डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: भारत के बाद पैदा हुआ इंडिया
By विजय दर्डा | Published: September 11, 2023 07:08 AM2023-09-11T07:08:35+5:302023-09-11T07:08:35+5:30
अंग्रेजों ने हम पर कब्जा किया तो इंडिया शब्द हम पर चस्पा हो गया। आम आदमी के लिए यह देश भारत और हिंदुस्तान ही रहा। हमें सोच के हर उस बंधन को काटना होगा जो हमारी संस्कृति के लिए घातक है।
इस वक्त हर किसी की जुबान पर बस एक ही सवाल है कि क्या इंडिया अब अधिकृत तौर पर केवल भारत कहलाएगा? फिलहाल हमारे संविधान में लिखा है ‘इंडिया दैट इज भारत’ यानी इंडिया जो भारत है’। तो इस सवाल के साथ चर्चा की दो धाराएं पैदा हो गई हैं। एक विरोध में तो दूसरी समर्थन में। जो लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के गंभीर आलोचक हैं वे कह रहे हैं कि विपक्षी गठबंधन ने जब से अपना नाम इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) रखा है तब से भाजपा परेशान है। इस परेशानी के कारण देश का नाम बदला जा रहा है।
राष्ट्रपति के आमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखना तथा जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री के सामने भारत नाम की पट्टिका इसकी शुरुआत है। जहां तक गठबंधन इंडिया से डर कर देश का नाम बदलने की बात है तो मैं बिल्कुल ही इससे इत्तेफाक नहीं रखता हूं। भारत नाम का उपयोग करने के पीछे निश्चय ही ऐतिहासिक विरासत की भावना है। इसे अंग्रेजी में यदि कोई इंडिया कहता है तो उसमें कोई हर्ज भी नहीं है। कई लोग अपने देश को हिंदुस्तान भी कहते हैं। दरअसल जिस तरह हम राष्ट्रभाषा, राजभाषा और लोकभाषा का इस्तेमाल करते हैं, इसे भी इसी स्वरूप में देखा जाना चाहिए। हां, यह बात तय है कि पुरातन काल से पृथ्वी का यह भूभाग भारत के रूप में ही जाना गया है। आर्यावर्त, जंबू द्वीप जैसे नाम से भी इस देश को वक्त के किसी काल में संबोधित करते रहे हैं लेकिन भारत सबसे लंबी अवधि वाला नाम रहा है।
भारत नाम के पीछे की कहानी के लिए चलिए आपको इतिहास की सैर पर ले चलते हैं। फिर आप समझ पाएंगे कि भारत प्राचीन काल से है। इंडिया का जन्म तो बहुत बाद में हुआ है। एक महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि जैन धर्म के प्रवर्तक ऋषभदेव जी के बड़े पुत्र महायोगी भरत के नाम पर इस देश का नामकरण हुआ। ऋषभदेव जी ने धर्म का मार्ग आत्मसात करने के लिए राजपाट छोड़ा और आदिनाथ भगवान कहलाए। उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती राजा हुए। उनका साम्राज्य चारों दिशाओं में फैला था। इसलिए इस भूभाग को भारतवर्ष नाम दिया गया। धीरे-धीरे यह भारत हो गया।
एक जिक्र प्राचीन भारत के चक्रवर्ती राजा दुष्यंत और उनकी रानी शकुंतला के पुत्र भरत का भी आता है। भगवान राम के भाई भरत का जिक्र भी इतिहास में है। कहने का आशय यह है कि भारत न जाने कितने समय से इस देश का सर्वमान्य नाम रहा है। अब जरा इस बात पर गौर करें कि ये इंडिया शब्द हमारे पास कब आया? इंडिया नाम को समझने के लिए पहले हमें हिंदुस्तान शब्द के आगमन को समझना होगा। इतिहास के मध्यकाल में जब ईरानी और तुर्क लोगों ने सिंधु घाटी में प्रवेश किया तो उन्होंने उसे हिंदू घाटी