विपक्षी एकता BJP के लिए खतरे की घंटी, 2019 लोकसभा चुनाव जीतना हो सकता है ख्वाब
By रामदीप मिश्रा | Published: May 31, 2018 04:07 PM2018-05-31T16:07:29+5:302018-05-31T16:07:29+5:30
कांग्रेस सभी विपक्षी पार्टियों को एक साथ लाकर बीजेपी की आंधी रोकने की कोशिश कर रही है। इसी का नतीजा रहा है कि उत्तरप्रदेश के लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी बैकफुट पर पहुंच गई।
नई दिल्ली, 31 मार्चः साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नरेंद्र मोदी के नाम की लहर पर प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई और उसके आगे विपक्ष बुरी तरह से धराशाही हो गया। मोदी लहर के चलते बीजेपी ने 2018 आते-आते 21 राज्यों में अपनी सरकार बना ली। उसने मोदी की लोकप्रियता की दुहाई देकर कांग्रेस को देश से उखाड़ फेंकने का नारा बुलंद कर दिया। हालांकि कांग्रेस ने खुद कमजोर होता देख विपक्ष को एक जुट करने का विकल्प खोजना शुरू कर दिया, जिसके बाद बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजना शुरू हो गई।
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बीजेपी के लिए था सेमीफाइनल
कांग्रेस ने बीजेपी को हराने के लिए एक साथ आने की चाल चली, जिसके बाद उत्तर प्रदेश में हुए फूलपुर, गोरखपुर और राजस्थान लोकसभा उपचुनाव में उसे बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। अब उसके हाथ से कैराना और भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट भी खिसक गई है। ये चुनाव बीजेपी के लिए सेमीफाइन बताए जा रहे थे, जिससे आगामी लोकसभा चुनावों की तस्वीर तय होना मानी जा रही थी। उपचुनाव के परिणाम आने के बाद विपक्ष बीजेपी पर हावी होता दिखाई दे रहा है।
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सपा-बसपा ज्यादा हो सकते है खतरनाक साबित
कांग्रेस सभी विपक्षी पार्टियों को एक साथ लाकर बीजेपी की आंधी रोकने की कोशिश कर रही है। इसी का नतीजा रहा है कि उत्तरप्रदेश के लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी बैकफुट पर पहुंच गई। समाजवादी पार्टी भी बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ खड़ी दिखाई दी। भले ही अखिलेश और मायावती एक साथ चुनाव लड़ने की बात नहीं कह रहे हैं, लेकिन चुनाव के बाद एक साथ आने में गुरेज नहीं करेंगे। ऐसे में बीजेपी के लिए मुश्किलें ज्यादा बढ़ती दिखाई दे रही हैं।
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अपने भी छोड़ रहे हैं साथ
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे हैं इस वजह से हो सकता है कि विपक्ष के एकजुट होने में थोड़ी परेशानी हो, क्योंकि कई पार्टियां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना नहीं चाहती है। सबसे बड़ी ये है की बीजेपी के अपने ही साथ छोड़ने लगे है। अभी हाल में चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी ने साथ छोड़ दी। वहीं, शिवसेना बीजेपी की कार्यप्रणाली से नाराज चल रही है। यहां तक की पालघर लोकसभा सीट पर शिवसेना ने दिवंगत सांसद चिंतामन वनगा के पुत्र श्रीनिवास को अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि यहां शिवसेना को निराशा हाथ लगी।
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राहुल गांधी 2014 की तुलना में ज्यादा हुआ आक्रामक
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि 2014 के चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी केंद्रीय सत्ता पर काबिज होने के प्रबल दावेदार थे और उन्होंने विकास और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर चुनाव लड़ा, लेकिन 2019 में उन्हें सत्ता बचानी है और विपक्ष के पास मुद्दों की कोई नहीं है। विपक्ष जिन मुद्दों को लेकर बीजेपी को घेर सकता है उनमें नौकरियों की कमी, बढ़ती कीमतें, किसानों की समस्या, करोड़ों रुपये के बैंक घोटाले और दलितों समेत कमजोर तबके के खिलाफ उत्पीड़न जैसे मुद्दे शामिल हैं। वहीं, अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 2014 की तुलना में मोदी के अधिक कट्टर प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं और उनके हमले तीखे व कठोर हो रहे हैं।
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