हरीश गुप्ता का ब्लॉग: शरद पवार की पथरीली चुप्पी के मायने

By हरीश गुप्ता | Published: July 27, 2023 09:48 AM2023-07-27T09:48:51+5:302023-07-27T09:57:13+5:30

अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगियों और भतीजे अजित पवार के पार्टी तोड़कर भाजपा से हाथ मिलाने के बाद, पवार अपने मूड में नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने पिछले कुछ समय से चुप्पी साध रखी है.

Harish Gupta's blog: what is the meaning of Sharad Pawar's stony silenceThe meaning of Sharad Pawar's stony silence | हरीश गुप्ता का ब्लॉग: शरद पवार की पथरीली चुप्पी के मायने

हरीश गुप्ता का ब्लॉग: शरद पवार की पथरीली चुप्पी के मायने

राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने 18 जुलाई को बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों के सम्मेलन में बोलने से इनकार कर दिया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा विशेष रूप से अनुरोध किए जाने के बावजूद उन्होंने चुप्पी साधे रखी. उन्होंने बैठक की शुरुआत में ही पवार से बोलने का अनुरोध किया. जब पवार ने अनिच्छा दिखाई तो खड़गे आगे बढ़ गए, लेकिन फिर से पवार के पास आ गए. परंतु पवार बोलने के मूड में नहीं थे.

अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगियों और भतीजे अजित पवार के पार्टी तोड़कर भाजपा से हाथ मिलाने के बाद, पवार अपने मूड में नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने पिछले कुछ समय से चुप्पी साध रखी है और वे उन लोगों का पांसा पलटने का मौका तलाश रहे हैं जिन्होंने उनके राजनीतिक करियर के अंतिम पड़ाव पर उनका साथ छोड़ दिया. यहां तक कि राज्यसभा में भी वह पूरी तरह से चुप्पी साधे रहते हैं.

हालांकि लोकसभा और राज्यसभा में अधिकांश सांसद उनके साथ हैं, लेकिन महाराष्ट्र में जमीनी स्तर पर शक्ति परीक्षण अभी बाकी है. राजनीति में भविष्य में क्या होने वाला है, इसे भांपने की पवार में अद्भुत क्षमता है और उनमें जबरदस्त धैर्य है. वह हमेशा विजेता बनकर उभरे हैं. लेकिन फिलहाल वे चुप हैं क्योंकि उनका एक पैर ‘इंडिया’ (26 पार्टियों का समूह) में है, जबकि अधिकांश विधायक सत्तारूढ़ एनडीए के साथ हैं.

शुभ दिन का इंतजार

नया संसद भवन तैयार हुआ और विशेषज्ञों द्वारा मॉक ड्रिल आयोजित करने के बाद मंजूरी दे दी गई. मानसून सत्र के दौरान अत्याधुनिक ‘लोकतंत्र के मंदिर’ में नई पारी शुरू करने के लिए हर सांसद उत्साहित था. फिर खबर आई कि मानसून सत्र के बीच में शिफ्टिंग की जाएगी. क्यों? क्या कोई  हिचकिचाहट है या कोई समस्या है? राजस्थान से लोकसभा सदस्य हनुमान बेनीवाल, जो न तो एनडीए के साथ हैं और न ही विपक्ष के साथ, ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में भारी बारिश के बाद नई इमारत में जल-जमाव और रिसाव है.

हालांकि आधिकारिक सूत्र इस बात से इनकार करते हैं. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि ऐसा कुछ भी नहीं है. मोदी सरकार उद्घाटन समारोह के लिए एक शुभ तारीख की तलाश कर रही है क्योंकि ज्योतिषियों द्वारा परस्पर विरोधी विचार व्यक्त किए जा रहे हैं. ‘पंडितों’ की राय अलग है, इसलिए सत्र फिलहाल पुराने संसद भवन में आयोजित किया गया है. नई तारीख को लेकर किसी भी वक्त औपचारिक घोषणा होने की उम्मीद है.

क्यों असहज है आरएसएस!

