द्वारा बड़ी प्रगति कर लेने के बावजूद यह विचार एक सपना ही बना हुआ है। वैश्विक आर्थिक सुधारों के बावजूद लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर हैं और आने वाले दिनों में यह स्थिति और भयावह हो सकती है।

आंकड़े बताते हैं कि महिला-पुरुष आमदनी में बहुत विषमता है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में 23 प्रतिशत कम कमाती हैं। आबादी के लिहाज से देखें तो हम पाते हैं कि महिलाएं दुनिया की आधी आबादी के रूप में हैं, वहीं महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी केवल 24 प्रतिशत है।

यह भी दिलचस्प है कि महिला साक्षरता दर पोलैंड, रूस और यूक्रेन में 99.7 प्रतिशत, इटली में 99, सर्बिया में 97.5, चीन में 95.2 और यहां तक कि हमारे पड़ोसी छोटे देश श्रीलंका में 91.0 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह 65.8 प्रतिशत है। इसी तरह महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर नेपाल में 81.4, वियतनाम में 72.73, सिंगापुर में 61.97, यूके में 58.09, यूएसए में 56.76, सर्बिया में 47.92 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण आधारित देश होते भारत में यह दर केवल 20.7 प्रतिशत है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, भारत में महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाने के लिए जागरूकता, प्रयास और श्रम प्रेरणा का आह्वान करता है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2022 का ध्येय वाक्य ‘ब्रेक द बायस’ है अर्थात पूर्वाग्रहों को तोड़ना। हम सभी यह जानते हैं कि समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों को तोड़े बगैर एक समता मूलक समाज का निर्माण नहीं हो सकता। इसके लिए हम एक पूर्वाग्रहमुक्त, रूढ़िवादिता और भेदभाव से मुक्त दुनिया चाहते हैं, जहां समानता एक जीवन मूल्य के रूप में समाज को निर्देशित करे।

ऐसी दुनिया लैंगिक समानता की दुनिया होगी। हम साथ मिलकर महिलाओं की समानता का निर्माण कर सकते हैं और सामूहिक रूप से पक्षपात को दूर कर सकते हैं। आज का परिदृश्य बताता है कि हम सभी अपने विचारों और कार्यो के लिए जिम्मेदार हैं। हमें अपने समुदायों, अपने कार्यस्थलों, अपने विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में पूर्वाग्रहों को तोड़ना होगा।

अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो कई महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में सम्मान हासिल किया है। मेरी क्यूरी को 1903 में भौतिकी के लिए और 1911 में रसायन विज्ञान में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी बेटी आइरिन क्यूरी को भी 1935 में रसायन विज्ञान में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मदर टेरेसा को नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सरोजिनी नायडू को भारत रत्न जैसे सम्मान से नवाजा गया। भारतीय स्त्रियों की साहस गाथा बहुत लंबी है। झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के खिलाफ लड़ीं। पुनीता अरोड़ा भारतीय सेना की पहली महिला लेफ्टिनेंट जनरल बनीं।

निस्संदेह इन सभी महिलाओं ने सफलता की पराकाष्ठा तक पहुंचने के लिए पूर्वाग्रहों को तोड़ा है लेकिन इस तरह की यात्रा को अधिक से अधिक महिलाओं को तय करना होगा। इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आइए हम महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने का संकल्प लें।

वे हमारे देश की शक्ति हैं और देश की अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने में भी समान रूप से सक्षम हैं। मातृशक्ति के सशक्तिकरण से ही राष्ट्र की आत्म निर्भरता और विश्वगुरु की पुनर्प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।

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