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ब्लॉग: अंतरिक्ष में फैले कचरे को साफ करने की कवायद

By प्रमोद भार्गव | Updated: May 13, 2024 10:48 IST

इसरो ने अपनी सेवा पूरी कर चुके उपग्रह मेघा-ट्रापिक्स-1 (एमटी-1) के अत्यंत चुनौतीपूर्ण अभियान को अंजाम तक पहुंचाकर इसे पृथ्वी की निचली कक्षा में पुनः प्रवेश कराकर प्रशांत महासागर में गिरा दिया.

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ठळक मुद्देअंतरिक्ष में उपग्रहों का कचरा संकट बनता जा रहा हैअंतरिक्ष में बड़ी संख्या में यान व उपग्रह और उनके अवशेष कबाड़ बनकर भटक रहे हैंइनकी संख्या करीब 9 लाख है

अंतरिक्ष में उपग्रहों का कचरा संकट बनता जा रहा है. सूर्य की परिक्रमा कर रही पृथ्वी के चारों ओर 25000 से ज्यादा निष्क्रिय हो चुके उपग्रह एवं उनके अवशेष घूम रहे हैं. एक माह पहले अप्रैल 2024 में फ्लोरिडा में एक घर की छत पर गिरे उपग्रह के एक टुकड़े से छेद हो गया था. इससे कोई जनहानि तो नहीं हुई, लेकिन जानलेवा खतरों की आशंका जरूर बढ़ गई है. इसे देखते हुए अनेक देशों की सरकारें इन्हें हटाने के लिए नए ढंग से आविष्कृत किए स्टार्टअप्स की मदद से कई योजनाओं पर काम कर रही हैं. इस नाते भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उम्र पूरी कर चुके उपग्रहों को वापस लाने का तो अभियान ही शुरू कर दिया है.

नार्वेजियन स्टार्टअप सोलस्टार्म ने छोटे उपग्रहों में ड्रैग सेल या ऑटो पैराशूट लगाने आरंभ कर दिए हैं. यह पैराशूट अंतरिक्ष में सक्रिय होकर बेकार उपग्रह की गति को धीमी कर देगा. इससे वह कुछ ही समय में पृथ्वी की ओर बढ़ेगा और वायुमंडल में जलकर भस्म हो जाएगा. इस योजना पर काम नासा और यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी की आर्थिक सहायता से चल रहा है. जापानी कंपनी एस्ट्रोस्केल और क्लियरस्पेस रोबोटिक आर्म से उपग्रह के मलबे को चुंबकीय शक्ति से पकड़ेंगे. 

एस्ट्रोस्केल ब्रिटेन के साथ दो निष्क्रिय किंतु गतिशील उपग्रहों को गिराने की तैयारी में लगा है. क्लियरस्पेस यूरोपीय एजेंसी के साथ कचरा वायुमंडल में धकेलने के लिए टेंटेकल्स यानी ऑक्टोपस जैसे कृत्रिम हाथ की मदद से कचरे को पकड़कर वायुमंडल में भेज देगा.  अमेरिका की स्टारफिश स्पेस द्वारा बनाया गया ऑटर पृथ्वी की कक्षा में पहले निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचेगा और इलेक्ट्रोस्टैटिक तकनीक से उपग्रह के कचरे से चिपक जाएगा. 

इसके बाद यह वायुमंडल के करीब आकर कचरा पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा देगा.  इसरो ने अपनी सेवा पूरी कर चुके उपग्रह मेघा-ट्रापिक्स-1 (एमटी-1) के अत्यंत चुनौतीपूर्ण अभियान को अंजाम तक पहुंचाकर इसे पृथ्वी की निचली कक्षा में पुनः प्रवेश कराकर प्रशांत महासागर में गिरा दिया.  अंतरिक्ष में बड़ी संख्या में यान व उपग्रह और उनके अवशेष कबाड़ बनकर भटक रहे हैं. इनकी संख्या करीब 9 लाख है, जो आठ किमी प्रति सेकंड, यानी 25 से 28,000 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी की कक्षा में (एलईओ) अनवरत चक्कर काट रहे हैं. ये वे टुकड़े हैं जो वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद पूरी तरह जलकर राख नहीं हुए हैं. इन्हें केवल प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) से नष्ट किया जा सकता है. इस मानव निर्मित मलबे को साफ करने के लिए जापान की चार और अमेरिका की नासा जैसी अनेक कंपनियां लगी हुई हैं. कई देशों की निजी कंपनियां भी इस क्षेत्र में अपने भविष्य को एक बड़े कारोबार के रूप में देख रही हैं. भारत ने इस दिशा में पहल करते हुए एमटी-1 को नष्ट करके बड़ी धाक जमा ली है.

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