लाइव न्यूज़ :

आतंकवाद के मामले में ऐतिहासिक फैसला, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग 

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: June 17, 2021 15:40 IST

दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा देवांगना कालिता और नताशा नरवाल को तत्काल जेल से रिहा करने का बृहस्पतिवार को ओदश दिया.

Open in App
ठळक मुद्देछात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के दो दिन बाद अदालत ने यह आदेश दिया.गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था.हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने ताजा फैसले से सरकार और पुलिस को कड़ा संदेश दिया है. दिल्ली पुलिस ने पिछले साल मई में तीन छात्न-छात्नाओं को गिरफ्तार कर लिया था.

एक साल उन्हें जेल में रखा गया और जमानत नहीं दी गई. अब अदालत ने उन तीनों को जमानत पर रिहा कर दिया है. जामिया मिलिया के आसिफ इकबाल तनहा, जवाहरलाल नेहरू विवि की देवांगना कालिता और नताशा नरवाल पर आतंकवाद फैलाने के आरोप थे.

उन्हें कई छोटे-मोटे अन्य आरोपों में जमानत मिल गई थी लेकिन आतंकवाद का यह आरोप उन पर आतंकवाद-विरोधी कानून (यूएपीए) के अंतर्गत लगाया गया था. ट्रायल कोर्ट में जब यह मामला गया तो उसने इन तीनों को जमानत देने से मना कर दिया लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें न सिर्फ जमानत दे दी बल्कि सरकार और पुलिस पर कड़ीे टिप्पणी भी की.

जजों ने कहा कि इन तीनों व्यक्तियों पर आतंकवाद का आरोप लगाना संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन है. ये लोग न तो किसी प्रकार की हिंसा फैला रहे थे, न कोई सांप्रदायिक या जातीय दंगा भड़का रहे थे और न ही ये किन्हीं देशद्रोही तत्वों के साथ हाथ मिलाए हुए थे. वे तो नागरिक संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में भाषण और प्रदर्शन कर रहे थे.

यदि वे कोई विशेष रास्ता रोक रहे थे और उस पर आप कार्रवाई करना ही चाहते थे तो भारतीय दंड संहिता के तहत कर सकते थे लेकिन आतंकवाद-विरोधी कानून की धारा 43-डी (5) के तहत आप उनकी जमानत रद्द नहीं कर सकते हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय अपने इस ऐतिहासिक फैसले के लिए बधाई का पात्न है. उसने न्यायपालिका की इज्जत में चार चांद लगा दिए हैं.

लेकिन इससे कई बुनियादी सवाल भी खड़े हुए हैं. पहला तो यही कि उन तीनों को साल भर फिजूल जेल भुगतनी पड़ी, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? दूसरा, इन तीनों व्यक्तियों को फिजूल में जेल काटने का कोई हर्जाना मिलना चाहिए या नहीं? तीसरा सवाल सबसे महत्वपूर्ण है. वह यह कि देश की जेलों में ऐसे हजारों लोग सालों सड़ते रहते हैं, जिनका अपराध सिद्ध नहीं हुआ है और जिन पर मुकदमे चलते रहते हैं.

शायद उनकी संख्या सजायाफ्ता कैदियों से कहीं ज्यादा है. बरसों जेल काटने के बाद जब वे निर्दोष रिहा होते हैं तो वह रिहाई भी क्या रिहाई होती है? क्या हमारे सांसद ऐसे कैदियों के लिए कुछ करेंगे? वे अदालती व्यवस्था इतनी मजबूत क्यों नहीं बना देते कि कोई भी व्यक्ति दोष सिद्ध होने के पहले जेल में एक माह से ज्यादा न रहे.

टॅग्स :दिल्लीदिल्ली हाईकोर्ट
Open in App

संबंधित खबरें

भारतहाथ जोड़े चर्च में प्रार्थना करते पीएम मोदी, क्रिसमस के मौके पर दिल्ली के चर्च प्रार्थना सभा में हुए शामिल

भारतकुलदीप सिंह सेंगर को जमानत, उन्नाव बलात्कार पीड़िता की सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात, कांग्रेस नेता ने लिखा-क्या एक गैंगरेप पीड़िता के साथ ऐसा व्यवहार उचित है?

कारोबारकचरे से बनेगा ग्रीन हाइड्रोजन: ग्रेटर नोएडा बनेगा देश का ऊर्जा हब, हर दिन होगा एक टन उत्पादन

भारतदिल्ली हाई कोर्ट ने उन्नाव रेप केस में कुलदीप सिंह सेंगर को दी जमानत

कारोबार01 जनवरी 2026 से कीमत में 2 प्रतिशत की वृद्धि, मर्सिडीज-बेंज इंडिया की घोषणा, हर तिमाही में बढ़ेंगे दाम?, यूरो के मुकाबले रुपये में गिरावट

भारत अधिक खबरें

भारतबिहार में कुशवाहा की आरएलएम में फूट पड़ी, 3 विधायक भाजपा के संपर्क में

भारतविदेश मंत्रालय ने ललित मोदी-माल्या वायरल वीडियो पर चुप्पी तोड़ी, प्रत्यर्पण प्रयासों को दोहराया

भारतआमची मुंबई: सुरक्षा अब शहर का नया सामाजिक बुनियादी ढांचा

भारतदीपू दास-अमृत मंडल की पीट-पीट कर हत्या, विदेश मंत्रालय ने कहा-बांग्लादेश अंतरिम सरकार कार्यकाल में 2,900 से अधिक घटना

भारतएकनाथ शिंदे के साथ भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन के भाई प्रकाश?, शरद पवार को छोड़ राहुल गांधी के साथ प्रशांत जगताप