ब्लॉग: डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों पर कार्बन टैक्स लगाइए
By भरत झुनझुनवाला | Published: November 15, 2021 09:37 AM2021-11-15T09:37:03+5:302021-11-15T09:42:12+5:30
बिजली से चलने वाले वाहन आर्थिक एवं पर्यावरण- दोनों दृष्टि से लाभप्रद हैं. पेट्रोल से चलने वाले वाहन ईंधन की केवल 25 प्रतिशत ऊर्जा का ही उपयोग कर पाते हैं. शेष 75 प्रतिशत ऊर्जा इंजन को गर्म रखने अथवा बिना जले हुए कार्बन यानी धुएं के रूप में साइलेंसर से बाहर निकल जाती है.
ग्लासगो में आयोजित कॉप 26 पर्यावरण सम्मेलन में भारतीय वाहन निर्माताओं ने कहा है कि 2030 तक भारत में 70 प्रतिशत दोपहिया, 30 प्रतिशत कार और 15 प्रतिशत ट्रक बिजली से चलने वाले होंगे. यह सुखद सूचना है. लेकिन दुनिया की चाल को देखते हुए हम फिर भी पीछे ही हैं.
नॉर्वे ने निर्णय किया है कि 2025 के बाद उनकी सड़कों पर एक भी पेट्रोल या डीजल का वाहन नहीं चलेगा. डेनमार्क और नीदरलैंड ने यही निर्णय 2030 से एवं इंग्लैंड और अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया ने यही निर्णय 2035 से लागू करने की घोषणा की है.
चीन में इस वर्ष की पहली तिमाही में 5 लाख बिजली के वाहन बिके हैं और यूरोप में 4.5 लाख. भारत अभी इस दौड़ में बहुत पीछे है और पहली तिमाही में हम बिजली से चलने वाले केवल 70,000 वाहन बेच सके हैं.
बिजली से चलने वाले वाहन आर्थिक एवं पर्यावरण- दोनों दृष्टि से लाभप्रद हैं. पेट्रोल से चलने वाले वाहन ईंधन की केवल 25 प्रतिशत ऊर्जा का ही उपयोग कर पाते हैं. शेष 75 प्रतिशत ऊर्जा इंजन को गर्म रखने अथवा बिना जले हुए कार्बन यानी धुएं के रूप में साइलेंसर से बाहर निकल जाती है.
इसकी तुलना में बिजली के वाहन ज्यादा कुशल हैं. यदि उसी तेल से पहले बिजली बनाई जाए तो बिजली संयंत्र में तेल की लगभग 15 प्रतिशत ऊर्जा क्षय होती है. फिर इस बिजली को कार तक पहुंचाने में 5 प्रतिशत का क्षय होता है और कार में बिजली से गाड़ी को चलाने में लगभग 20 प्रतिशत ऊर्जा का क्षय होता है.
कुल 40 प्रतिशत ऊर्जा का क्षय होता है और बिजली की कार के माध्यम से हम तेल में निहित 60 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर पाते हैं. अत: पेट्रोल से चलने वाली कार जहां 25 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करती है, वहीं बिजली से चलने वाली कार 60 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करती है. अथवा यूं समझो कि उतने ही तेल से बिजली की कार से आप दोगुनी दूरी को तय कर सकते हैं.
आर्थिक दृष्टि से भी ये लाभदायक है. आने वाले समय में बिजली के वाहन सस्ते हो जाएंगे. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के एक अध्ययन के अनुसार 2019 में पेट्रोल की कार का मूल्य 24000 अमेरिकी डॉलर था जो कि 2025 में बढ़कर 26000 डॉलर हो जाने का अनुमान है.
इसके विपरीत 2019 में समतुल्य बिजली की कार का मूल्य 50000 डॉलर था जो कि 2025 में घटकर मात्न 18000 डॉलर हो जाएगा.
केंद्र सरकार बिजली वाहन को प्रोत्साहन देने के लिए लगभग 15000 रुपए की सब्सिडी देती है. कई राज्य सरकारें भी अलग-अलग दर से बिजली की कार पर सब्सिडी दे रही हैं. विषय है कि बिजली की कार को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी दी जाए अथवा पेट्रोल वाहनों पर अतिरिक्त टैक्स लगाया जाए.
पेट्रोल वाहनों पर कार्बन टैक्स लगा दिया जाए तो पेट्रोल वाहन महंगे हो जाएंगे और पुन: उनकी तुलना में बिजली के वाहन सस्ते हो जाएंगे. दोनों नीतियों में अंतर यह है कि जब हम बिजली के वाहन पर सब्सिडी देते हैं तो सब्सिडी में दी गई रकम को हम जनता से किन्हीं अन्य स्थानों पर टैक्स के रूप में वसूल करते हैं. नतीजा हुआ कि बिजली की कार चलाने वाले को सब्सिडी मिलती है और उसका भार आम आदमी पर पड़ता है.
दूसरा काम यह कि सरकार को बिजली वाहनों को चार्ज करने के लिए चार्जिंग स्टेशन बड़ी संख्या में बनाने चाहिए जिससे कि बिजली की कार खरीदने वाले के लिए यात्रा सुलभ हो जाए. तब अपने देश में खरीदार का रुझान बिजली की कार की तरफ आसानी से मुड़ेगा.
तीसरा कार्य, सरकार को बिजली के मूल्य में दिन और रात में बदलाव करना चाहिए. यह नीति संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद होगी और विशेष रूप से बिजली की कार के लिए. दिन में बिजली की मांग अधिक और रात में कम होती है.
इस कारण अक्सर थर्मल बिजली संयंत्रों को रात्रि के समय अपने को बैकडॉउन करना पड़ता है. यानी कि उस समय वे अपनी क्षमता का 60 प्रतिशत बिजली उत्पादन करते हैं.
यदि बिजली का दाम दिन में बढ़ाकर रात में कम कर दिया जाए तो बिजली की कार के मालिकों समेत कारखानों के लिए लाभप्रद हो जाएगा कि वह रात्रि के समय अपनी कार को चार्ज करें और कारखाने चलाएं.
तब रात्रि में बिजली की मांग बढ़ेगी जिससे कि थर्मल पॉवर स्टेशन को बैक डाउन नहीं करना पड़ेगा और बिजली के दाम में कमी आएगी. ऐसे बिजली के मीटर उपलब्ध हैं और दूसरे देशों में उपयोग में हैं जो समय के अनुसार बिजली की खपत का रिकॉर्ड रख लेते हैं.
सुझाव है कि केवल सब्सिडी देने से बिजली की कार का उपयोग देश में नहीं बढ़ेगा. हम चीन, यूरोप और कैलिफोर्निया से पीछे ही रहेंगे. अत: उपरोक्त नीतियों को सरकार को लागू करने पर विचार करना चाहिए.