पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: अरावली के उजड़ने से गहरा रही जलवायु परिवर्तन की मार
By पंकज चतुर्वेदी | Updated: June 27, 2024 10:48 IST2024-06-27T10:47:18+5:302024-06-27T10:48:59+5:30
लगभग 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं के साथ धूल भरी आंधी ने जयपुर, सीकर, दौसा और झुंझुनू में कहर बरपाया, जिससे पहले से ही चिलचिलाती गर्मी से जूझ रहे निवासियों के सामने चुनौतियां और बढ़ गईं.

प्रतीकात्मक तस्वीर
अरावली पर्वतमाला की गोद में बसे राजस्थान के संभवतया सबसे हरे-भरे शहर अलवर में बीते शनिवार-रविवार रेत के धोरे आसमान में तैरते दिखे. शुक्रवार रात को भी 30 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से हवा चली और पूरा शहर धूल में नहाया हुआ नजर आया. इस दौरान हल्की बारिश भी हुई. घरों-बाजार में मिट्टी का अंबार लग गया.
झुंझुनू और सीकर जिलों में अलग-अलग घटनाओं में एक मां और उसके बच्चे सहित तीन लोगों की जान चली गई. लगभग 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं के साथ धूल भरी आंधी ने जयपुर, सीकर, दौसा और झुंझुनू में कहर बरपाया, जिससे पहले से ही चिलचिलाती गर्मी से जूझ रहे निवासियों के सामने चुनौतियां और बढ़ गईं.
चिंता की बात यह है कि इस तरह के धूल भरे अंधड़ों की संख्या और दायरा साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है. समझना होगा कि यह सीधे-सीधे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है और प्रकृति में मानवीय छेड़छाड़ ने इसे और गंभीर बना दिया है.
वर्ष 2015 के बाद ऐसे अंधड़ों की संख्या बढ़ती जा रही है. अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘अर्थ साइंस इंफॉर्मेटिक्स’ में प्रकाशित एक शोध पहले ही चेतावनी दे चुका था कि अरावली पर्वतमाला में पहाड़ियों के गायब होने से राजस्थान में रेत के तूफान में वृद्धि हुई है.
भरतपुर, धौलपुर, जयपुर और चित्तौड़गढ़ जैसे स्थान, जहां अरावली पर्वतमाला पर अवैध खनन, भूमि अतिक्रमण और हरियाली उजड़ने की अधिक मार पड़ी है, को सामान्य से अधिक रेतीले तूफानों का सामना करना पड़ रहा है.
यह गांठ बांध लें कि मसला महज राजस्थान का नहीं है, दिल्ली और हरियाणा का अस्तित्व भी अरावली पर टिका है और अरावली को नुकसान का अर्थ है कि देश के अन्न के कटोरे पंजाब तक बालू के धोरों का विस्तार. इसरो का एक शोध बताता है कि थार रेगिस्तान अब राजस्थान से बाहर निकल कर कई राज्यों में जड़ें जमा रहा है.
सनद रहे कि भारत के राजस्थान से सुदूर पाकिस्तान व उससे आगे तक फैले भीषण रेगिस्तान से हर दिन लाखों टन रेत उड़ती है. खासकर गर्मी में यह धूल पूरे परिवेश में छा जाती है. मानवीय जीवन पर इसका दुष्परिणाम ठंड में दिखने वाले स्मॉग से अधिक होता है.
रेत के बवंडर खेती और हरियाली वाले इलाकों तक न पहुंचें, इसके लिए सुरक्षा-परत या शील्ड का काम हरियाली और जल-धाराओं से सम्पन्न अरावली पर्वतमाला सदियों से करती रही है. विडंबना है कि बीते चार दशकों में यहां मानवीय हस्तक्षेप और खनन इतना बढ़ा कि कई स्थानों पर पहाड़ की श्रृंखला की जगह गहरी खाई हो गई और एक बड़ा कारण यह भी है कि अब उपजाऊ जमीन पर रेत की परत का विस्तार हो रहा है.