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Extreme heat: जून-अगस्त 2024 के बीच दुनिया में भीषण गर्मी से जूझ रहे दो अरब लोग?, जलवायु परिवर्तन का सीधा असर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 23, 2024 05:14 IST

Extreme heat: मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से उत्पन्न कार्बन प्रदूषण जिम्मेदार है.

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ठळक मुद्देगर्मियों का तापमान 1970 के बाद का सबसे अधिक दर्ज किया गया.गर्मी की घटनाओं की संभावना अब औसतन 21 गुना अधिक हो गई है.भारत को इस साल अत्यधिक गर्मी का गहरा प्रभाव झेलना पड़ा.

Extreme heat: एक नई रिपोर्ट के अनुसार, जून से अगस्त 2024 के बीच, दुनिया भर में लगभग 2 अरब लोग (वैश्विक जनसंख्या का करीब 25%) ऐसे तापमान का सामना कर रहे थे, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक था और इनमें जलवायु परिवर्तन का सीधा असर देखा गया. इन तीन महीनों के दौरान, हर चार में से एक व्यक्ति को प्रतिदिन जलवायु परिवर्तन द्वारा प्रेरित खतरनाक गर्मी का सामना करना पड़ा. इसके पीछे मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से उत्पन्न कार्बन प्रदूषण जिम्मेदार है.

क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा जारी यह रिपोर्ट बताती है कि 72 देशों में इस साल गर्मियों का तापमान 1970 के बाद का सबसे अधिक दर्ज किया गया. इनमें से 180 शहर जो उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं, भीषण गर्मी की चपेट में आए. कार्बन प्रदूषण के चलते इस तरह की गर्मी की घटनाओं की संभावना अब औसतन 21 गुना अधिक हो गई है.

भारत को इस साल अत्यधिक गर्मी का गहरा प्रभाव झेलना पड़ा. लगभग 2.05 करोड़ भारतीय कम से कम 60 दिनों तक खतरनाक गर्मी की चपेट में रहे, जो दक्षिण एशिया में किसी भी देश के मुकाबले सबसे अधिक है. मुंबई जैसे शहरों में 54 दिन तक चरम गर्मी दर्ज की गई, जबकि कानपुर और दिल्ली जैसे शहरों में तापमान 39 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया, जो जलवायु परिवर्तन के कारण चार गुना अधिक संभावना वाला था.रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि इन असाधारण तापमानों ने वैश्विक स्तर पर अरबों लोगों की सेहत पर खतरा उत्पन्न किया.

‘खतरनाक गर्मी’ वाले दिनों में तापमान स्थानीय औसत तापमान के मुकाबले 90% से अधिक रहा. भारत में, लगभग 42.6 करोड़ लोगों को कम से कम सात दिनों तक इस संभावित खतरनाक गर्मी का सामना करना पड़ा. रिपोर्ट के अनुसार, इन असाधारण तापमानों का मापन करने के लिए क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई) का उपयोग किया गया.

इससे पता चला कि कई क्षेत्रों में मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान की चरम स्थिति दर्ज की गई. ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि यदि हम वैश्विक तापन (ग्लोबल वॉर्मिंग) के प्रभावों को कम करने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाते हैं, तो दुनिया भर में लोगों को और अधिक गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरों का सामना करना पड़ेगा.

टॅग्स :हीटवेवमौसमभारतीय मौसम विज्ञान विभागमौसम रिपोर्ट
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