क्या मणिपुर को जलने के लिए छोड़ दिया है?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 11, 2025 07:01 IST2025-03-11T07:00:53+5:302025-03-11T07:01:32+5:30
यह सवाल भी पैदा हो रहा है कि क्या विदेशी ताकतें उपद्रव को हवा देने में सफल हो गई हैं. उपद्रवियों को ताकत कौन दे रहा है?

क्या मणिपुर को जलने के लिए छोड़ दिया है?
मणिपुर को लेकर जितनी चिंता राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए, क्या वह चिंता कहीं नजर आ रही है? बातें बहुत की जा रही हैं लेकिन खौफनाक हकीकत यह है कि मणिपुर जल रहा है. कभी थोड़ी शांति नजर आती है लेकिन फिर आग भड़क उठती है. वहां कुकी और मैतेई समुदाय के बीच बहुत पुरानी दुश्मनी है. कुकी समुदाय के ज्यादातर लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं और उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है जबकि ज्यादातर मैतेई हिंदू हैं लेकिन अत्यंत थोड़े से मैतेई इस्लाम के भी अनुयायी हैं.
मैतेई बहुसंख्यक हैं और उनका मानना है कि मणिपुर के मूल निवासी वही हैं. उनकी हमेशा से मांग रही है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले. 2023 में उच्च न्यायालय ने कहा कि मैतेई समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलना चाहिए. इसके बाद मणिपुर में हिंसा की ज्वाला भड़क उठी. शुरुआती दौर में तो शायद शासन को लगा कि मामला शांत हो जाएगा लेकिन आग भड़कती चली गई. बाद में कोर्ट ने सिफारिश वापस भी ले ली लेकिन तब तक हालात बेकाबू हो चुके थे.
दरअसल कुकी लोगों को यह महसूस हो रहा था कि सरकार पारदर्शी तरीके से काम नहीं कर रही है और उनके खिलाफ बल प्रयोग के मामले में ज्यादा सख्ती बरत रही है. पूरे देश में राज्य सरकार और केंद्र सरकार की आलोचना भी होती रही कि मणिपुर के मामले को सही तरीके से हैंडल नहीं किया जा रहा है. मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग उठती रही लेकिन वे पद पर बने रहे. पिछले महीने उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.
दोनों समुदायों में दुश्मनी इस कदर गंभीर हो चुकी है कि कुकी समुदाय ने तय किया कि वे मैतेई समुदाय के लोगों को अपने इलाके से नहीं गुजरने देंगे. राष्ट्रपति शासन लगने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने निर्देश दिए कि पूरे राज्य में आवागमन को सुचारु किया जाए. कोई भी कहीं भी जा सकता है लेकिन कुकी एक बार फिर उपद्रव पर उतर आए हैं. स्वाभाविक सा सवाल है कि एक राज्य पिछले 22 महीनों से जल रहा है और उसका समाधान नहीं निकल पा रहा है, ऐसा क्यों? क्या कहीं चूक हो गई है या फिर यह पूरी तरह अविश्वास का मामला है. यह सवाल भी पैदा हो रहा है कि क्या विदेशी ताकतें उपद्रव को हवा देने में सफल हो गई हैं. उपद्रवियों को ताकत कौन दे रहा है? सामान्य प्रदर्शनकारियों के पास अत्याधुनिक हथियार कहां से आ रहे हैं.
जो हथियार मिले हैं, उनमें से ज्यादातर चीन में निर्मित हथियार हैं. तो क्या भारत के भीतर अविश्वास से उपजी अशांति को आग के रूप में परिवर्तित करने में चीन सफल रहा है? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब तलाशे जाने चाहिए लेकिन दुर्भाग्य है कि इस पर कोई बात करने को तैयार नहीं है. राजनीतिक चालों ने अविश्वास के वातावरण को और घना बनाया है.
इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को मिलकर प्रयास करना चाहिए कि मणिपुर जितनी जल्दी हो, शांत हो सके. पूर्वोत्तर भारत वैसे भी वर्षों से बारूद के ढेर पर बैठा रहा है. वहां विभिन्न स्वरूपों में आतंकवादी सक्रिय रहे हैं और उस आतंकवाद को समुदायों के संघर्ष का रूप देने की कोशिश की गई है. यदि शासन तय कर ले कि मणिपुर में शांति बहाल करना है तो यह कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है लेकिन यह काम केवल हथियारों के बल पर नहीं हो सकता. इसके लिए शांति की मशाल जलाना जरूरी है.