200 देशों ने किया महत्वपूर्ण जलवायु समझौता, भारत की जलवायु कूटनीति को मिली बड़ी कामयाबी, आखिरी समय में कराया बदलाव
By विशाल कुमार | Published: November 14, 2021 07:51 AM2021-11-14T07:51:59+5:302021-11-14T08:58:04+5:30
भारत और चीन ने आखिरी समय में कोयले और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने (फेज आउट) की शब्दावली में परिवर्तन कराकर चरणबद्ध तरीके से कम करने (फेज डाउन) की शब्दावली में परिवर्तित कराने में सफलता हासिल कर ली.
ग्लासगो: लगभग 200 देशों ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण ग्लोबल वार्मिंग लक्ष्य को जीवित रखने के उद्देश्य से ग्लासगो में एक विवादास्पद जलवायु समझौता स्वीकार किया जिसके तहत 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के लक्ष्य को हासिल करने का उद्देश्य है.
हालांकि, इसमें भारत और चीन ने आखिरी समय में कोयले और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने (फेज आउट) की शब्दावली में परिवर्तन कराकर चरणबद्ध तरीके से कम करने (फेज डाउन) की शब्दावली में परिवर्तित कराने में सफलता हासिल कर ली.
दरअसल, अंतिम समझौते को अपनाने के कुछ घंटों बाद कोयले और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के संदर्भ में तीखे मतभेद सामने आए थे. भारत, चीन और ईरान, वेनेज़ुएला और क्यूबा सहित कई अन्य विकासशील देशों ने इस प्रावधान पर आपत्ति जताई, जिसमें देशों से निरंतर कोयला बिजली और अक्षम जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के प्रयासों में तेजी लाने का आह्वान किया गया था.
वहीं, छोटे द्वीपीय राज्यों सहित कई देशों ने कहा कि वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोत कोयला बिजली को फेज आउट करने के बजाय भारत द्वारा फेज डाउन करने के लिए किए गए बदलाव से बहुत निराश हैं.
यह पहली बार था कि जलवायु परिवर्तन की बैठकों के किसी भी निर्णय में कोयले के चरण-निर्धारण का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था और इसे समझौते के प्रगतिशील तत्वों में से एक के रूप में देखा गया था, विशेष रूप से नागरिक समाज समूहों द्वारा.
हर साल 100 बिलियन डॉलर न जुटा पाने पर जताया खेद
कोयले पर विवाद के साथ ही ग्लासगो सम्मेलन को विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करने के लिए जलवायु फंड में कम से कम 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के अपने 12 साल पुराने वादे को पूरा करने में विकसित देशों की विफलता के रूप में भी याद किया जाएगा. यह पैसा 2020 से हर साल जुटाया जाना था, लेकिन ग्लासगो सम्मेलन से ठीक पहले समय सीमा को 2023 तक बढ़ा दिया गया था.
ग्लासगो जलवायु समझौते ने इस विफलता को गहरे खेद के साथ दर्ज किया और विकसित देशों से इस वादे को तत्काल पूरा करने के लिए कहा. इसने 2025 से हर साल जुटाए जाने वाले 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ऊपर के जलवायु फंड के लिए एक नया लक्ष्य निर्धारित करने पर भी चर्चा शुरू की.