जिस किसी ने भी उस वकील की राय सुनी, वह दंग रह गया! नेशनल हाईवे अथॉरिटी की ओर से बहस करते हुए क्या कोई इस तरह का शर्मनाक बयान दे सकता है? दरअसल पिछले दिनों मध्यप्रदेश के इंदौर से देवास के बीच कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया. चार हजार से ज्यादा वाहन इस दौरान रेंगते रहे. यह भी कहा गया कि इस जाम से न निकल पाने के कारण तीन लोगों की मौत उपचार के अभाव में हो गई.
जाम का कहर करीब 50 घंटे तक लोगों ने भुगता. बच्चे खासतौर पर परेशान होते रहे क्योंकि किसी ने सोचा ही नहीं था कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर इस तरह के भयंकर जाम में वे फंसेंगे. लोग खाने-पीने के लिए तरस गए. जाम में फंसे एक व्यक्ति ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के समक्ष याचिका लगा दी कि नेशनल हाईवे अथॉरिटी इस जाम के लिए जिम्मेदार है. स्वाभाविक था कि न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने भी अपना वकील भेजा.
जाम के कारणों, नेशनल हाईवे अथॉरिटी की गलतियों और अन्य मुद्दों पर बहस चल रही थी. इसी दौरान नेशनल हाईवे अथॉरिटी के वकील ने कहा कि लोग बिना काम के वाहन लेकर निकल गए, जिसके कारण जाम लग गया! वकील का यह बयान जैसे ही सार्वजनिक हुआ, लोग नेशनल हाईवे अथॉरिटी पर उंगलियां उठाने लगे कि यह कैसा बयान है? क्या लोग नेशनल हाईवे अथॉरिटी के अधिकारियों से पहले पूछेंगे कि उन्हें बाहर जाना है, जाएं या न जाएं?
अपनी फजीहत देख नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने तत्काल बयान जारी किया कि वकील ने जो कहा है, वह नेशनल हाईवे अथॉरिटी का बयान नहीं है. सवाल यह उठता है कि फिर ऐसे वकील को अपना पक्ष रखने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने अधिकृत क्यों किया? वकील को वहां सही स्थिति रखनी थी और यह बताना था कि जाम को खत्म करने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं लेकिन वकील ने तो सड़क पर चलने वाले लोगों को ही दोषी ठहरा दिया. अब आप देखिए कि जाम का कारण क्या है.
नेशनल हाईवे के उस हिस्से में फ्लाईओवर बन रहे हैं. सड़क के किनारे की छोटी सी जगह ही दोनों ओर यातायात के लिए बची है. इंदौर-देवास के बीच का मार्ग अत्यंत व्यस्त मार्ग है. यह बात नेशनल हाईवे अथॉरिटी को भी पता थी. उसे ठेकेदार को निर्देशित करके जब तक फ्लाईओवर का काम पूरा नहीं हो जाता तब तक दोनों ओर सड़क को चौड़ा और मजबूत बनाना था ताकि यातायात में कोई तकलीफ न हो. लेकिन नेशनल हाईवे अथॉरिटी के अधिकारियों ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया.
फ्लाईओवर बना रही कंपनी ने सड़क को दुरुस्त नहीं किया. इस बीच बारिश हो गई और बड़े-बड़े गड्ढे उभर आए. इन गड्ढों में कुछ वाहन फंस गए और नतीजा यह हुआ कि देखते ही देखते करीब आठ किलोमीटर लंबा जाम लग गया. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने हालांकि इस बात को बेबुनियाद बताया कि इस जाम की वजह से किसी की मौत हुई है लेकिन स्थानीय मीडिया ने प्रमाण सहित बताया कि जाम के कारण किस-किस की मौत हुई है. इस पर तुर्रा यह कि नेशनल हाईवे अथॉरिटी के वकील ने लोगों को ही दोषी ठहरा दिया! इसका मतलब है कि अथॉरिटी का रवैया निंदनीय है.
महाराष्ट्र के नागपुर जैसी जगह में लोगों ने देखा है कि बुटीबोरी के पास फ्लाईओवर का एक हिस्सा धंसने लगा तो नेशनल हाईवे अथॉरिटी के अधिकारियों ने एक ट्राले के भारी वजन को दोषी ठहरा दिया. कहा गया कि ट्राला को बीच में चलना था लेकिन वह किनारे चल रहा था इसलिए फ्लाईओवर का किनारा दरक गया! सवाल है कि कोई फ्लाईओवर इतना कमजोर क्यों बना कि एक ट्राले के वजन ने उसे तोड़ दिया. इस मामले में किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई!
साफ लग रहा था कि अधिकारियों को बचाने की कोशिश की जा रही है. अब मजाक यह देखिए कि बुटीबोरी के उस फ्लाईओवर की मरम्मत हो चुकी है लेकिन वहां फ्लाईओवर के ऊपर बैरिकेड्स लगे हैं ताकि उस हिस्से से वाहन गुजर ही न सके! लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि ऐसा क्यों है?
निश्चित रूप से नेशनल हाईवे अथॉरिटी देश में काफी अच्छा काम कर रही है, द्रुत गति से तेज रफ्तार वाली सड़कें बन रही हैं लेकिन इस तरह के जाम और फ्लाईओवर टूटने की घटनाएं काला धब्बा लगा देती हैं. नेशनल हाईवे अथॉरिटी को ध्यान रखना चाहिए कि किसी ठेकेदार या किसी अधिकारी के कारण उसके दामन पर काला धब्बा न लगे!