वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दें
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: June 22, 2019 07:00 IST2019-06-22T07:00:03+5:302019-06-22T07:00:03+5:30
पिछले चुनाव के दौरान जो वायदे भाजपा और मोदी ने किए थे, उनमें से ज्यादातर अधूरे रह गए. उनका जिक्र राष्ट्रपतिजी करते और उन्हें पूरा करने का भरोसा दिलाते तो और भी अच्छा होता. लेकिन असलियत यह है कि यह भाषण तो मूलत: प्रधानमंत्नी-कार्यालय ही तैयार करता है.

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दें
नई संसद को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जो संबोधित किया, वह अपने आप में उत्तम श्रेणी का काम था. सबसे पहले तो मैं उनके भाषण की हिंदी की तारीफ करूंगा. ऐसा लग रहा था कि वह भाषण मूल हिंदी में लिखा गया था और राष्ट्रपति ने उसे जिस संजीदगी से पढ़ा, वह भी अच्छा प्रभाव छोड़ रही थी. उन्होंने पिछले पांच साल में की गई मोदी सरकार की कई रचनात्मक पहलों का जिक्र किया और अगले पांच साल के लिए कई मामलों में बहुत आशा बंधाई.
पिछले चुनाव के दौरान जो वायदे भाजपा और मोदी ने किए थे, उनमें से ज्यादातर अधूरे रह गए. उनका जिक्र राष्ट्रपतिजी करते और उन्हें पूरा करने का भरोसा दिलाते तो और भी अच्छा होता. लेकिन असलियत यह है कि यह भाषण तो मूलत: प्रधानमंत्नी-कार्यालय ही तैयार करता है. वैसे इस भाषण के दौरान सबसे ज्यादा तालियां बजीं, बालाकोट हमले और मसूद अजहर के मामलों पर! इसका अर्थ क्या हुआ? यही न, कि मोदी की जीत का आधार उनके रचनात्मक काम उतने नहीं हैं, जितने भावनात्मक काम!
मोदी सरकार को अपनी दूसरी अवधि में इस कमी के प्रति सावधान रहना होगा. इस समय देश की अर्थ-व्यवस्था काफी नाजुक हालत में है. भारत के जीडीपी के बारे में भी अर्थशास्त्रियों के बीच विवाद छिड़ गया है. पिछली 20 तिमाहियों में इस बार सबसे कम जीडीपी रही है. रोजगार इस समय जितना घटा है, उतना पिछले 45 साल में नहीं घटा है. मोदी सरकार ने ही नहीं, हमारी सभी सरकारों ने दो मामलों की बहुत उपेक्षा की है. एक शिक्षा और दूसरा स्वास्थ्य. एक नागरिकों के मन और दूसरा तन को सबल बनाता है.
हमारी सरकारें तन और मन की उपेक्षा कर धन के पीछे दौड़ रही हैं. भारत शिक्षा पर 3 प्रतिशत खर्च करता है जबकि अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र 8 से 12 प्रतिशत तक खर्च करते हैं. हम स्वास्थ्य पर मुश्किल से 3-4 प्रतिशत खर्च करते हैं जबकि पश्चिमी देश 12 से 17 प्रतिशत तक खर्च करते हैं. भारत के लोगों का तन और मन टूटा रहेगा तो धन कहां से पैदा होगा? कुछ पैदा भी होगा तो बस मुट्ठी भर लोगों के लिए!