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जलवायु सम्मेलन: ग्लासगो के बाद अब जर्मनी के बॉन शहर पर नजर, विकासशील देशों की समस्याओं पर चर्चा की संभावना

By निशांत | Updated: June 14, 2022 13:21 IST

ऐसी उम्मीद है कि 6 से 16 जून तक होने वाला बॉन जलवायु सम्मेलन इस साल के अंत में मिस्र के शर्म अल-शेख में COP27 के लिए जमीन तैयार करेगा.

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जर्मनी के बॉन शहर में दुनिया भर के तमाम देश एक बेहतर कल के लिए अपनी जलवायु प्रतिक्रिया पर चर्चा और सुधार करने के लिए एक साथ आए हैं. दरअसल, ग्लासगो में COP26 के सात महीने बाद, दुनिया भर के देशों ने जलवायु परिवर्तन वार्ता के एक और सेट के लिए जर्मनी के बॉन में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि 6 से 16 जून तक होने वाला बॉन जलवायु सम्मेलन इस साल के अंत में मिस्र के शर्म अल-शेख में COP27 के लिए जमीन तैयार करेगा. यह सम्मेलन ग्लासगो में हुई COP से अलग है क्योंकि इसका नेतृत्व COP के दो सहायक निकाय कर रहे हैं. इस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का उद्देश्य नवंबर में COP27 से पहले जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रमुख घटनाक्रमों को चर्चा के केंद्र में लाना है.

जहां एक ओर जलवायु परिवर्तन के वैश्विक मुद्दे के समाधान के लिए अंतर-सरकारी स्तर पर तत्काल कार्रवाई करना समय की मांग है, वहीं फिलहाल इस बैठक में विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हुए विनाश पर चर्चा करने के लिए अधिक समय की मांग की है.

बॉन सम्मेलन में चर्चा का केंद्र है- कैसे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से हो रही हानि और क्षति के संदर्भ में शमन और अनुकूलन के मध्यम से मदद पहुंचाई जाए. भारत जैसे देश विशेष रूप से इस सम्मेलन के उन एजेंडा मदों में रुचि रखते हैं जो अनुकूलन, हानि और क्षति और जलवायु वित्त पर चर्चा करते हैं.

विकसित देशों को 2020 तक जलवायु वित्त में 100 बिलियन डॉलर जुटाना था-एक ऐसा लक्ष्य जिसे हासिल नहीं किया गया है, और 2023 से पहले पूरा होने की संभावना नहीं है.

जलवायु वित्त में से केवल 20 प्रतिशत जलवायु अनुकूलन की ओर गया है जबकि 50 प्रतिशत जलवायु न्यूनीकरण की ओर है. संयुक्त राष्ट्र के एक समूह के अनुमान के अनुसार, जलवायु वित्त की आवश्यकता तब से बढ़कर 5.8-5.9 ट्रिलियन डॉलर हो गई है.

जलवायु परिवर्तन शमन के लिए एक निर्धारित लक्ष्य है - ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करना. लेकिन जलवायु अनुकूलन के लिए कोई निर्धारित लक्ष्य नहीं है, और इस पर चर्चा की आवश्यकता है. हमें एक नए वित्त लक्ष्य की भी आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान प्रतिज्ञाएं पूरी तरह से अपर्याप्त हैं.

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