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छात्रों को तनाव नहीं स्वाभाविक विकास का मौका दें

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 30, 2023 10:43 IST

राजस्थान के कोटा में जिस तरह छात्र आत्महत्या कर रहे हैं, वह सचमुच ही दहशत पैदा करने वाला है। पिछले साल वहां 15 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की थी, जबकि इस साल अभी अगस्त माह तक ही 22 छात्र अपनी जान दे चुके हैं।

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ठळक मुद्देराजस्थान के कोटा में बड़े पैमाने पर छात्रों की आत्महत्या सचमुच में दहशत पैदा कर रही हैपिछले साल 15 छात्रों ने आत्महत्या की थी, जबकि इस साल अभी तक 22 छात्र अपनी जान दे चुके हैंकोटा की कोचिंग को नीट या जेईई क्लियर करने की की गारंटी के तौैर पर लेना सही नहीं है

राजस्थान के कोटा में जिस तरह छात्र आत्महत्या कर रहे हैं, वह सचमुच ही दहशत पैदा करने वाला है। पिछले साल वहां 15 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की थी, जबकि इस साल अभी अगस्त माह तक ही 22 छात्र अपनी जान दे चुके हैं। रविवार को 4 घंटे के भीतर दो छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के बाद वहां के जिला प्रशासन ने वहां कोचिंग संस्थानों से अगले दो महीने तक नियमित टेस्ट नहीं लेने को कहा है।

इसके अलावा ‘आधे दिन पढ़ाई, आधे दिन मस्ती’, आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले छात्रों की पहचान करने और मनोवैज्ञानिक परामर्श देने जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं। छात्रों के आत्महत्या करने का कोई एक कारण नहीं है बल्कि कई कारक इसमें शामिल हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि आज प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा है कि छात्रों के दिमाग में दिन-रात पढ़ाई का तनाव ही सवार रहता है। कोटा में जेईई या नीट की कोचिंग करना तो जैसे देश भर के छात्रों का सपना ही बन गया है। इसमें उनके अभिभावकों का भी कम योगदान नहीं होता।

उन्हें लगता है कि वहां कोचिंग करना उनके बेटा या बेटी के लिए नीट या जेईई क्लियर कर लेने की गारंटी है। दिक्कत यह है कि इंजीनियरिंग या मेडिकल के प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश के लिए सीटें हजारों में ही होती हैं, जबकि उनमें प्रवेश के इच्छुक छात्रों की संख्या कई लाख होती है। ऐसे में एंट्रेंस एग्जाम क्लियर करने की प्रतिस्पर्धा चरम पर होती है।

हर कोचिंग संस्थान चाहता है कि उसके ज्यादा से ज्यादा छात्र परीक्षा में सफल हों। इस चक्कर में पढ़ाई का इतना ज्यादा तनाव छात्र के दिमाग में पैदा हो जाता है कि कई छात्र इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते और अपनी जान दे देते हैं। कई बार अभिभावकों की महत्वाकांक्षा भी इतनी ज्यादा होती है कि अपने बच्चे की रुचि या क्षमता देखे बिना वे उससे इतनी ज्यादा उम्मीदें पाल लेते हैं कि असफल होने का भय नजर आते ही बच्चों को अपनी जान दे देने के अलावा कोई उपाय नहीं सूझता।

यह कोई समझना ही नहीं चाहता कि किशोर उम्र के बच्चों के कोमल दिलो-दिमाग पर कितना बोझ डालना उचित है! इसलिए इस दिशा में गहन चिंतन-मनन किए जाने और छात्रों पर अनावश्यक बोझ डालने से बचने की जरूरत है ताकि उनका स्वाभाविक विकास हो और तनाव के चलते वे अपनी जान देने पर मजबूर न हों।

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