आरएसएस इस बात से बेहद हैरान है कि प्रधानमंत्री ने मणिपुर में हिंसा पर बोलना क्यों उचित नहीं समझा, क्योंकि इससे वहां उसके दशकों के काम पर पानी फिर गया. 68 साल पहले स्थापित आरएसएस की एक शाखा, वनवासी कल्याण आश्रम, पूर्वोत्तर में आठ करोड़ आदिवासियों के उत्थान के लिए समर्पित है. इसका एक अन्य प्रमुख कार्य यह सुनिश्चित करना है कि समुदायों के बीच झड़पें हिंदू-ईसाइयों के बीच संघर्ष में न बदल जाएं.

आरएसएस नेतृत्व इस बात से बेहद खुश था कि पीएम मोदी ने पिछले वर्षों के दौरान न केवल मणिपुर बल्कि अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढांचे का निर्माण करके और लगभग हर महीने वहां जाकर जबरदस्त मदद की. मणिपुर के लोग प्रधानमंत्री को बहुत सम्मान देते हैं. जब मई में मणिपुर में हिंसा भड़की और बेकाबू होने लगी तो सरकार को बताया गया कि उच्चतम स्तर पर हस्तक्षेप की जरूरत है.

डेढ़ महीने के बाद आरएसएस ने 19 जून को मणिपुर में शांति की अपील जारी की और उम्मीद की कि पीएम अपनी चुप्पी तोड़ेंगे. प्रधानमंत्री ने पहली बार मणिपुर हिंसा पर 20 जुलाई को संसद सत्र के शुरुआती दिन इंतजार कर रहे टीवी चैनलों से सिर्फ 36 सेकंड के लिए बात की थी. उन्होंने 25 जुलाई को भाजपा की संसदीय दल की बैठक में बात की.

आरएसएस में कई लोग इस बात से हैरान हैं कि पीएम संसद के अंदर क्यों नहीं बोल रहे हैं क्योंकि इसका एक जबर्दस्त प्रभाव होगा. आरएसएस बेहद चिंतित है कि घावों को भरने और समुदायों को फिर से एक साथ लाने में दशकों लग जाएंगे.

शीर्ष पर हलचल

मोदी सरकार की कुछ कार्रवाइयों पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया के बाद, केंद्र इतना सतर्क है कि वह ऐसा कोई भी निर्णय नहीं ले रहा है जिससे कोई खराब स्थिति पैदा हो. केंद्र के रवैये ने दो वरिष्ठ सेवारत शीर्ष नौकरशाहों को असहज कर दिया है; कैबिनेट सचिव राजीव गौबा और केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला, जिन्होंने लगभग चार वर्षों तक कार्यालय में कार्य किया है. यह सेवानिवृत्ति के बाद उनके निर्धारित कार्यकाल से दो साल अधिक है.

दोनों अच्छे अधिकारी हैं और सरकार ने उन्हें दो साल के कार्यकाल के बाद भी जारी रखना तय किया था. लेकिन 30 जुलाई, 2023 को सेवानिवृत्त हो रहे भल्ला के मामले में कोई सेवा विस्तार आदेश जारी नहीं किया गया है. गौबा का कार्यकाल अगस्त में समाप्त हो रहा है. अगले कैबिनेट सचिव के रूप में वर्तमान में कर्नाटक की मुख्य सचिव वंदिता शर्मा का नाम लिया जा रहा है. संजय मिश्रा के प्रवर्तन निदेशक पद पर बने रहने पर भारत के प्रधान न्यायाधीश की पीठ की कड़ी टिप्पणी के बाद इस पर पुनर्विचार की बात सामने आ रही है.

सरकार दोबारा ऐसा अभियोग झेलने के मूड में नहीं है. संजय मिश्रा लगभग पांच साल का कार्यकाल ईडी प्रमुख के रूप में पूरा कर चुके हैं जिसमें उन्होंने देश भर में 2000 छापे मारे और 65000 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट उनकी उपलब्धियों को सुनने के मूड में नहीं था और कहा कि सेवा के नियम ऐसी व्याख्या का प्रावधान नहीं करते हैं. एक निश्चित कार्यकाल का मतलब है कि एक अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद न्यूनतम दो साल की अवधि तक पद पर रह सकता है.

इसका मतलब यह नहीं है कि अधिकारी अनिश्चित काल तक कुर्सी पर बने रह सकते हैं. हालांकि गौबा को पीएमओ में प्रधान सलाहकार के रूप में भेजा जा सकता है. यह पद पहले पी.के. सिन्हा के पास था. हालांकि सरकार हार नहीं मान रही है और संजय मिश्रा के लिए फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

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