प्रशासनिक सुधार की जरूरत महसूस करते हुए नौकरशाहों के दक्ष, जिम्मेदार, ईमानदार, कानूनों का पालन करने वाला होने एवं उनकी समयबद्ध कार्यप्रणाली की आवश्यकता लंबे समय से रेखांकित की जाती रही है.
नौकरशा देश की विकास में बन रहे है बाधा
जबकि बार-बार ऐसे उदाहरण सामने आते रहे हैं जिनसे पता चलता है कि देश की नौकरशाही न केवल अदालतों के फैसलों का पालन करने-कराने में विफल हो रही है, बल्कि उनके भ्रष्टाचार से जुड़े मामले एवं लापरवाह नजरिया देश के विकास की एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहा है.
निश्चित ही उनकी भ्रष्टाचारयुक्त कार्यप्रणाली, अपने आपको सर्वेसर्वा मानने की मानसिकता, जनता के प्रति गैरजिम्मेदाराना व्यवहार, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कोताही की स्थितियां देश को अपना उद्देश्य हासिल करने में भी विफल कर रही हैं. उनके अहंकार का उदाहरण है राजस्थान के नागौर के एक एसडीएम और सरकारी डॉक्टर का एक-दूसरे से तू-तू मैं-मैं करना.
भ्रष्टाचार भी हाबी है इन नौकरशाहों पर
भ्रष्टाचार के उदाहरणों में प्रमुख है झारखंड की खान सचिव और उनके करीबियों पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी में 19 करोड़ की राशि नगद मिलना एवं कानून के अनुपालन में कोताही का ताजा मामला आईटी अधिनियम की धारा 66-ए का है. नौकरशाह ही वास्तव में देश के विकास को गति देते हैं, लेकिन इनमें जब काम करने के बजाय पैसे कमाने की होड़ और काम अटकाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है तो निराशा होती है.
प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों से जिस तरह की अपेक्षाएं हैं, वे पूरी नहीं हो पा रही हैं, यह एक गंभीर चुनौती एवं त्रासद स्थिति है. अधिकारियों-कर्मचारियों में जब तक इन गुणों का अभाव बना रहेगा, तब तक भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन असंभव है.