कहा क्योंकि वो लोग 'स' अक्षर को 'ह' बोलते थे। सिंधु नदी को हिंदु नदी कहा और इलाके को हिंदुस्तान कहना शुरू किया। अब देखिए कि शब्दों का सफर कैसा कमाल करता है। सिंधु नदी के किनारे सिंधु घाटी की सभ्यता विकसित हुई और उसकी ख्याति उस दौर की एक और विकसित सभ्यता यूनान तक पहुंची। चूंकि सिंधु नदी का नाम इंडस भी था इसलिए यूनानियों ने इसे इंडस वैली कहा। यह इंडस शब्द यूनानी भाषा से लैटिन भाषा में पहुंचते-पहुंचते इंडिया हो गया। संदर्भ के लिए बता दें कि लैटिन रोमन साम्राज्य की आधिकारिक भाषा थी। इस तरह इंडिया शब्द का जन्म हुआ। अंग्रेजों ने हम पर कब्जा किया तो यह इंडिया शब्द हम पर चस्पा हो गया। आम आदमी के लिए यह देश भारत और हिंदुस्तान ही रहा।
आजादी के बाद जब देश के नाम की बात आई तो संविधान सभा में नाम को लेकर लंबी बहस हुई। एक से एक धुरंधर और विद्वान लोग शामिल थे। कुछ सदस्य भारत तो कुछ भारतवर्ष या फिर हिंदुस्तान नाम रखना चाहते थे। अंतत: ऐसा सोचा गया कि भारत को दुनिया भर में इंडिया के नाम से जाना जाता है इसलिए इसका नाम इंडिया ही रहने दिया जाए। हां, बहस का नतीजा यह हुआ कि संविधान में लिखा गया ‘इंडिया दैट इज भारत’ यानी इंडिया जो भारत है। इस तरह संविधान में इंडिया और भारत दोनों दर्ज हो गए।
दुनिया इस बात को अच्छी तरह समझती है कि जब कोई भी देश किसी दूसरे देश पर कब्जा करता है तो सबसे पहले उसकी भाषा, वेशभूषा और उसकी राष्ट्रीयता पर हमला करता है। अंग्रेजों ने तीनों स्तर पर काम किया। हमारी वेशभूषा बदल दी क्योंकि उन्हें कपड़ा मिलों को खत्म करके इस देश की आर्थिक कमर तोड़नी थी। ये उन्होंने किया। जो देश दुनिया का सबसे बेहतरीन मलमल बनाता था वह कपड़े आयात करने लगा। अंग्रेजों को क्लर्क पैदा करने थे इसलिए हमारी शिक्षा पद्धति बदल दी। उस शिक्षा पद्धति से हम जितना बाहर आए हैं उसी अनुपात में वैश्विक स्तर पर हमारे युवाओं ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया है। आज हम बौद्धिक दुनिया पर राज करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हमें सोच के हर उस बंधन को काटना होगा जो हमारी संस्कृति के लिए घातक है।
जहां तक भारत शब्द का सवाल है तो यह हमारी रूह में बसा है। शब्दों को लेकर माथापच्ची करने से बेहतर है कि हमारा सारा ध्यान इस बात पर हो कि इस देश का आम आदमी शांति और सौहार्द्र के साथ विकास के पथ पर कैसे आगे बढ़े। समाज में पनप रहे विद्वेष का कैसे नाश हो। गंगा, समंदर और हिमालय को जरूर पूजें लेकिन असली सवाल है कि उसका संरक्षण कैसे करें। पश्चिमी दुनिया हमें अभी इंडियन कहती है, कल को भारतीय भी कहने लगेगी मगर मूल बात तो यह है कि हम खुद की संस्कृति को कैसे संरक्षित और विकसित करते हैं। सांसद के रूप में मैंने कई राष्ट्रपतियों को पत्र लिखा कि महामहिम शब्द से मुक्ति पानी चाहिए। अंतत: प्रणब मुखर्जी ने उस महामहिम शब्द से मुक्ति पाई। उपराष्ट्रपति के रूप में वेंकैया नायडू ने सांसदों से कहा कि संसद में ‘आई बेग टू..’ का उपयोग न करें लेकिन क्या हुआ? ऐसे ही ‘मी लॉर्ड’ आज भी कानों में सुनाई पड़ता है। अपने विमानों पर से ‘विक्टोरिया टेरिटरी’ (वीटी) का चस्पा हम अभी भी दूर नहीं कर पाए हैं। क्या-क्या गिनाऊं?